पश्चिम बंगाल चुनाव में ये फैक्टर रहेंगे अहम! इस मामले में BJP पर भारी पड़ रही हैं ममता बनर्जी
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पश्चिम बंगाल चुनाव में ये फैक्टर रहेंगे अहम! इस मामले में BJP पर भारी पड़ रही हैं ममता बनर्जी

West Bengal Assembly Election 2021: पिछला चुनावों की बात करें तो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 211 सीटों पर फतह का परचम लहराया था.

पश्चिम बंगाल चुनाव में ये फैक्टर रहेंगे अहम! इस मामले में BJP पर भारी पड़ रही हैं ममता बनर्जी

West Bengal Assembly Election 2021: पश्चिम बंगाल समेत 5 राज्यों में चुनावी बिगुल बज चुका है. बंगाल में 27 मार्च से 8 चरणों मतदान होना है. इसके बाद 1 अप्रैल, 6 अप्रैल, 10 अप्रैल, 17 अप्रैल, 22 अप्रैल, 26 अप्रैल और 29 अप्रैल को पश्चिम बंगाल की 294 सीटों पर वोटिंग होगी. जिसके नतीजों का ऐलान 2 मई को किया जाएगा. 

पिछले चुनावों में TMC को मिली थीं 211 सीटें
पिछला चुनावों की बात करें तो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 211 सीटों पर फतह का परचम लहराया था. इसके बाद दूसरे नंबर पर कांग्रेस पार्टी रही थी. जिसने महज़ 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार के चुनाव पिछले बार से काफी अलग हैं. भाजपा और टीएमसी के दरमियान सीधी टक्कर देखने को मिल रही है और दोनों ही पार्टियों ने अपना पूरा दमखम झोका हुआ है. आइए नज़र डालते हैं इस बार के बड़े चुनावी फैक्टर्स पर. 

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बाहरी VS बंगाल फैक्टर
देखा जा रहा है कि इस बार बंगाल की राजनीति में सबसे बड़ा फैक्टर "बाहरी बनाम बंगाली" का सामने आ रहा है. इस फैक्टर को बंगाली अस्मिता से जोड़कर देखा जा रहा है. इसका फायदा बंगाल की सीएम ममबा बनर्जी उठाती नजर आ रही हैं. वे अपनी चुनावी रैलियों में भाजपा पर बाहरी होने का आरोप लगा रही हैं. पिछले दिनों एक जनसभा को खिताब करते हुए उन्होंने कहा कि बंगाल में बंगाली राज करेगा गुजराती नहीं. 

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जाति फैक्टर
जाति फैक्टर भी इस बार के चुनावों में जोरों से उछल रहा है. भाजपा और टीएमसी दोनों ही पार्टियां सभी जातियों को साधने के पर लगी हुई हैं. जाति फैक्टर का नाम आते ही सबसे पहले मतुआ समुदाय का जिक्र आता है. मतुआ समुदाय बंगाल में अनुसूचित जनजाति की आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है. इस जाति का बंगाल की करीब 70 सीटों पर सीधा असर है. इसीलिए भारतीय जनता पार्टी इस जाति का दिल जीतने में लगी हुई है. पिछले दिनों ही देखा गया है कि बीजेपी नेता मतुआ समुदाय के लोगों के घरों में और वहां भोजन भी किया. पिछले चुनावों में मतुआ समुदाय की वजह से टीएमसी को शानदार जीत मिली थी. 

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'M' फैक्टर
'M' फैक्टर भी इस बार के चुनावों में अहम भूमिका निभाने वाला है. क्योंकि खुद को मुसलमानों का नेता कहने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM बिहार में अपनी हाजिरी दर्ज कराने के बाद बंगाल में कूद गई है. ऐसे में उम्मीद लगाई जा रही है कि ओवैसी के आने से ममता बनर्जी का खासा नुकसान उठाना पड़ेगा. ओवैसी फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के राब्ते में बने हुए हैं और उनके साथ मिलकर ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम वोटों के अपने पाले में करना चाहते हैं. यहां यह बता दें कि पश्चिम बंगाल की कुल आबादी में 30 फीसद मुस्लिम हैं और अभी तक मुस्लिम वोट TMC या कांग्रेस पास जाता करता था लेकिन फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के नई पार्टी लॉन्च करने और उनके साथ असदुद्दीन ओवैसी के आने से मुस्लिम वोटों का ध्रविकरण होनी लाज़मी है. जिसका सीधा नुकसान टीएमसी को होगा. 

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