सेक्युलरिज्म जिंदा रहेगा, तो जिंदा रहेगा मुल्क : मदनी

सिर पर टोपी रख लेने भर से कोई मुस्लिम धर्म का जानकार नहीं हो सकता। यह कहना है जमीअत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का। मदनी यह भी मानते हैं कि सेक्युलरिज्म जिंदा रहेगा तो ही मुल्क भी जिंदा रहेगा।

सिर पर टोपी रख लेने भर से कोई मुस्लिम धर्म का जानकार नहीं हो सकता। यह कहना है जमीअत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का। मदनी यह भी मानते हैं कि सेक्युलरिज्म जिंदा रहेगा तो ही मुल्क भी जिंदा रहेगा। सियासत की बात में ज़ी रीजनल चैनल्स के संपादक वासिंद्र मिश्र : ने मौलाना अरशद मदनी से देश में मुसलमानों के हालात, भारतीय राजनीति और सेक्युलरिज्म के मुद्दे पर लंबी बातचीत की। पेश हैं इसके कुछ महत्वपूर्ण अंश--
वासिंद्र मिश्र : मौलाना अरशद मदनी जमीअत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और अपने बेबाक विचारों के लिए जाने जाते हैं। मौलाना मदनी से हम यहां जानना चाहेंगे कि सरकारें बनती रहीं, गिरती रहीं, फिर बनती रहीं, लेकिन समय के साथ जो बदलाव दिखना चाहिए, कौम के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति में वो खास अंतर देखने को नहीं मिल रहा है।
मौलाना अरशद मदनी : ये सही बात है। जमीयत-ए-उलेमा तो हमेशा से यही बात कहती रही है, कोई नई बात नहीं है, एक तो ये कहना गलत होगा कि कारोबारी ऐतबार से पिछले 65 साल में मुसलमानों के हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ है, तालीमी ऐतबार से भी मुस्लिम कहां से कहां पहुंच गया है। जातीय रहन-सहन में भी बहुत बड़ा फर्क आया है, लेकिन ये भी सही है कि कानूनी ऐतबार से जो हक यहां के हर बसने वाले को दिया गया है, उसमें मुसलमान बहुत पीछे है। हम तो इस बात को बहुत खुले अंदाज से कहते हैं कि मुल्क की आजादी के बाद से चाहे सरकार किसी भी पार्टी की रही हो, इत्तेफाक के तौर पर नहीं, बल्कि पॉलिसी बनाकर, हुकूमतों ने मुसलमानों को तरक्की के हर मैदान से बाहर निकालना चाहा है ।

वासिंद्र मिश्र : जी बिल्कुल, यही मेरे लिए सबसे चिंता की बात है, सबके लिए जो इस देश के नागरिक हैं, उनके लिए आप कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं।
मौलाना अरशद मदनी : यकीनन, ये सही है हर ज़माने में ऐसा होता रहा है। इसमें किसी गवर्नमेंट की कोई खुसूसियत (खूबी) नहीं है। जो लोग कुर्सी पर आकर बैठे हैं उन्होंने मुसलमान को धकेलना चाहा है। मेरा मानना है कि जो लोग अपने जेहन के ऐतबार से, अपने माइंड के ऐतबार से बीजेपी और आरएसएस के लोग थे, जनसंघ के लोग थे, जो मुसलमान को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते थे, वो लोग हर पार्टी के अंदर हैं चाहे उसका दस्तूर, उसका किरदार कैसा भी हो, पार्टी ने उनको जगह दी है, उनको कुर्सी पर बिठाया है। वो अपने अपने माइंड और जेहन से काम करते रहे हैं, मुसलमानों को पीछे धकेलते रहे हैं, इसमें कोई शक नहीं है। इसको तो आप अपनी आंखों से देख सकते हैं और हम भी देखते हैं। उसमें भी जो सबसे बदतरीन चीज रही है, जिसने मुसलमान को पीछे धकेलने के लिए बड़ा भारी किरदार अदा किया है, वो है फसादात (दंगे)। सरकारों को देखिए, इतने मारने वालों और इतने कत्ल करने वालों में से अगर 50 हजार के कद में 2, 4, 5, 10 हजार कातिल भी अगर फांसी के तख्ते पर चढ़ जाता या उसे उम्रकैद की सजा दी जाती तो यकीनन ये फसादात का सिलसिला बंद हो जाता। लेकिन मैं अगर कहूं कि उनकी हिफाजत की गई, उनकी तरक्की की गई, तो ये गलत नहीं होगा।

