अब पीसी पारेख की किताब में जिक्र-`कैबिनेट मंत्रियों को काबू में नहीं रख पाए मनमोहन`

पूर्व कोयला सचिव पी.सी. पारख ने कहा है कि शिबू सोरेन और दसारी नारायण राव जैसे विभिन्न कोयला मंत्रियों और लगभग हर राजनीतिक दल के सांसदों ने कोयला मंत्रालय में सुधारों के प्रयासों को पलीता लगाया जबकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का सुधारों को पूरा समर्थन था।

नई दिल्ली : पूर्व कोयला सचिव पी.सी. पारख ने कहा है कि शिबू सोरेन और दसारी नारायण राव जैसे विभिन्न कोयला मंत्रियों और लगभग हर राजनीतिक दल के सांसदों ने कोयला मंत्रालय में सुधारों के प्रयासों को पलीता लगाया जबकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का सुधारों को पूरा समर्थन था। पारख की राय है कि अगर ये सुधार सिरे चढ़ते तो करोड़ों रुपए के कोयला ब्लाक आवंटन घोटाले से बचा जा सकता था।
पारख ने यहां संवाददाताओं से कहा, 'इन दो मंत्रियों ने कोयला ब्लाकों को खुली नीलामी के जरिए आवंटित करने के मेरे प्रस्ताव का जमकर विरोध किया। दुर्भाग्य से, प्रधानमंत्री 2004 में मेरे द्वारा पेश प्रस्ताव पर अपने मंत्रियों को काबू में नहीं रख पाए। मंत्रालय में मैंने देखा कि सार्वजनिक उप्रकमों (पीएसई) के मुख्य कार्यकारियों व निदेशकों की नियुक्ति कैसे होती है। वह यहां अपनी किताब 'क्रूसेडर ऑर कांस्पीरेटर? कोलगेट एंड अदर ट्रूथ्स' के विमोचन के बाद संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे।
पारख ने कहा, 'निदेशकों व मुख्य कार्यकारियों की नियुक्ति के लिए खुला पैसा मांगा जाता है। मैंने सांसदों को ब्लैकमेलिंग करते व वसूली करते हुए देखा। इन सांसदों ने अधिकारियों को ब्लैकमेल किया, इन्होंने सरकारी कंपनियों के मुख्य कार्यकारियों को ब्लैकमेल किया। मैंने देखा कि किस तरह मंत्रियों ने प्रधानमंत्री के फैसले को पलटा जबकि प्रधानमंत्री कोयला प्रखंडों की ऑनलाइन नीलामी के प्रस्ताव पर सहमत हो गए थे।'
पारख ने कहा, 'हमने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं जिसमें सरकारी अधिकारियों के लिए ईमानदारी व सम्मान के साथ काम करना मुश्किल हो गया है।' पारख (68 वर्ष) दिसंबर 2005 में सेवानिवृत्त हो गये। उन्होंने, हालांकि, यह भी कहा कि कोयला सचिव के रूप में उनके कार्यकाल में जो भी उपलब्धियां हासिल की गई वे उस दौरान की गई जबकि कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के पास था।
उन्होंने कहा, 'जब मैं कोयला मंत्रालय में था, प्रधामंत्री ने मुझे पूरा समर्थन दिया। कोयला मंत्रालय में जो भी बदलाव आए वे प्रधानमंत्री के कारण आए। उन्होंने कोयला मंत्रालय में सुधारों का समर्थन किया। मनमोहन सिंह की सक्रिय भूमिका के चलते ही हम बहुत सारा काम करने में सक्षम रहे।' यह पूछे जाने पर कि यदि सुधारों को लागू कर दिया गया होता तो क्या करोड़ों रुपए के कोलगेट घोटाले को रोका जा सकता था तो पारेख का जवाब था, 'जी, अगर प्रधानमंत्री ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया होता तो ऐसा (बचाव) हो सकता था।'
