ऐसे थे गोपीनाथ मुंडे...

महज कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लने वाले गोपीनाथ मुंडे अचानक दुनिया को अलविदा कह गए। बीजेपी के इस वरिष्ठ नेता के निधन से पूरा देश शोक में डूब गया। उनकी शख्सियत ही कुछ ऐसी थी कि अपने गृह राज्‍य महाराष्‍ट्र में उनका पार्थिव शरीर पहुंचने के बाद शोक संतप्‍त समर्थक काफी देर तक `गोपीनाथ मुंडे अमर रहे` के नारे लगाते रहे।

बिमल कुमार
महज कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लने वाले गोपीनाथ मुंडे अचानक दुनिया को अलविदा कह गए। बीजेपी के इस वरिष्ठ नेता के निधन से पूरा देश शोक में डूब गया। उनकी शख्सियत ही कुछ ऐसी थी कि अपने गृह राज्‍य महाराष्‍ट्र में उनका पार्थिव शरीर पहुंचने के बाद शोक संतप्‍त समर्थक काफी देर तक 'गोपीनाथ मुंडे अमर रहे' के नारे लगाते रहे।
मुंडे की छवि ऐसे लोकप्रिय जननेता की थी जो लोगों के सुख-दुख में हमेशा साथ रहे। खासकर ग्रामीण इलाकों से उन्‍हें खासा लगाव था। जीवन में सादगी पसंद इस राजनेता को ग्रामीण क्षेत्रों में चाहने वाले भी कम नहीं थे। मोदी सरकार में उन्‍हें केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय का कार्यभार दिया गया था। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में उम्‍मीद की एक नई किरण नजर आने लगी थी। उन्‍हें यह आस होने लगी थी कि उनके दिन अब बहुरेंगे। मगर उनके लिए 'अच्‍छे दिन आने से पहले' होनी को कुछ और ही मंजूर था।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद उनके शब्‍द कुछ इस तरह थे, ‘मैं गांव का रहने वाला हूं। मैंने अपना राजनीतिक जीवन पंचायत स्‍तर से शुरू किया। मैं महज 400 की जनसंख्या वाले एक छोटे से गांव में पैदा हुआ। मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मुझे नरेंद्र मोदी ने गांवों के कल्याण के लिए काम करने की जिम्मेदारी सौंपी।' बीते 27 मई को मुंडे ने जब पंचायती राज, ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय का पदभार ग्रहण किया था तब उन्होंने अपने यह उद्गार व्‍यक्‍त किए थे।
दिवंगत बीजेपी नेता के पास गांवों के विकास की दूरदृष्टि थी और यह बात कई सीनियर नेता भी भलीभांति जानते थे। अपने इस विजन को अमलीजामा पहना पाते, उससे पहले ही वे काल के गाल में समा गए।
महाराष्‍ट्र की राजनीति में खासा प्रभाव रखने वाले मुंडे हमेशा गरीब और गरीबी के लिए लड़ते थे। यह विशेषता एक तरह से उनकी पहचान बन गई थी। मुंडे ने सदैव किसान, दलित, शोषित व पिछले लोगों की आवाज को बुलंद किया। मुंडे की छवि एक जमीनी नेता की थी। वह राजनीतिक विरोधियों से भी अच्छे संबंध रखने के लिए जाने जाते थे। महाराष्ट्र के पिछड़े वर्ग में उनका अच्छा जनाधार माना जाता था। मुंडे पिछड़े मराठवाड़ा क्षेत्र के एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे।
मुंडे महाराष्‍ट्र बीजेपी के कद्दावर नेता माने जाते थे और उन्‍होंने महाराष्‍ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार में डिप्‍टी सीएम की भूमिका भी निभाई थी। मुंडे महाराष्ट्र की राजनीति में लंबे समय से सक्रिय थे। जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उनका रिश्ता बहुत पुराना था। 34 साल पहले 1980 में ही वह पहली बार विधायक बन गए थे। 1980 से 1985 और 1990 से 2009 तक वह विधायक रहे। इसके बाद वह लोकसभा चले गए। 1992 से 1995 तक वह महाराष्ट्र महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1995 में जब बीजेपी-शिवसेना की सरकार आई तो मुंडे को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। 