वासिंद्र मिश्र : हम फसादात पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे। हम लोग ये चर्चा कर रहे थे कि मुसलमानों की जो माली हालत रही है, जो शैक्षणिक स्थिति रही है, ठीक है उसमें चेहरे बदलते रहे हैं, लेकिन जहनी तौर पर दिमागी तौर पर, दिली तौर पर सभी दलों में उनकी घुसपैठ है। सरकार चाहे किसी भी दल की हो, मुसलमानों की जब तरक्की की बात आती है, उनकी हक और हुकूक की बात आती है, उनका वाजिब हक उनका वाजिब अधिकार उन्हें मिलना चाहिए, तो कहीं ना कहीं से अड़ंगेबाजी देखने को मिलती है। किसी ना किसी बहाने आपको नहीं लगता कि इसके लिए कौम के जो नेता हैं, जो कौम के नाम पर अलग-अलग दलों में मलाई खा रहे हैं, ये भी बराबर के जिम्मेदार हैं?
मौलाना अरशद मदनी : यकीनन, कौम के लोग इसके जिम्मेदार हैं, वो जिस अंदाज में कौम के मसलों को उठाना चाहिए, नहीं उठा पाते हैं। मैं तो ये कहता हूं कि देश की आजादी के बाद से किसी भी सूबे के अंदर इतनी बड़ी तादाद में लोग अपने घरों से निकलकर बाहर आ गए हों, जैसे असम के अंदर हुआ, यानी आप ये समझिए की साढ़े तीन लाख आदमी, इनके घरों को जला दिया गया और ये निकलकर बाहर आ गए, आप खुद असम के अंदर देख लीजिए कि असम के वो लोग जो असेंबली के अंदर बैठे हुए हैं, एक दिन मुसलमान जमा होकर असेंबली के बाहर बैठकर धरना दे देते तो हमारी कौम के साथ क्या हो जाता, आपको नज़र नहीं आता। आप ये यूपी के अंदर देख लीजिए, मुजफ्फरनगर के अंदर, ऐसा तो 1947 में नहीं हुआ और मुसलमान इतनी बड़ी तादाद में असेंबली के अंदर मौजूद हैं, चाहे वो किसी भी पार्टी का हो। अगर एक दिन भी मुसलमान धरना देता असेंबली के बाहर तो मैं कहता हूं, हालात बदल जाते। ये ना होते जो आज हालात हैं, तो इसके लिए मुसलमान जिम्मेदार हैं और एक ही आदमी बोला, जो आज़म खान ने बोला।

वासिंद्र मिश्र : उनको भी टारगेट कर लिया गया?
मौलाना अरशद मदनी : उनको निशाना बनाया गया। ये उनकी अपनी सख्ती और अहमियत की बात है कि वो अपनी जगह पर डटे रहे, लोगों ने तो अपने टेलीफोन उस जमाने के लिए बंद कर लिए थे। वो किसी से बात ही नहीं करते थे, सही है चलिए, ये लोग कुछ नहीं कर रहे हैं। सरकार की भी तो जिम्मेदारी थी, उन्होंने 50-60 फीसदी क्या, मुझे नहीं लगता कि उनमें से किसी ने 10-15 फीसदी भी काम किया हो।

वासिंद्र मिश्र : अक्सर आरोप लगते हैं कि जब चुनाव आता है, तो उसी कौम के जो नेता हैं, कौम के मजहबी नेता हैं, वो कौम की सौदागिरी करके अपना उल्लू सीधा करते हैं।
मौलाना अरशद मदनी : नहीं, जो मजहबी नेता हैं उन बेचारों का क्या इसके अंदर दखल है।

