सियासी आतंकवाद?

वोट की राजनीति की वजह से उत्तर भारत में बुरी तरह परेशान कांग्रेस ने अब पूरा ध्यान दक्षिण भारत पर लगा दिया है। हालांकि कांग्रेस की इस पूरी कवायद का उसे कितना फायदा होगा ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है लेकिन इसका एक नतीजा जो लगभग तय लग रहा है वो ये है कि देश में एक बार फिर से अलगाववादी ताकतों को आवाज उठाने का मौका मिल सकता है।

वासिंद्र मिश्र
संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स
वोट की राजनीति की वजह से उत्तर भारत में बुरी तरह परेशान कांग्रेस ने अब पूरा ध्यान दक्षिण भारत पर लगा दिया है। हालांकि कांग्रेस की इस पूरी कवायद का उसे कितना फायदा होगा ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है लेकिन इसका एक नतीजा जो लगभग तय लग रहा है वो ये है कि देश में एक बार फिर से अलगाववादी ताकतों को आवाज उठाने का मौका मिल सकता है। जम्मू कश्मीर से लेकर पंजाब तक और यूपी से लेकर नॉर्थ ईस्ट तक ऐसी ही ताकतें एक मौके की तलाश में है।
ये भी मुमकिन है कि वोट की राजनीति देश को विघटन की कगार तक पहुंचा दे। हालात ऐसे हो गए हैं कि कुर्सी और सत्ता के लिए देश में सियासी दल खुलेआम न्यायपालिका और संविधान की धज्जियां उड़ाते नज़र आ रहे हैं। 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले इंदिरा गांधी पर आरोप लगे थे कि पंजाब में अकाली दल को शिकस्त देने के लिए उन्होने संत भिंडरावाला को संरक्षण दिया और उसे प्रोत्साहित भी किया। हालांकि कांग्रेस पार्टी और श्रीमती इंदिरा गांधी भले ही अकाली दल को शिकस्त देने में कामयाब नहीं हो पाए लेकिन खुद अपने ही बनाए गए कुचक्र के शिकार जरूर हो गए और ऐसी ही नीतियों के बाद एक सीमा के बाद जब आतंकवाद बेकाबू हो गया था तो ऑपरेशन ब्लू स्टार के हालात पैदा हो गए थे।
श्रीलंका की तमिल समस्या और भारतीय मूल के तमिलों को संरक्षण देने के आरोप में कांग्रेस पार्टी पहले से ही संदेह के घेरे में रही है। तमिलनाडु की क्षेत्रीय राजनीति का दबाव और गठबंधन की मजबूरी कांग्रेस पार्टी को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कई बार आलोचना का शिकार भी बनाता रहा है। श्रीलंका के वही तमिल उग्रवादी जब भारत के लिए भी मुसीबत पैदा करने लगे तो भारतीय उपमहाद्वीप में अमेरिका और चीन की संभावित दखलंदाजी को रोकने के मकसद से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को श्रीलंका में शांति सेना भेजनी पड़ी। नतीजा ये हुआ कि इसकी प्रतिक्रिया में तमिल उग्रवादियों के एक गुट ने राजीव गांधी की हत्या तक कर डाली। इंदिरा गांधी की हत्या खालिस्तान के समर्थकों ने की तो राजीव गांधी की हत्या तमिल ईलम के समर्थकों ने की।
इतिहास में की गई गलतियों को नजरअंदाज करते हुए कांग्रेस पार्टी वोट की राजनीति के लिए इस सीमा तक जाएगी। इसकी कल्पना शायद इस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भी नहीं की होगी। पहले तेलंगाना बनाने को लेकर अपनाए गए तरीके और फिर आनन फानन में राजीन गांधी के हत्यारों की रिहाई। चुनावी साल में ऐसी घटनाओं ने एक बार फिर कांग्रेस की असली तस्वीर देश के सामने रखी है। हालांकि यहां ये भी जिक्र करना जरूरी होगा कि राजीव गांधी के ह्त्यारों में से एक नलिनी से राजीव की बेटी प्रियंका गाधी ने जेल में जाकर मुलाकात की थी और ये भी कहा था कि उनके परिवार ने उसे माफ कर दिया है।
क्षेत्रीयता, जातीयता और संप्रदायवाद की आड़ में वोट की राजनीति करना क्षेत्रीय दलों के लिए तो मजबूरी हो सकती है लेकिन भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों को इस तरह के मुद्दों से जरूर परहेज करना चाहिए। तमिल कार्ड खेलने से पहले भी कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगते रहे हैं कि वोट की राजनीति के लिए वो नॉर्थ ईस्ट में सक्रिय विघटनकारी ताकतों से मिलकर चुनाव लड़ती है। इसके साथ ही आंध्रा, बंगाल, छत्तीसगढ़ औऱ झारखंड में भी चुनावों को लिए नक्सलियों के साथ हमदर्दी के आरोप भी कांग्रेस के दामन पर लग चुके हैं।
हमारे देश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पहले से ही अतिसंवेदनशील बनी हुई है। देश में लगातार बढ़ता नक्सलवाद पहले से ही हमारी आंतरिक सुरक्षा को लगातार चुनौती दे रहा है। ऐसी स्थिति में इस तरह के जज्बाती मुद्दों को उछालकर वोट हासिल करने का जो खेल शुरू हुआ है वो आने वाले समय में देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए भी गंभीर चुनौती बन सकता है।

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