प्रवीण कुमार
गुजरात में सत्ता की हैट्रिक लगाने के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की चाहत अब कांग्रेस मुक्त भारत का निर्माण करना है और यह तभी होगा जब नरेंद्र मोदी देश का प्रधानमंत्री बनें। कहते हैं कि राजनीति में सबको सब-कुछ नहीं मिलता है, लेकिन भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी ऐसे इकलौते राजनेता हैं जिन्होंने जब जो चाहा मिला, भले ही उसे पाने के लिए उन्हें बहुतेरे चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अब प्रधानमंत्री की चाहत के साथ भी नरेंद्र मोदी के समक्ष चुनौतियां आएंगी। लेकिन मोदी को करीब से जानने वाले कहते हैं कि मोदी देश का प्रधानमंत्री बनने के रास्ते में आने वाली तमाम चुनौतियों का सामना करेंगे और एक दिन प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजेंगे। कुछ ऐसी ही उम्मीदों से उत्साहित होकर भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों की कमान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी है।
गोवा में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दूसरे और आखिरी दिन रविवार (9 जून 2013) को नरेंद्र मोदी को पार्टी की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया गया। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और उनके खेमे के अन्य नेताओं के तमाम विरोध को दरकिनार करते हुए `चुनाव अभियान समिति` के अध्यक्ष पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का ऐलान किया। इस बहुप्रतीक्षित ऐलान के बाद यह तय माना जा रहा है कि भाजपा में अब मोदी युग का शुभारंभ हो चुका है और आडवाणी समते उन तमाम उम्रदराज नेताओं का वक्त खत्म हो चुका है, जो गाहे-ब-गाहे पार्टी के अंदर उठापटक की वजह बनते रहे हैं। भाजपा अब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आगे बढ़ने का मन बना लिया है।
यह सर्वविदित है कि नरेंद्र मोदी एक बेहद महत्वाकांक्षी राजनेता हैं। बड़ी सोच और बेहद आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने की एक चाहत, एक ललक ने नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में दोबारा से पदस्थापित किया है। गुजरात में सत्ता की हैट्रिक लगाने के बाद पार्टी में इस बात की सुगबुगाहट तेज हो गई थी कि मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए। भाजपा नेतृत्व ने अपने कार्यकर्ताओं को सम्मान दिया और नरेंद्र मोदी को पार्टी की संसदीय समिति में शामिल किया गया। मोदी भाजपा शासित राज्यों के ऐसे इकलौते मुख्यमंत्री हैं जिन्हें भाजपा संसदीय समिति का भी सदस्य बनाया गया है। पार्टी कार्यकर्ताओं ने फिर से अपनी आवाज बुलंद की और प्रधानमंत्री पद की दावेदारी का पक्ष मजबूत करते हुए मोदी को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बना दिया गया।
दरअसल चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष पद काफी अहम और चुनौतियों से भरा होता है। चुनाव जीतने का श्रेय भले ही न मिले, लेकिन चुनाव हारने का ठीकरा जरूर चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष पर फोड़ दिया जाता है। इस लिहाज से नरेंद्र मोदी को ताज तो मिला है लेकिन कांटों से भरपूर। `ताज` इसलिए क्योंकि अगर मिशन-2014 की महफिल लूटने में मोदी कामयाब हो गए तो फिर उन्हें प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक भाजपा में लोकसभा चुनावों के लिए मोदी को दो चरणों में आगे बढ़ाने का `गेम प्लान` है। अभी मोदी को भाजपा की प्रचार समिति (चुनाव अभियान समिति) का अध्यक्ष बनाया गया है। इसके बाद जैसे ही लोकसभा चुनावों की घोषणा होगी, उन्हें भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाएगा।
प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के रास्ते में आने वाली चुनौतियों का अगर जिक्र करें तो सबसे पहले मोदी को पार्टी के अंदर सत्ता संतुलन स्थापित करना होगा। पूर्व के अनुभवों से सीख लेते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि राष्ट्रीय व प्रांतीय दोनों ही स्तर पर पार्टी में सभी नेता व कार्यकर्ता एकजुट होकर मिशन-2014 के लिए काम करें। आज से ही यह तय कर लेना होगा कि पार्टी में कोई कल्याण सिंह, उमा भारती, येदियुरप्पा या फिर केशुभाई पटेल कोई नहीं बनेगा। यह स्थिति बड़ी हास्यास्पद होती है क्योंकि बागी तेवर अपनाकर ना तो अलग पार्टी बनाने वाले बागी नेता को फायदा होता है और न ही भाजपा को। दोनों ही नुकसान की स्थिति में होते हैं। कहने का मतलब यह कि मोदी के सामने पार्टी में सत्ता संतुलन एक बड़ी चुनौती होगी और इसे अगर मोदी ने साध लिया तो आधी जंग इसके साथ ही जीत जाएंगे।
जैसा कि नरेंद्र मोदी गोवा में अपने संबोधन में कह भी चुके हैं कि कांग्रेस ने देश का भरोसा तोड़ा है। यह `भरोसा` शब्द भी एक चुनौती है मोदी के लिए। आप देश की जनता को कैसे भरोसा दिलाएंगे कि अगर 2014 में भाजपा की सरकार बनी तो भ्रष्टाचार मिट जाएगा, महंगाई का खात्मा होगा, बेटियां असुरक्षित नहीं रहेंगी, सर्व धर्म सम्भाव की अस्मिता को ठोस नहीं पहुंचेगी, युवा बेरोजगार नहीं रहेंगे, देश में नक्सली हमला नहीं होगा, सबको बिजली का हक आदि-आदि। पार्टी को इन अहम समस्याओं को लेकर एक ठोस एजेंडा देश के सामने रखना होगा और सिर्फ रखने से नहीं होगा, बल्कि मतदाता को यह समझ में आना चाहिए कि हां, इस एजेंडे से वाकई उसका भला होगा। गलतियां अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार से भी हुई है। तो मोदी के लिए दूसरी बड़ी चुनौती `भरोसा` कायम करना होगा। अगर मोदी अपने चुनावी अभियान की कुशलता से लोगों में कांग्रेस के प्रति टूटा भरोसा भाजपा से जोड़ पाए तो मोदी की कामयाबी को कोई रोक नहीं पाएगा।
बहरहाल, लोकसभा के चुनाव में एक साल से भी कम समय का वक्त रह गया है। छोटी-बड़ी चुनौतियां आती रहेंगी जिसपर गौर करते हुए मोदी को मंजिल तय करनी होगी। यह भी ध्यान में रखना होगा कि भाजपा सत्ता से बाहर है और विपक्ष की बड़ी व महती भूमिका में भी है। देश कांग्रेस के एक विकल्प के रूप में भाजपा और विशेष रूप से नरेंद्र मोदी को देख रहा है। निश्चित रूप से देश में नरेंद्र मोदी के पक्ष में एक लहर सी चल रही है लेकिन इस लहर को भाजपा चुनाव में अपने पक्ष में कितना भुना पाती है इसपर ही भारतीय जनता पार्टी का भविष्य तय होगा। हालांकि नरेंद्र मोदी चाहत और चुनौती के खेल में काफी माहिर माने जाते हैं। राजनीति में टाइमिंग की भूमिका अहम होती है। शतरंज की बिसात पर किस समय शह देना है ताकि प्रतिद्वंद्वी के पास बचने के लिए कोई घर नहीं बचे और वह मात हो जाए, यह मोदी से बेहतर कोई नहीं जानता। लेकिन गुजरात और भारत में जमीन-आसमान का अंतर है। इसका ध्यान उन्हें रखना होगा।