सीधा हिसाब...

16वीं लोकसभा में जो मेंडेट सामने आया है वो कई मायनों में खास है। आजादी के बाद राजनीति में इस तरह के बदलाव पहली बार देखने मिल रहा है। लोगों ने गठबंधन की राजनीति को नकार दिया है।

वासिंद्र मिश्र
संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स

16वीं लोकसभा में जो मेंडेट सामने आया है वो कई मायनों में खास है। आजादी के बाद राजनीति में इस तरह के बदलाव पहली बार देखने मिल रहा है। लोगों ने गठबंधन की राजनीति को नकार दिया है।
आजादी के बाद भारतीय राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है। जब किसी गैर कांग्रेसी दल को प्रचंड बहुमत मिला है। आजादी के बाद कांग्रेस लंबे समय तक बहुमत की सरकार चलाती रही, फिर गठबंधन सरकार का दौर आया। लेकिन बैसाखी पर चल रही सरकारों को अब लोगों ने नकार दिया है। गठबंधन की सरकार का दौर सिर्फ केन्द्र में ही नहीं, राज्यों में भी चल पड़ा था। जब सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी और बीएसपी की सरकार के बीच गठबंधन हुआ था। लेकिन सत्ता के लोभ में गठजोड़ टूट गया और फिर लोगों का मोह भंग होने लगा।
गठबंधन खत्म होने की शुरुआत भी यूपी से ही हुई। 2007 में मायावती को पूर्ण बहुमत मिला, तो 2012 में अखिलेश सरकार अपने दम पर सत्ता में आई। और अब केन्द्र में एक पार्टी को पूर्ण बहुमत से देश ने साफ-साफ संदेश दे दिया है कि वे गठजोड़ की राजनीति से ऊब चुका है।

दरअसल देश ने अलाइंस की सरकारों का दंश झेला है। किसी एक दल को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में पहले बीजेपी ने एनडीए बनाई। सत्ता के लिए दागियों से भी हाथ मिला लिया, फिर कांग्रेस भी बहुमत नहीं मिलने पर यूपीए बनाकर सत्ता पर काबिज हो गई। इतिहास गवाह है कि गठबंधन की वजह से कई बार मूल्यों और सिद्धांतों की बलि दी गई, सत्ता में बने रहने के लिए हर समझौते किए गए, शिबू सोरेन, सुखराम, तसलीमुद्दीन जैसे दागी नेता एनडीए और यूपीए में मंत्री तक रहे।

पिछले 10 साल से सत्ता में रही यूपीए में तो दागियों की भरमार रही। गठबंधन के गणित में करप्शन जड़े जमाती रही। 2जी घोटाले में DMK के ए राजा सहित कई बड़े नेताओं पर आरोप लगे लेकिन कांग्रेस मूकदर्शक बनी रही। कोयला घोटाले के आरोपी शिबू सोरेन से कांग्रेस ने परहेज नहीं किया। चारा घोटाले के दोषी लालू यादव यूपीए के साथ बने रहे।
DMK, AIADMK, INLD, अकाली दल के कई नेताओं के खिलाफ पहले से ही आर्थिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के मामले देश की अलग-अलग अदालतों में लंबित हैं। ये सभी कभी ना कभी गठबंधन में शामिल रहे। सत्ता में रहने के लिए सिर्फ नीतियों से ही समझौता नहीं किया गया बल्कि देश हित को भी ताक पर रख दिया गया। हर छोटी पार्टियां अपना हित साधने में लगी रही, इतने घोटाले हुए कि देश त्राहिमाम करने लगा। देश ने जब भी एनडीए और यूपीए से भ्रष्टाचार का हिसाब मांगा। साफ- सुथरी सरकार मांगी, तब-तब दोनों सरकारों ने गठबंधन की मजबूरियां गिना दी।
गठजोड़ की मारी मजबूर सरकारों की वजह से देश खोखला होने लगा। आजादी के 6 दशक बाद भी देश बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसता रहा। लोगों के पास अब कोई चारा नहीं था। 2014 के इस चुनाव में लोगों ने एक मजबूत सरकार देने की ठानी। 16 मई को जब ईवीएम का लॉक खुला तो देश ने कहा दिया लो अब मेंडेंट की सरकार दे दी है, अब परफॉर्म करो। लोगों को उम्मीद है कि मिलीजुली सरकारों ने देश को जितना दर्द दिया, एक मजबूत सरकार उस दर्द को खत्म कर विकास की नई इबारत लिखेगी।

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