वासिंद्र मिश्र : नहीं यूज हो जाते हैं। इस्तेमाल हो जाते हैं।
मौलाना अरशद मदनी : मैं नहीं समझता हूं, मजहबी लोगों का ये ना मैदान है, ना वो इस्तेमाल हो सकते हैं। मैं ये नहीं समझता हूं, हो सकता है कि एक-दो फीसदी कहीं किसी दूसरे कुछ लोग इस्तेमाल हो जाते हैं। सूबों के अंदर, क्योंकि मजहबी लोग तो चुनाव में हिस्सा नहीं लेते हैं। रह गए सियासी लोग तो वो अपनी सियासत करते हैं और हर कौम के लोग सियासत करते हैं। उसमें कोई मुसलमान मजहब की बात नहीं बल्कि हर कौम के लोग सियासत करते हैं। ये तो सियासत का नतीजा है कि मैनिफेस्टो में जो वादे किये जाते हैं, वो पूरे नहीं होते हैं, ये तो सियासती बाते हैं।

वासिंद्र मिश्र : सच्चर कमेटी से लेकर रंगनाथ मिश्रा कमेटी की जो सिफारिशें हैं वो आज भी वैसे ही पड़ी हैं।
मौलाना अरशद मदनी : हां, इसमें कोई शक नहीं है, अगर कुछ करने की कोशिश की भी गई है तो जो सरकारी मुलाजिम बैठे हैं, उन्होंने उसे आखिरी हद तक पहुंचने नहीं दिया है और वो चीज जो सरकार पहुंचाना चाहती थी, मुसलमानों तक नहीं पहुंच पाई, पहुंची भी तो बहुत कम पहुंची है।

वासिंद्र मिश्र : तो इसके पीछे सोच यही है कि कौम को जितना पीछे रखा जाए। उसके आधार पर राजनीतिक फायदा लिया जा सकता है?
मौलाना अरशद मदनी : राजनीतिक फायदा नहीं, बल्कि मुल्क के अंदर एक गिरोह है, एक तबका है और बड़ा ताकतवर तबका है जो पहले इतना ताकतवर नहीं था जितना कि अब है। जो ये पॉलिसी बनाता है कि मुसलमानों को हर मैदान से पीछे धकेला जाए, वो तबका आज इतना मजबूत है कि कांग्रेस और दूसरी सेक्युलर पार्टियों की आंख में आंख डालकर उनको मैदान से धक्का देकर बाहर निकाल रहा है। आज से 50 साल पहले वो इतना ताकतवर नहीं था, हम उस वक्त भी यही कहते थे कि ये लोग जो अभी ताकतवर नहीं हैं, उन्हें दूध ना पिलाओ, अगर इन्हें दूध पिलाओगे तो कल ये तुम्हे भी डसेंगे, हमारी बात को किसी ने गौर नहीं दिया।

वासिंद्र मिश्र : आपको नहीं लगता है कि जो आज फिरकापरस्ती का विरोध करने वाली पार्टियां हैं, अलग-अलग राज्यों में, अलग-अलग टाइम में ऐसी ताकतों को ऑक्सीजन देने में इनका अहम रोल रहा है?
मौलाना अरशद मदनी : हां-हां, बिल्कुल है। मैं समझता हूं इस बात को। अभी कल परसों यहां लोग जमा हो गए हैं, सत्ताधारी पार्टी के, हो सकता है यूपी के लोग ना जानते हों, लेकिन मैं तो जानता हूं, उनके साथ मैंने देखा कि एजीपी के महंत भी बैठे हुए हैं। अरे भाई, पिछले ही इलेक्शन के अंदर तो वो बीजेपी के साथ मिलकर के असम में उन्होंने इलेक्शन लड़ा था, आज वो सेक्युलर पार्टी को ताकत पहुंचाने के लिए हाथ से हाथ मिला रहे हैं।

