भारत पर भारी तबाही का खतरा, UN महासचिव Antonio Guterres ने दी चेतावनी

आतंकी हमलों और परमाणु विस्फोट से भी ज्यादा खतरा दुनिया को तेजी से बदलते जलवायु परिवर्तन से है. तमाम समझौतों और प्रोटोकॉल को ताख पर रख समूचे विश्व में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले तरीकों से एहतियात तक नहीं बरता जा रहा है, जो मानव सभ्यता को विनाश की कगार पर पहुंचा सकता है.   

Last Updated : Nov 5, 2019, 05:56 PM IST
    • डूब जाएंगे दक्षिण एशिया के कई तटीय इलाके
    • 45 फीसदी कार्बन उत्सर्जन कम करने की दी नसीहत
    • पेरिस समझौते को नहीं दी जा रही अहमियत
भारत पर भारी तबाही का खतरा, UN महासचिव Antonio Guterres ने दी चेतावनी

नई दिल्ली: पर्यावरण की बढ़ती समस्याओं को लेकर दुनिया एक साथ कई मंचों पर नजर आई. कई समझौते हुए, कई मुद्दों पर बहस-मुबाहिसे भी, लेकिन जो नहीं हुआ वह ये कि इन शर्तों को वास्तविक पटल पर लागू किया जाए. जब आंकड़ें निकलते हैं तो तू-तू मैं-मैं भी शुरू हो जाती है. एक देश दूसरे देश पर ये दोष मढ़ने लग जाता है कि इसमें एक बड़ा हिस्सा अमुक देश का है. लेकिन तबाही का मंजर सबके लिए एक समान समस्याएं ले कर आता है. और क्योंकि ये किसी एक राष्ट्र के भरोसे ठीक नहीं हो सकता, जाहिर है तमाम देशों के साथ मिल बैठकर एक मसौदे पर पहुंचने की कोशिश की जाती है. इसी खतरे को लेकर थाइलैंड के आसियान सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने दुनिया को आगाह किया. 

डूब जाएंगे दक्षिण एशिया के कई तटीय इलाके

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन  जैसे बड़े खतरे दुनिया को निगलने को तैयार बैठे हैं. महासागरों का बढ़ता स्तर बेहद चिंताजनक विषय है. जर्नल नेचर कम्यूनिकेशंस की ओर से छापे गए एनजीओ क्लाइमेट सेंट्रल के रिपोर्ट के मुताबिक महासागरों का जल स्तर बड़ी तेजी से बढ़ता जा रहा है. अगर इसी तेजी के साथ जलवायु परिवर्तन होता रहा और इस पर लगाम न कसा गया तो इससे उत्पन्न होने वाले खतरे सबसे पहले तटीय इलाकों को काल के गाल में समाने को मजबूर कर देंगे. इसे लेकर महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा कि 2050 तक दुनिया की 30 करोड़ आबादी समुद्र में बह न जाए. इस जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा साइड-इफेक्ट दक्षिण एशियाई देशों पर पड़ेगा. भारत, जापान, चीन और बांग्लादेश जिनका एक बहुत बड़ा भाग समुद्र से घिरा हुआ है, इनके तटीय इलाकों पूरी तरह डूब जाने के कयास भी हैं.    

45 फीसदी कार्बन उत्सर्जन कम करने की दी नसीहत

UN महासचिव ने कहा कि आंकड़े भले थोड़ी-बहुत हेर-फेर वाले हो सकते हैं लेकिन खतरे का स्केल फिर भी उतना ही होगा. दुनिया को साथ मिलकर कार्बन उत्सर्जन को 45 फीसदी तक किसी तरह घटाना ही होगा. मालूम हो कि इस कार्बन उत्सर्जन से वैश्विक ताप में एक निश्चित समयावधि पर 1.5 डिग्री की बढ़ोत्तरी हो रही है. इस बढ़ते ताप से न सिर्फ बर्फ पिघल रहे हैं, बल्कि जीवन-चक्र भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. उन्होंने कहा कि 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को जीरो तक लाने का लक्ष्य निर्धारित कर इसपर काम करना होगा. 

पेरिस समझौते को नहीं दी जा रही अहमियत

मौके पर पहुंचे गुटेरस ने कहा कि दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी एशिया के विकासशील देश जो बिजली उत्पादन के लिए कार्बन का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें विशेष रूप से इन गतिविधियों पर रोक लगानी होगी. मालूम हो कि वैश्विक संगठन में पेरिस समझौते पर सभी राष्ट्रों की ओर से कार्बन कट को लेकर सहमति जताई गई थी. ओबामा प्रशासन के दौरान इस पर सहमति जताने वाले अमेरिका ने ट्रंप प्रशासन में इससे हाथ पीछे खींच लिया. इस समझौते में सभी देशों को इस्तेमाल में लाए जा रहे कार्बन उत्सर्जन को 30 फीसदी तक कम किया जाएगा. फिलहाल यह समझौता किस अवस्था में है, इसकी जानकारी लेने की जरूरत कोई भी देश नहीं समझता. 

आसियान देशों के सम्मेलन में पहुंचे यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरस न सिर्फ इस मंच पर बल्कि दुनिया के कई वैश्विक संगठनों में भी जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं.    

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