सीबीआई द्वारा कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले में दर्ज एक प्राथमिकी में पारख को भी नामजद किया गया है। पारख ने कहा कि अगर कोयला ब्लाकों की खुली नीलामी तथा कोयले की आनलाइन ब्रिकी की व्यवस्था प्रस्तावों के अनुसार कर दी गई होती तो यह पक्का था कि किसी तरह घोटाला नहीं हो पाता। उन्होंने कहा, 'सौभाग्य से प्रधानमंत्री फिर कोयला मंत्री बन गए और मैं कोयले की ई--मार्केटिंग संबंधी आदेश को लागू करने में कामयाब रहा।'
ओड़िशा में तालाबिरा-दो कोयला ब्लाक के आवंटन मामले में उनके खिलाफ दायर सीबीआई की एफआईआर के बारे में पूछे जाने पर इस पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा, 'सीबीआई कहती है कि वहां कोई षड्यंत्र रचा गया था, मैं नहीं कह रहा कि वहां षड्यंत्र किया गया लेकिन अगर सीबीआई मानती है कि कोई षड्यंत्र रचा गया तो यह षड्यंत्र उन लोगों के बीच होता है जो फैसला करते हैं।'
पारख ने कहा, 'इस तरह आपके सामने प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अंतिम फैसला किया। इसलिए अगर मैं षड्यंत्र का हिस्सा हूं तो वह (प्रधानमंत्री) भी उस षड्यंत्र का हिस्सा होने चाहिए।' सीबीआई ने अपनी प्राथमिकी में इस मामले में पारख के साथ-साथ हिंडाल्को के चेयरमैन कुमारमंगलम बिड़ला को भी नामजद किया है। उन पर हिंडाल्को के पक्ष में कोयला प्रखंड के आवंटन के लिए षड्यंत्र रचने का आरोप है। उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत न्यायधीश जी.एस. गांगुली और पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर. सुब्रमणियम ने पुस्तक को आज यहां जारी किया।
उल्लेखनीय है कि पारख की यह किताब लोकसभा चुनावों के दौरान व ऐसे समय में आई है जबकि प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की विवादास्पद किताब भी हाल ही में आई है। इस बारे में एक सवाल के जवाब में पारख ने कहा कि पुस्तक पर पिछले दो-तीन साल से काम हो रहा था, इसका लोकसभा चुनाव से कोई लेनादेना नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं पिछले दो-तीन साल से पुस्तक को लिख रहा था, लेकिन कैग की रिपोर्ट और सीबीआई जांच के बाद मैंने इसमें एक अध्याय और जोड़ा।’’
पारख ने कहा, 'इनाम के रूप में सीबीआई ने छापा मारा। मेरी किताब हमारी राजनीतिक प्रणाली व सिविल सेवाओं में अपकर्ष के बारे में है।' इस अवसर पर पारख की पत्नी व बेटी भी मौजूद थीं। उन्होंने सांसदों द्वारा 'ब्लैकमेलिंग' के बारे में केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) को शिकायत की थी। पारख ने कहा कि उन्होंने सांसदों व राजनेताओं द्वारा कोयला ब्लाकों के पसंदीदा आवंटन के लिए ब्लैकमेलिंग के बारे में सीवीसी को बताया था। मुझे नहीं पता कि उसके बाद क्या हुआ। मेरे कार्यकाल में तो कुछ नहीं हुआ।
हालांकि, पूर्व कोयला सचिव ने अपनी किताब को किसी तरह का राजनीतिक रंग देने से इनकार किया और कहा कि उनकी किताब कांग्रेस या कोयला ब्लाक के बारे में नहीं है। उन्होंने कहा, 'यह अनेक राजनीतिक दलों के बारे में है। इस प्रक्रिया में यह जिक्र करती है कि प्रधानमंत्री अपने द्वारा किए गए फैसले को लागू नहीं कर पाए।'
पारख ने कहा, 'मेरी किताब में सभी तरह के राजनीतिक लोगों के बारे में जानकारी है। यह केवल कांग्रेस पार्टी के खिलाफ नहीं बल्कि समूची राजनीतिक प्रणाली के खिलाफ है।' (एजेंसी)

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