वासिंद्र मिश्र : तो सवाल सेकुलरिज्म से ज्यादा सत्ता का है?
मौलाना अरशद मदनी : मैं कहता हूं कि नीतीश को देखिए, अरे भई पिछले इलेक्शन में वोटिंग के बाद अभी नतीजा नहीं निकला था, वोट पड़ चुके थे, जो फायदा उनको हासिल करना था वो हासिल कर लिया। लेकिन आपको भी याद होगा और मुझे भी याद है, हिंदुस्तान का हर आदमी और बिहार का तो हर मुसलमान याद करता होगा कि वोटिंग के बाद पंजाब जाकर उन्होंने मोदी और बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर हाथ उठाया था। यही तो चीज है, हमारा जो मसला है, हम जो फिरकापरस्ती की बात करते हैं, इसलिए नहीं कि कल किसके साथ हाथ मिलाया और आज किसके साथ। हम तो कहते हैं कि हमारी एक सोच है और एक नज़रिया है। मान लीजिए, आज मोदी हैं, मोदी को हटाकर आडवाणी जी आ जाएं या आज आडवाणी की जगह किसी को भी बिस्तर से उठा लाएं, हम जिस तरह आज मोदी के मुखालिफ हैं, कल उनके मुखालिफ होंगे। ये तो एक नजरिया है, एक माइंड है, मुल्क के अंदर सेकुलरिज्म होनी चाहिए या मुल्क के अंदर हिंदू स्टेट बनना चाहिए, ये अहम मसला है। हम ये जरूरी समझते हैं कि अगर सेक्युलरिज्म जिंदा रहेगा, तो मुल्क जिंदा रहेगा। अगर हिंदू स्टेट के अंदर तब्दील होगा तो ये मुल्क बर्बाद हो जाएगा। हमारी ये सोच है, हमें अफसरात से कोई बहस नहीं है, हम दूसरे लोगों को देखते हैं कि उनका ताल्लुक अफसरात से है। मान लीजिए कि अगर आज बीजेपी और आरएसएस मोदी को हटाकर आडवाणी को ले आए, नीतीश जी कोई एलर्जी नहीं आएगी?

वासिंद्र मिश्र : तो ये जो विरोध है व्यक्तिगत है, वैचारिक नहीं है?
मौलाना अरशद मदनी : ये कोई हकीकी विरोध नहीं है, मैं ये समझता हूं कि इसके अंदर कोई हकीकत है।

वासिंद्र मिश्र : मौलाना, आप काफी बड़े बुजुर्ग हैं, हम लोग तो अभी सीख रहे हैं आपके सामने, बहुत सारी चीजें, उत्तर प्रदेश का वाकया आपने छेड़ा तो एक बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनी थी। बाबरी मस्जिद के शहीद होने से पहले और उसके बाद एक कमेटी से दर्जनों कमेटियां बन गईं। जिसका नतीजा ये हुआ कि जो एक मजबूत आवाज थी, वो अलग-अलग हिस्सों में बंट गई। इधर कुछ दिनों से देखने को मिल रहा है कि आप के ही जमीयत ए इस्लामी से जुड़े हुए तमाम लोग, परोक्ष रूप से नरेंद्र मोदी की जो विचारधारा है, संघ की जो विचारधारा है, उसे सही ठहराने में लगे हैं, भले ही वो सीधे तौर पर कभी हिम्मत नही उठा पा रहे हैं। अगर गुजरात के दंगों की आप आलोचना कर रहे हैं, तो आपको नार्थ-ईस्ट के दंगों की भी आलोचना करनी चाहिए, आपको महाराष्ट्र के दंगों की भी आलोचना करनी चाहिए और आपको यूपी के दंगों की भी आलोचना करनी चाहिए।
मौलाना अरशद मदनी : आपने दो बातें कहीं, एक बात बाबरी मस्जिद के मसले की, तो बाबरी मस्जिद के मसले को लोग नहीं जानते हैं। सबसे पहले बाबरी मस्जिद के मसले के अंदर जो मैदान में आई थी, वो जमीयत ए उलेमा ही थी। ये सन 51-52 का मसला है, लेकिन हमने इस मसले को कभी भी गली कूचे में नहीं रखा। हम जानते थे कि इसके नुकसान क्या होंगे, हमने इस मसले को अदालत के सुपुर्द किया और बराबर जमीयत ए उलेमा पार्टी बनी रही। वो मसला चलता रहा, हम इसके मुखालिफ थे कि हम इस मसले को कभी गली कूचे के अंदर नहीं लाए, लोग लाए और एक्शन कमेटी बनी और उस वक्त भी जमीयत ए उलेमा ने इस सिलसिले में कोई हिस्सा नहीं लिया। जमीयत ये मानती थी कि एक मसला है जिसको हम अदालत के सुपुर्द करें और हम लाए, लेकिन बदकिस्मती से अदालत ने फैसला हमारे खिलाफ दे दिया। हमने ये फैसला किया कि हम अदालत के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन हमें हिंदुस्तान के कानून ने ये हक दिया है कि अगर हम निचली अदालत में किसी चीज में नाकाम हो जाएं तो अगर लोअर कोर्ट है, तो हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं। जमीयत ए उलेमा, मैं गया हूं और सुप्रीम कोर्ट में हमारा केस पड़ा हुआ है और हम समझते हैं कि जरूर निपटेगा वो केस। और जहां तक नरेंद्र मोदी की खुलकर मुखालफत करने का मसला है तो जो कुछ लोग हैं जो नरेंद्र मोदी की खुलकर मुखालफत नहीं कर रहे हैं, वो अपने तरीके से इधऱ उधर से मुखालफत कर रहे हैं। मैं इस सिलसिले में कुछ और बात नहीं कहूंगा, लेकिन मैं ये नहीं समझता हूं कि कोई समझदार आदमी ये कह सके कि नरेंद्र मोदी को लेकर उनकी राय के अंदर नरमी आई है, मैं नहीं समझता हूं कि ऐसी बात कोई समझदार आदमी कह सकता है।