2009 में वह बीड संसदीय सीट से सांसद चुने गए। हाल के लोकसभा चुनाव में भी वह इसी सीट से जीते थे। मुंडे 40 साल से बीजेपी जुड़े थे और 34 साल से निर्वाचित होकर आ रहे थे। इससे उनकी लोकप्रियता और जनता के बीच गहरी पैठ का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि मुंडे उसी प्रमोद महाजन परिवार से थे, जो ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण हादसों का शिकार होता रहा है। मुंडे को राजनीति में बीजेपी के दिवंगत नेता वसंतराव भागवत लेकर आए थे, जिन्होंने प्रमोद महाजन सहित कई अन्य नेताओं को राजनीति में पारंगत बनाया था। मुंडे के साले एवं दिवंगत नेता प्रमोद महाजन और विलासराव देशमुख उन अन्य नेताओं में शामिल हैं जिनकी मौत उस वक्त हुई जब वे अपने राजनीतिक कैरियर में शीर्ष पर थे। मुंडे भी दुनिया को उस समय अलविदा कह गए जब वे राजनीतिक जीवन में ऊंचाईयों को छू रहे थे।
मोदी ने बीजेपी नेतृत्व के साथ मिलकर मुंडे को महाराष्ट्र में पार्टी के प्रचार अभियान का नेतृत्व करने के लिए चुना था जहां पर चार महीने बाद विधानसभा चुनाव होना है। इसी के तहत मुंडे महाराष्‍ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी के अभियान का नेतृत्व करने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन सड़क दुर्घटना में उनकी मौत से महाराष्ट्र बीजेपी को बड़ा झटका लगा है।
मुंडे कांग्रेस-राकांपा के प्रभाव वाले पश्चिमी और उत्तरी महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना के गठबंधन की पैठ को मजबूत करना चाहते थे। इस दिशा में उन्‍हें काफी सफलता भी मिली थी। राजनीतिक जानकार यह मानते हैं कि मुंडे को कार्यकर्ताओं की क्षमता की पहचान थी और वे उन्हें सही मंच प्रदान करते थे। यही कारण है कि महाराष्ट्र में बीजेपी के अन्य नेता मुंडे के बराबर लोकप्रियता नहीं हासिल कर सके।
12 दिसंबर 1949 को जन्मे और बीड जिले के नाथरा गांव के रहने वाले मुंडे पांच बार महाराष्ट्र विधानसभा के विधायक रहे। उनका जन्म वंजारी (जाति) के मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। मुंडे महाराष्‍ट्र में सामाजिक इंजीनियरिंग फार्मूले के सूत्रधार थे, जिसके तहत विपक्षी महायुती गठबंधन हुआ, जिसे हाल में संपन्‍न लोकसभा चुनाव में राज्य में 48 में से 42 सीटें मिली। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को मिली सफलता के पीछे मुंडे के विभिन्न सामाजिक समूहों को एक साथ लाकर किए गए सोशल इंजीनियरिंग की पहल का योगदान माना जाता है।
मुंडे की मौत के बाद अब मराठवाड़ा क्षेत्र अपने कद्दावर नेताओं से महरूम हो गया जिन्होंने राष्ट्रीय परिदृश्य में एक जगह बनाई थी। मुंडे ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ की थी। देश में आपातकाल के दौरान सरकार के खिलाफ हुए आंदोलन का वे हिस्सा भी थे। मुंडे का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल होना उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था।
वे एक ऐसे प्रखर वक्ता और विकास के प्रति समर्पित रहने वाले राजनेता थे, जिनकी भरपाई जल्द संभव नहीं होगी। सही मायनों में मुंडे एक सच्चे जननेता थे और उन्होंने जमीन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी सेवायात्रा शुरू कर अपना जीवन जनसेवा में ही समर्पित कर दिया। मुंडे के मन में हमेशा ही महाराष्ट्र में बीजेपी का पहला मुख्यमंत्री बनने की तमन्‍ना रही, मगर उनकी ये हसरत अधूरी ही रह गई।

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