Kamalnath in Politics: कांग्रेस के दिग्गज नेता इस लोकसभा चुनाव में बहुत कम स्क्रिय रहे. ऐसे में उन पर सवाल उठने लगे हैं. लोग पूछने लगे हैं कि क्या कमलनाथ और कांग्रेस के दरमियान सब ठीक है?
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Kamalnath in Politics: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सीनियर नेता कमल नाथ इस बार के लोकसभा चुनाव में पिछले चुनावों जैसे सक्रिय नजर नहीं आए. यही कारण है कि उनकी कम हुई सक्रियता पर सवाल उठाए जा रहे हैं. कभी कमल नाथ के करीबी रहे और वर्तमान में भाजपा नेता सैयद जाफर ने कमल नाथ और हाईकमान के बीच बढ़ती दूरी की तरफ इशारा किया है.
कमल नाथ नें नहीं किया प्रचार
सैयद जाफर ने कमल नाथ के प्रदेश और देश में चुनाव के दौरान ज्यादा सक्रिय न रहने का जिक्र करते हुए एक्स पर लिखा, "आखिर क्यों देश और प्रदेश की राजनीतिक गतिविधियों से गायब हैं कमल नाथ. न मध्य प्रदेश में दिख रहे, न देश में. छिंदवाड़ा चुनाव के बाद कमल नाथ ने देश-प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार क्यों नहीं किया. क्या कांग्रेस आलाकमान और कमल नाथ के बीच दूरियां बढ़ी हैं."
कांग्रेस और कमलनाथ
सवालिया अंदाज में सैयद जाफर ने आगे लिखा, "कांग्रेस की गतिविधियों में क्यों सक्रिय नहीं हैं कमल नाथ. कमल नाथ और कांग्रेस आलाकमान के बीच सब ठीक तो है न?" सैयद जाफर ने एक्स पर गांधी परिवार और कमल नाथ के रिश्तों को दर्शाने वाली कई तस्वीरें भी साझा की हैं. कमल नाथ इन तस्वीरों में इंदिरा गांधी, संजय गांधी के साथ नजर आ रहे हैं. किसी दौर में सैयद जाफर की पहचान कमल नाथ के करीबी नेताओं में हुआ करती थी. जाफर लगभग तीन दशक से सियासी तौर पर सक्रिय हैं और उन्हें कमल नाथ के प्रतिनिधि के तौर पर छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र में पहचाना जाता रहा है. लोकसभा चुनाव से पहले जाफर ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया.
भाजपा और छिंदवाड़ा
भाजपा ने इस लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा सीट पर जीत दर्ज करने के लिए खास रणनीति बनाई और उसी के चलते कमल नाथ के कई करीबी भाजपा में शामिल हुए. इनमें पूर्व विधायक दीपक सक्सेना और विधायक कमलेश शाह सहित कई अन्य नेता शामिल हैं. इस बड़े दल बदल के कारण छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र का चुनाव काफी रोचक रहा. राज्य में लोकसभा की कुल 29 सीटें हैं और पिछले चुनाव में भाजपा को 28 स्थान पर जीत मिली थी. वहीं सिर्फ एक स्थान छिंदवाड़ा कांग्रेस के खाते में आया था. छिंदवाड़ा को कांग्रेस और कमल नाथ के गढ़ के तौर पर पहचाना जाता है, लिहाजा भाजपा ने छिंदवाड़ा को जीतने के लिए सारा जोर लगाया. अब 4 जून को पता चलेगा कि छिंदवाड़ा किसके पाले में जाता है.