सुब्रत राय की अर्जी पर SC में सुनवाई पूरी, रिहाई पर फैसला बाद में

सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह प्रमुख सुब्रत राय की उस याचिका पर आज सुनवाई पूरी कर ली जिसमें राय ने निवेशकों की 20 हजार करोड़ रूपए से अधिक की रकम नहीं लौटाने से संबंधित मामले में उन्हें जेल भेजने के कोर्ट फैसले को चुनौती दी गई है। लेकिन रिहाई पर फैसला बाद में सुनाएगी। राय अभी जेल में ही रहेंगे।

ज़ी मीडिया ब्यूरो
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह प्रमुख सुब्रत राय की उस याचिका पर आज सुनवाई पूरी कर ली जिसमें राय ने निवेशकों की 20 हजार करोड़ रूपए से अधिक की रकम नहीं लौटाने से संबंधित मामले में उन्हें जेल भेजने के कोर्ट फैसले को चुनौती दी गई है। लेकिन रिहाई पर फैसला बाद में सुनाएगी। राय अभी जेल में ही रहेंगे। राय और दो निदेशक चार मार्च से तिहाड़ जेल में बंद हैं। न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ की दो सदस्यीय खंडपीठ ने सुब्रत राय और दो निदेशकों की जमानत के लिये दस हजार करोड़ रुपए का भुगतान करने के सहारा के प्रस्ताव पर भी विचार करने की सहमति दे दी है।
इस मामले में यह पीठ बाद में फैसला सुनाएगी। सहारा समूह ने अपने नए प्रस्ताव में आज कोर्ट को भरोसा दिलाया कि वह तीन से चार कार्य दिवसों के भीतर ही 3 हजार करोड रुपए का भुगतान करेगा और 2 हजार करोड़ रुपए नकद 30 मई तक दे देगा। समूह ने यह भी कहा है कि वह 20 जून से पहले 5 हजार करोड़ रुपए की बैंक गारंटी भी दे देगा।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले कहा था कि यदि राय 10 हजार करोड़ रुपए का भुगतान करें तो उन्हें जमानत पर छोड़ दिया जाएगा। इस राशि में से 5 हजार करोड़ रुपए बैंक गारंटी के रूप में और शेष रकम नकद जमा करानी थी। राय और समूह के दो निदेशक निवेशकों के 20 हजार करोड़ रुपए बाजार नियामक सेबी के पास जमा कराने के शीर्ष अदालत के आदेश पर अमल नहीं करने के कारण चार मार्च से न्यायिक हिरासत में हैं।
सहारा समूह का कहना था कि राय को तत्काल रिहा किया जाए ताकि वह शीर्ष अदालत के आदेश का पालन करने के लिए धन की व्यवस्था करने के लिये लोगों से बातचीत कर सकें। सहारा ने बैंक खातों पर लगी पिछले साल 21 नवंबर से लगी रोक हटाने का भी अनुरोध किया था। इस बीच, सेबी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द दातार ने सहारा की विभिन्न कंपनियों की लेखा पुस्तकों पर सवाल उठाये जिसका सहारा ने पुरजोर विरोध किया।
सुब्रत राय ने इससे पहले दलील दी थी कि निवेशकों का 20 हजार करोड़ रुपया सेबी के पास जमा नहीं कराने के कारण उन्हें हिरासत में रखने का शीर्ष अदालत का आदेश गैर कानूनी और असंवैधानिक है और उन्होंने इस आदेश को निरस्त करने का अनुरोध किया था।

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