वासिंद्र मिश्र : अलग-अलग दलों में जो सैद्धांतिक प्रतिबद्धता दिखाई देनी चाहिए, सो कॉल्ड सेकुलर लीडरशिप में, उसमें कहीं ना कहीं कमी आती जा रही है, लोग सत्ता के लिए एक मंच पर आते हैं और सत्ता मिल जाने के बाद जो फिरकापरस्त ताकतें हैं, उनके हाथ के खिलौना बनते दिखाई देते हैं। आपको लगता है, कौम इतनी जागरूक है कि चुनाव में अपने विवेक का इस्तेमाल करके अपने मताधिकार का प्रयोग करेगी।
मौलाना अरशद मदनी : मैं ये नहीं समझता हूं, देखिए, मौलाना या एक दीन का जानकार, सिर्फ लिबास पहन लेने से और सिर पर टोपी रख लेने से नहीं बनता है। कौम जानती है कि आलिम (जानकार) कौन है और किसके पीछे चलना चाहिए। जिसको आप कह रहे हैं कि एक बस के अंदर बैठकर दरवाजे-दरवाजे गए हैं और लोगों से ये कहा है कि उन्होंने सब कुछ कर लिया, उसके बावजूद कश्ती तो डूब गई, कामयाब तो नहीं हो सके, जनसंघ, बीजेपी तो खत्म हो गई। लोग गेरुए कपड़े पहन कर, लंबी टोपी पहन कर सामने आ जाए तो हो सकता था कि चालीस-पचास साल पहले ये जादू कर जाता, लेकिन अब तो आप खुद कह रहे हैं कि वो कामयाब नहीं हो सके हैं, इसलिए अब उसकी कोई अहमियत नहीं है। दूसरी बात आपने ये कही कि लोग इनडायरेक्टली मोदी के पक्ष में कह रहे हैं, मैं नहीं समझता कि ऐसा कोई मोदी के बारे में कहेगा और ना ही मैं ये समझता हूं कि किसी के कहने से, अब आज का वोटर बीजेपी की हिमायत करने लगेगा। मेरी समझ में ये बात नहीं आती है, ये बात बीजेपी के लोग कह चुके हैं कि हम आएंगे, वो तो मुसलमान की वोट की ताकत से घबरा रहे हैं, इसीलिए मुसलमानों को साथ लेने के लिए कहीं बुरके खरीदे जाते हैं, तो कहीं टोपियां खरीद करके लोगों को भेजा जाता है, ताकि वो मुसलमानों की राय को अपनी तरफ खींच सके और ये दिखा सकें कि मुसलमान हमारे साथ हैं। अगर खुदा ना खास्ता बीजेपी अपने बलबूते पर जिसकी कोई उम्मीद नहीं है, अगर मुल्क की सत्ता पर काबिज हो जाएगी तो सबसे पहले मुसलमान से वोट की ताकत को छीन लेगी। अगर ये ताकत मुसलमान के हाथ से निकल गई, तो मुसलमान का जो हाल बर्मा में है, उससे भी बदतर हालात मुल्क में होंगे। मैं तो कहता हूं कि हमें शिकवा हर जमात से है। हम तो कहते हैं कि हमें जो हक मिलना चाहिए था, वो नहीं मिला।

