आलोक कुमार राव
दमिश्क के बाहरी इलाके में कथित रासायनिक हमले के बाद अमेरिका और पश्चिमी देश सीरिया पर हमले का मन करीब-करीब बना चुके हैं। रिपोर्टों पर विश्वास करें तो सीरिया को चौतरफा घेर लिया गया है। भूमध्यसागर में अमेरिका और फ्रांस के युद्धपोत सीरिया के करीब हैं तो साइप्रस स्थित अक्रोतिरी एयरबेस में ब्रिटेन के लड़ाकू विमान हमले के लिए तैयार हैं। यानी हमले के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की फौजों को अब राष्ट्रपति बराक ओबामा के इशारे का इंतजार है।
सवाल है कि जिस कथित रासायनिक हमले की दुहाई देकर अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन सीरिया पर हमले के लिए अपनी आस्तीनें चढ़ा चुके हैं, वह हमला हुआ भी है कि नहीं, यह अभी साफ नहीं हो सका है। इस कथित रासायनिक हमले की जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र की टीम सीरिया में मौजूद है और उसने अभी अपनी रिपोर्ट नहीं दी है। खुद सीरिया भी इस तरह के किसी रासायनिक हमले की बात से इंकार कर चुका है। राष्ट्रपति बशर अल असद ने कहा है कि उनकी सेना ने रासायनिक हमले नहीं किए हैं।
दमिश्क के बाहरी इलाके अल घौता में जिस रासायनिक हमले का दावा किया जा रहा है, वह सेना के नियंत्रण में और वहां सेना और सरकार के लोग हैं। ऐसे में सेना वहां अपने ही लोगों के खिलाफ इस तरह का जघन्य अपराध क्यों करेगी। असद ने आरोप लगाया है कि विद्रोही सरकार को दोषी ठहराने के लिए ऐसे तिकड़मों का सहारा ले रहे हैं।
सीरिया पर हमले को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी एकमत नहीं है। सीरिया के प्रबल समर्थक देश रूस और ईरान ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के इस आक्रामक रुख पर गंभीर चिंता जताई है। चीन भी सीरिया पर हमले के खिलाफ है। ईरान ने कहा है कि सीरिया पर अगर हमला हुआ तो इसके गंभीर दुष्परिणाम सामने आएंगे। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने लंदन और पेरिस के बयानों पर चिंता जताई है कि नाटो सीरिया में रासायनिक हथियारों को नष्ट करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सहमति के बगैर दमिश्क में दखल दे सकता है।
सवाल है कि असद की सेना ने गत 22 अगस्त को क्या वाकई में दमिश्क के बाहरी इलाके में रासायनिक हमला किया (सीरियाई विपक्ष का दावा है कि इस हमले में करीब 800 लोग मारे गए)। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट से पहले सीरिया में सैन्य हस्तक्षेप के लिए उतारू अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन के उतावलेपन को दुनिया देख रही है। विश्व समुदाय यह भी नहीं भूला है कि रासायनिक हथियारों की आड़ में अमेरिका ने इराक में क्या खेल खेला।
राष्ट्रपति असद का मानना है कि सीरिया पर हमले को लेकर अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों के अपने हित हैं, जो किसी बहाने उन्हें सत्ता से बाहर करना चाहते हैं। सीरिया के मौजूदा आंतरिक हालात के लिए उन्होंने टर्की, इजरायल और सऊदी अरब को जिम्मेदार ठहराया है।
यह सही है कि सीरिया में पिछले दो वर्षों से हिंसा, रक्तपात और अराजकता का माहौल है। रिपोर्टों पर विश्वास करें तो इस सेना और विद्रोहियों के इस संघर्ष में अब तक हजारों लोग अपनी जान गवां चुके हैं। असद शासन इस संघर्ष को रोकने और देश में स्थायित्व लाने में नाकाम रहा है। सीरिया पर हमला समस्या का हल नहीं है बल्कि इससे क्षेत्र में नई समस्यांए पैदा होंगी। यह सही है कि असद सेना और विपक्ष दोनों ने युद्ध अपराध किए हैं लेकिन इस आग को पश्चिमी देश नहीं बुझा सकते।
ऐसे में संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के ताकतवर देश सीरिया और विपक्ष को विश्वास में लेकर ईमानदारी से बातचीत का प्रयास करें तो स्थितियां बदल सकती हैं। लेकिन मौजूदा समय में दोनों पक्षों में इसका अभाव दिख रहा है। अमेरिका और उसके सहयोगी देश सीरिया को तबाह करने में यदि सफल भी हो गए (जैसा कि उन्होंने इराक और लीबिया में किया) तो पश्चिम एशिया के इस देश का स्वरूप एक अराजक एवं अस्थिर देश का होगा। अस्थिर और अराजक सीरिया समूचे पश्चिम एशिया एवं विश्व बिरादरी के लिए समस्यांए खड़ी करेगा। इसलिए जरूरी है कि ओबामा और पश्चिमी देश आगे बढ़ने से पहले अपने इस कदम पर एक बार फिर विचार कर लें।