नई दिल्ली: International Space Station: स्पेस से जुड़ी कोई भी खबर आप पढ़ते होंगे तो एक नाम 'इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन' बार-बार आपके सामने आता होगा. भारतीय मूल की एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में ही फंसी हुई हैं. दिलचस्प बता ये है अमेरिका और रूस यूं तो एक दूसरे के दुश्मन हैं. लेकिन जब भी इन्हें स्पेस में रिसर्च करनी होती है तो इनके एस्ट्रोनॉट्स इसी स्पेस सेंटर में जाकर रिसर्च करते हैं. अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी NASA और रूस की अंतरिक्ष एजेंसी Roscosmos अक्सर इंटरनेशल स्पेस सेंटर में एस्ट्रोनॉट्स भेजते हैं. आइए, जानते हैं कि ये जगह कैसी है?
कब और किसने बनाया इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन?
सबसे पहले तो ये जान लें कि इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन एक जगह रुका हुआ नहीं है, ये धरती की परिक्रमा करता रहता है. इसे एक कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellite) भी कहा जा सकता है. इस इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन का निर्माण साल 1998 में शुरू हुआ था. अमेरिका और रूस को भले सियासत बांटकर रखती हो, लेकिन विज्ञान ने इनमें दोस्ती कराई थी. यही कारण है कि स्पेस स्टेशन को दोनों देशों ने मिलकर तैयार किया था. इसके बाद यूरोपीय एजेंसी ESA, जापान की स्पेस एजेंसी JAXA, कनाडा की एजेंसी CSA समेत करीब 15 एजेंसियों ने इसके निर्माण में सहयोग किया था. इसको बनाने में 100 अरब डॉलर से अधिक का खर्चा हुआ था.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में क्या सुविधाएं?
धरती से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की दूरी करीब 400 किमी है. यदि आप स्पेसशिप में यहां जाते हैं, तो आपको केवल 4 घंटे का समय लगेगा. ये स्पेस स्टेशन एक छोटी कॉलोनी जैसा है. यहां पर 6 स्लीपिंग क्वार्टर और बाथरूम हैं. हालांकि, खिड़की सिर्फ एक है. इसकी लंबाई 109 मीटर और वजन 450 टन (450000 किलो) है. इसमें सौर ऊर्जा से बिजली बनती है, यह उसी से संचालित होता है.
कितने एस्ट्रोनॉट रह सकते हैं यहां?
चूंकि ये एक बड़ी जगह नहीं है, इसलिए यहां पर एक बार में केवल 7 एस्ट्रोनॉट ही रह सकते हैं. यहां पर अंतरिक्ष यात्रियों का दल आमतौर पर 6 महीने के लिए रुकता है. जब एक ग्रुप वहां से लौट आता है, तो दूसरे ग्रुप को भेजा जाता है. यदि यहां पर एस्ट्रोनॉट्स को किसी जरूरी सामान की दरकार होती है तो कार्गो स्पेस फ्लाइट्स के जरिये ये पहुंचाया जाता है.
90 मिनट का एक दिन
जैसे पृथ्वी पर 24 घंटे का एक दिन होता है, वैसे ही इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में 90 मिनट का एक दिन माना जाता है. इसका कारण ये है कि ये इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन महज 90 मिनट में धरती का चक्कर लगा लेता है. यहां पर 24 घंटे में 16 बार दिन और रात होते हैं.
इंटरनेशल स्पेस स्टेशन कब तक रहेगा?
इंटरनेशल स्पेस स्टेसन को फिलहाल डीकमीशन नहीं किया जाएगा. यह 2031 तक चलता रहेगा. इसके बाद इसे हटाया जा सकता है. मुमकिन है कि इसके बाद दुनिया की अंतरिक्ष एजेंसियां एक बार फिर नया इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बनाएं. हालांकि, इस स्पेश स्टेशन पर भी कई बार खतरा मंडराया है. स्पेस के कचरे की वजह से इसकी 30 ज्यादा बार जगह बदली गई थी.
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