वासिंद्र मिश्र : लेकिन मौलाना, इस तरह का स्टैंड कहां तक जायज है कि एक बार नहीं बार-बार इस तरह की जो सो कॉल्ड सेकुलर ताकतें हैं, वो कम्युनल ताकतों से गोपनीय तरीकों से समझौता करके सत्ता में आती रही हैं और सत्ता चलाती रही हैं, इसलिए उनको ताकत दिया जाए की बीजेपी को रोकना है, ये कहां तक मुनासिब हैं?
मौलाना अरशद मदनी : अगर किसी पार्टी के बारे में ये बात साबित होती है कि वो फिरकापरस्त ताकतों के बलबूते सत्ता में आती है तो उस पार्टी से शिकायत होनी चाहिए और दोबारा उस पार्टी को सत्ता में नहीं आने देना चाहिए । बताइये वो कौन सी गोपनीय ताकतें हैं जो बीजेपी से हाथ मिला कर कुर्सी पर बैठती हैं, बताइए, हम उसकी मुखालफत करेंगे।

वासिंद्र मिश्र : अभी जब मुजफ्फरनगर का दंगा हुआ तो आपके तमाम करीबी और विरोधी दोनों खुले तौर पर आरोप लगा रहे हैं, चाहे वो कांग्रेस पार्टी हों या कोई और राजनीतिक दल कि इस दंगे के पीछे उत्तर प्रदेश की सरकार और बीजेपी के कुछ चुनिंदा नेता जिम्मेदार हैं और उसकी भूमिका दोनों ने मिलकर आपसी रजामंदी से बनाई है जिससे कि वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके उत्तर प्रदेश में।
मौलाना अरशद मदनी : आपने जो बात कही थी ये वो बात नहीं है। मैं ये नहीं समझता हूं कि मुलायम सिंह बीजेपी से हाथ मिलाकर कुर्सी पर आए हैं। यादव कुर्सी पर मुलायम सिंह को नहीं बैठा सकता, मुसलमान अगर मुलायम सिंह के साथ ना आता तो ना तो बीएसपी आती और ना ही समाजवादी पार्टी सत्ता में आ पाती। ये मसला अगर है तो सिर्फ जिले के अंदर है, ये हिंदू मुस्लिम फसाद नहीं है। ये सिर्फ जाट और मुस्लिम फसाद है। जाट के अंदर भी पूरी जाट बिरादरी शरीक नहीं है। ये लोग नहीं जानते हैं, उनका एक गोत्र है मलिक वो और मुसलमान आपस में भिड़ गए। दो कत्ल की अहमियत मुजफ्फरनगर जिले में क्या है? मुजफ्फरनगर जिले में तो रोजाना 4 से 10 कत्ल होते ही रहते हैं, कोई अहमियत इसकी नहीं थी, लेकिन वो आए और मुसलमानों के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। उनके हाथों में हथियार थे, इसके बाद दोनों के दोनों भिड़ गए। इससे नुकसान मुसलमानों का ही हुआ। आप ये कहें कि यहां गठजोड़ हो गया, यहां के नेताओँ का दूसरी जमात के नेताओँ से गठजोड़ हो सकता है, लेकिन मैं नहीं समझता हूं कि मुलायम सिंह जिनकी सियासत का वजूद ही मुसलमान हैं वो खुद मुसलमान के कत्ल के लिए खड़े हो जाएंगे। मेरी समझ में ये बात आज तक नहीं आई।

वासिंद्र मिश्र : बहुत-बहुत धन्यवाद मौलाना हमसे बात करने के लिए।
मौलाना अरशद मदनी : जी, शुक्रिया।

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