भारत के लिए पाकिस्तान कितना 'शरीफ'

पाकिस्तान की सत्ता में नवाज शरीफ की तीसरी बार ताजपोशी होने जा रही है। भारत ने इसका स्वागत किया है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नवाज को बधाई संदेश भी भेजा है। बधाई संदेशों के आदान-प्रदान के बीच देश दुनिया में आपसी रिश्ते बेहतर बनाने की बात भी चल निकली है।

आलोक कुमार राव
पाकिस्तान की सत्ता में नवाज शरीफ की तीसरी बार ताजपोशी होने जा रही है। भारत ने इसका स्वागत किया है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नवाज को बधाई संदेश भी भेजा है। बधाई संदेशों के आदान-प्रदान के बीच देश दुनिया में आपसी रिश्ते बेहतर बनाने की बात भी चल निकली है। एक तबका है जिसका मानना है कि पिछली कड़वी बातों को भुलाकर नए निजाम के साथ बातचीत की शिथिल प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए तो एक दूसरा वर्ग भी है जो बेहतर आपसी रिश्तों का हिमायती होने के साथ थोड़ा शंकालु भी है। उसका मानना है कि पाकिस्तान में सरकार बनने के बाद थोड़ा इंतजार कर लेना चाहिए और यह देखना चाहिए कि क्या इस्लामाबाद वास्तव में नई दिल्ली के साथ शांति-सौहार्द और व्यापार को एक नई ऊंचाई देने एवं संबंधों को एक नए धरातल पर ले जाने के लिए तत्पर है। आम चुनाव के दौरान पाकिस्तान की सभी प्रमुख पार्टियों के घोषणापत्रों में भारत के साथ रिश्ते मधुर करने की जो बातें कही गई हैं, वह मात्र घोषणापत्र के लिए ही हैं या धरातल पर उनका कोई मतलब भी निकलता है।
जहां तक पाकिस्तान का संबंध है, यह बात किसी से छिपी नहीं है कि नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच अच्छे रिश्ते की सबसे बड़ी विरोधी पाकिस्तानी सेना है। साथ ही पाकिस्तान की राजनीति और सेना में कुछ तत्व ऐसे हैं जो दोनों देश के बीच मुधर संबंध के हिमायती नहीं हैं। पाकिस्तानी सेना को लगता है कि इस्लामाबाद और नई दिल्ली के एक-दूसरे के करीब आने पर कहीं न कहीं उसका दर्जा घटेगा। साथ ही भारत, अफगानिस्तान सहित सामरिक एवं विदेश नीति में उसका दखल एवं रणनीति कमजोर पड़ेगी। पाकिस्तान सेना का जो इतिहास रहा है वह भी उसे नागरिक सरकार के अधीन काम करने की इजाजत नहीं देगा। पाकिस्तान की सेना ने देश में अपनी पहचान इस तरह से गढ़ी है कि देश और नागरिकों की सुरक्षा कायम रखने का वही एकमात्र सक्षम संस्थान है।
आम चुनाव के दौरान पाकिस्तान की सभी राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्रों पर गौर करें तो यह बात स्पष्ट रूप से जाहिर होती है कि सभी राजनीतिक दलों ने भारत के साथ अच्छे संबंधों की पैरोकारी की है। चुनाव-प्रचार के दौरान भारत विरोधी नारे नहीं लगे और भारत के साथ शांति-सौहार्द बढ़ाने की इच्छा दर्शायी गई। सत्तासीन होने जा रहे नवाज शरीफ ने कहा है कि वह भारत, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच व्यापार के लिए मार्ग खोलेंगे। चुनाव में भारी जीत करने के साथ ही नवाज ने भारत के साथ रिश्ता बेहतर बनाने की बात दोहराई। यही ऩहीं पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के मुखिया इमरान खान भी भारत के साथ मधुर संबंध बनाने के पक्ष में हैं। चुनाव के बाद बड़ी पार्टियों के रूप में उभरीं नवाज और इमरान के भारत के प्रति रुख का स्वागत होना चाहिए। शरीफ ने कहा भी है कि सत्ता के ‘बॉस’ वही रहेंगे और देश की कमान हाथ में लेने के बाद कारगिल एवं मुंबई हमले पर आयोगों की रिपोर्टों को वह भारत के साथ साझा करेंगे। नवाज ने अपने घोषणापत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों एवं लाहौर समझौते के अनुरूप जम्मू एवं कश्मीर मसले का हल निकालने की बात भी कही है।

नवाज ने संबंधों की बेहतरी के साथ भारत के साथ व्यापार बढ़ाने पर भी जोर दिया है। चूंकि, नवाज खुद उद्योगपति हैं, ऐसे में वह भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ जुड़कर डावांडोल हो चुके अपनी देश के उद्योग-धंधों को एक संबल देना चाहेंगे। भारत भी यह देखना चाहेगा कि इस्लामाबाद भारत को तरजीही राष्ट्र का दर्जा कब तक देता है। इस बार नवाज के सुर बिल्कुल बदले हुए हैं। पिछले कुछ सालों में उन्होंने भारत विरोधी बयान नहीं दिया है। हालांकि, भारत यह भी नहीं भूल सकता कि नवाज के प्रधानमंत्री रहते ही कारगिल जैसी घटना हुई। भारत के जवान के सिर काटे जाने और सरबजीत प्रकरण की आंच अभी द्विपक्षीय रिश्ते पर है। ऐसे में एक नए रिश्ते की शुरुआत का रुख बहुत कुछ पाकिस्तान पर निर्भर करेगा।
शांति, अमन, व्यापार एवं बेहतर रिश्ते की बात करने वाला पाकिस्तान न केवल भारत के हित में है बल्कि भरोसा कायम करने वाली यह सब चीजें खुद उसके लिए ही अत्यंत जरूरी हैं। शांति-अमन, भाईचारे और व्यापार की एक नई इबारत लिखने की पाकिस्तान में जो आहट सुनाई दे रही है वह बहुत कुछ नई सरकार के रुख पर निर्भर है। गेंद पाकिस्तान के पाले में है। उसे अपनी कथनी एवं करनी एक करनी होगी और भरोसा जगाना होगा कि वह आपसी रिश्ते सहित आतंकवाद को लेकर संजीदा है। साथ ही पाकिस्तान को लपककर गले मिलाने की भारत को अपनी आदत छोड़ने होगी। गुजरे वक्त में भारत अपने हाथ कई दफे जला चुका है। पाकिस्तान के साथ रिश्ते आगे बढ़ाने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए लेकिन उस पर भरोसा करने से पहले जांच-परख जरूरी है। जांच-परख के बाद ही भारत को नए रिश्ते का आगाज करना चाहिए।

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