UPA की कोई विदेश नीति नहीं थी, पड़ोसी देशों का भी ख्याल नहीं रखा : नटवर सिंह

पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह ने संप्रग सरकार में 10 वर्षों तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह की जमकर आलोचना की है और कहा है कि इस पूर्व प्रधानमंत्री ने सत्ता में रहने के बाद कोई विरासत नहीं छोड़ी। मनमोहन सरकार में विदेश मंत्री रह चुके नटवर ने अपनी जीवन ‘वन लाइफ इज नाट एनफ’ में कहा है कि उस वक्त विदेश मंत्रालय ‘हतोत्साहित’ था क्योंकि इसे प्रधानमंत्री के कार्यालय से चलाया जा रहा था।

UPA की कोई विदेश नीति नहीं थी, पड़ोसी देशों का भी ख्याल नहीं रखा : नटवर सिंह

नई दिल्ली : पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह ने संप्रग सरकार में 10 वर्षों तक देश के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह की जमकर आलोचना की है और कहा है कि इस पूर्व प्रधानमंत्री ने सत्ता में रहने के बाद कोई विरासत नहीं छोड़ी। मनमोहन सरकार में विदेश मंत्री रह चुके नटवर ने अपनी जीवन ‘वन लाइफ इज नाट एनफ’ में कहा है कि उस वक्त विदेश मंत्रालय ‘हतोत्साहित’ था क्योंकि इसे प्रधानमंत्री के कार्यालय से चलाया जा रहा था।

उन्होंने लिखा है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री पद को इतिहास कैसे आंकेगा? इसे या तो शुरुआती तौर पर उदासीन अथवा काफी निचले पायदान पर आंका जाएगा, मनमोहन सिंह की विरासत क्या है? दुखद है कि कुछ भी नहीं है।

नटवर सिंह संप्रग की पहली सरकार में विदेश मंत्री थे और 2006 में तेल के बदले अनाज घोटाले के मामले में नाम आने के बाद इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कहा, ‘वह (मनमोहन) किसी अपमान को नहीं भूलते, लेकिन वह भावनाओं को छिपा लेने में माहिर हैं।’

नटवर ने लिखा है, ‘जहां तक मनमोहन सिंह की विदेश नीति का मामला है, वह तो थी ही नहीं..मामले उस वक्त बदतर हो गए, जब प्रधानमंत्री ने अपने एक पूर्व कैबिनेट सहयोगी को विशेष दूत के तौर पर जापान भेजा हालांकि तोक्यो में हमारे वरिष्ठ राजदूत मौजूद थे।’ उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने तक विदेश नीति पर राष्ट्रीय स्तर पर आम सहमति थी। उन्होंने कहा कि अमेरिका को समायोजित करने के लिए वह नरम पड़ गए, यहां तक कि उस समय भी जब अमेरिका ने उदासीनता दिखाई।

नटवर ने कहा, ‘भारत सहित बहुत से देशों की अमेरिका द्वारा जासूसी कराए जाने के खिलाफ भारत ने एक शब्द भी नहीं बोला। उस प्रधानमंत्री से कोई क्या उम्मीद करेगा जिसने एक बार राष्ट्रपति जॉर्ज बुश से कहा था, ‘श्रीमान राष्ट्रपति, भारत के लोग आपसे बहुत प्रेम करते हैं। उनके दिमाग में किन भारतीयों का खयाल था?’ पूर्व विदेश मंत्री ने कहा, ‘हमारे पड़ोसियों के साथ भी हमारे संबंध उस तरह के नहीं थे जैसे होने चाहिए थे।’

उन्होंने अपनी पुस्तक में कहा कि मनमोहन सिंह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सरकार पर नियंत्रण से सहज नहीं थे। नटवर ने कहा, ‘मनमोहन सिंह ने 31 जुलाई, 2004 को मुझसे कहा कि अगर मेरे पास समय हो तो मैं उन से मिलूं। मैं खाली था, इसलिए उनसे मिलने होटल के उनके 16वीं मंजिल के कमरे में गया.. उन्होंने कहा कि वह बहुत अकेले इंसान हैं। ऐसा लगता था कि वह यह कहना चाहते हैं कि सत्ता के दो ध्रुव की व्यवस्था असंतोषजनक है।’

उन्होंने मनमोहन सिंह की ओर से इस साल 3 जनवरी को अमेरिका के साथ परमाणु करार को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताने पर भी सवाल खड़ा किया है। नटवर ने कहा, ‘करीब एक दशक से मैंने इसमें अपनी भूमिका के बारे में कुछ नहीं कहा। अब मुझे इसमें संशोधन करने दीजिए.. जॉर्ज बुश के प्रशासन में विदेश मंत्री रहीं कोंडलीजा राइस ने अपनी आत्मकथा में इस करार के बारे में लिखा है।’ उन्होंने राइस की जीवनी को उद्धृत किया, ‘नटवर अपने रुख पर अटल थे। वह करार चाहते थे, लेकिन प्रधानमंत्री इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं थे कि वह इसे नई दिल्ली में सही ढंग से पेश कर पाएंगे।’

 

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