किशनगंगा: उर्जा उत्पादन में 5% कमी का सामना कर सकता है भारत

भारत को जम्मू कश्मीर में अपनी निर्माणाधीन किशनगंगा जलविद्युत परियोजना से बिजली उत्पादन में पांच प्रतिशत वार्षिक कमी होने की आशंका है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय (इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्ब्रिटेशन) ने पाकिस्तान को तय मात्रा में पानी छोड़ने का फैसला सुनाया है।

नई दिल्ली : भारत को जम्मू कश्मीर में अपनी निर्माणाधीन किशनगंगा जलविद्युत परियोजना से बिजली उत्पादन में पांच प्रतिशत वार्षिक कमी होने की आशंका है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय (इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्ब्रिटेशन) ने पाकिस्तान को तय मात्रा में पानी छोड़ने का फैसला सुनाया है। हेग स्थित अदालत ने गत वर्ष दिसम्बर में फैसला सुनाया था कि भारत को पर्यावरणीय कारणों से किशनगंगा नदी (पाकिस्तान में नीलम नदी के रूप में जाने जाने वाली नदी) में न्यूनतम नौ क्युमेक्स (क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड) पानी छोड़ना चाहिए।
जल संसाधन मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, ‘‘इससे प्रतिवर्ष पांच प्रतिशत उर्जा उत्पादन प्रभावित होगा।’’ इस परियोजना को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि किशनगंगा पर बने एक बांध स्थल से पानी झेलम नदी की सहायक नदी बोनार नाला में सुरंगों की एक प्रणाली से मोड़ा जाएगा। इससे गुजरने वाला पानी 330 मेगावाट क्षमता वाले टरबाइन को शक्ति प्रदान करेगा। सूत्रों के अनुसार आदेश के तहत नौ क्यूमेक्स पानी छोड़ने से वर्ष के उन चार महीनों के दौरान बिजली उत्पादन प्रभावित हो सकता है जब जलप्रवाह कम हो जाता है।
बाढ़ के दिनों के दौरान जल प्रवाह 1000 क्यूमेक्स रहता है जो मार्च से सितम्बर के दौरान पर्याप्त रहता है। यह प्रवाह नवम्बर से फरवरी के बीच 30 क्यूमेक्स से कम रहता है। इन चार महीनों के दौरान जलप्रवाह 30 से चार क्यूमेक्स तक रहता है। सूत्रों ने बताया कि अदालत के आदेश के बाद भारत उन दिनों के दौरान पानी को बिजली उत्पादन के लिए नहीं मोड़ सकता जब जलप्रवाह नौ क्यूमेक्स से कम हो जाता है। इससे 330 मेगावाट बिजली उत्पादन परियोजना प्रभावित होगी और इससे एक वर्ष में पांच प्रतिशत नुकसान होने का अनुमान है।
गत वर्ष अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने भारत को एक बड़ी राहत देते हुए पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज कर दिया था और जम्मू कश्मीर में बिजली उत्पादन के लिए जलप्रवाह मोड़ने के भारत के अधिकार को बरकरार रखा था। अदालत ने यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों उसके निर्णय पर, किशनगंगा नदी का जलप्रवाह पहली बार मोड़ने के सात वर्ष के बाद ‘परमानेंट इंडस कमीशन एंड द मेकेनिज्म ऑफ द इंडस वाटर्स ट्रीटी’ के जरिये पुनर्विचार की मांग कर सकते हैं। (एजेंसी)

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