डियर जिंदगी: समझते क्यों नहीं!
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डियर जिंदगी: समझते क्यों नहीं!

किसी को समझना बारिश की बूंदों में भीगने जैसा आसान होने के साथ, हिमालय की चढ़ाई करने जितना मुश्किल भी है!

डियर जिंदगी: समझते क्यों नहीं!

हमारी अक्सर शिकायत होती है कि हम 'एक-दूसरे' को ठीक से समझ नहीं रहे. एक-दूसरे से प्रेम तो भरपूर है, एक-दूसरे का साथ भी चाहते हैं, लेकिन 'समझते' नहीं! एक-दूसरे को समझना गणित की पहेली, राॅकेट साइंस जैसा हो गया है जो बुद्धि और आत्मा के पर्दों को आसानी से पार न कर सके. मध्य प्रदेश के इंदौर से अनंत माकवे ने लिखा कि वह अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते हैं. उन्होंने प्रेम विवाह ही किया है, लेकिन विवाह के कुछ बरस बाद ही बस एक-दूसरे को ठीक से नहीं समझने की शिकायत के कारण दोनों ने अलग-अलग रहने का फैसला किया है.

उनने लिखा कि हम शादी के बाद पहले किए गए वादों का हिसाब लगाने और उनके लिए लड़ने में ऐसे डूबे कि आज का मजा लेना भूलते गए. हम सपने बुनते रहे, लेकिन उसकी कीमत आज में न जीने, आज न खुश होने, आज दो पल साथ न बिताने के रूप में चुकाते रहे. एक तो प्रेम विवाह, दूसरे समझ की कमी ने हमारे बीच एक ऐसी संवादहीनता को खड़ा कर दिया, जिसे दूर करना बहुत मुश्किल है. मैंने उनको जो लिखा वही आपसे साझा कर रहा हूं....

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एक-दूसरे को जानना अलग बात है और किसी को समझना दूसरी बात. किसी को समझना बारिश की बूंदों में भीगने जैसा आसान होने के साथ, हिमालय की चढ़ाई करने जितना मुश्किल भी है!

एक छोटा सा उदाहरण लेते हैं. मेरे दोस्त हैं, मुझसे बहुत ही प्रेम करते हैं, लेकिन अक्सर मेरी बात को ठीक से समझते नहीं. वह बात में छुपे हुए भाव को, चिंता को तथ्य की तरह समझने की जगह दखल की तरह लेते हैं. उन्हें लगता है कि सारे मसलों को वही जानते हैं, इसलिए वही सबसे अच्छा निर्णय ले सकते हैं. वह इस बात को समझने के लिए तैयार ही नहीं होते कि उनके बच्चे, उनके पिता, उनके दोस्त उनसे प्रेम ही नहीं करते, बल्कि समझते भी हैं, इसलिए उनके विचारों का सम्मान जीवन के लिए सरल, उपयोगी हो सकता है.

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तो दूसरे को समझना क्या है? कैसे बिना कुछ कहे बहुत सारा समझा जा सकता है. मैंने अनंत को एक किस्सा सुनाया जो मुझे बहुत ही प्रिय है, क्योंकि उसमें किन्ही भी दो संबंधों के लिए बहुत ही गहरे जीवन सूत्र हैं.

एक बार कबीर के घर एक सज्जन आए. वह उनसे शादीशुदा जीवन को खुशी से निभाने के तरीके पूछने लगे. कबीर ने उनसे कुछ देर शांत बैठने और चीजों को ध्यान से देखने के लिए कहा. उसके कुछ देर बाद कबीर ने पत्नी से कहा, लालटेन ले आइए! भरी दुपहरी में उनकी पत्नी ने बिना कुछ बहस किए हुए लालटेन लाकर उनके सामने रख दी. उसके बाद कवि ने कहा, कुछ मीठा ले आइए. थोड़ी देर बाद उनकी पत्नी कटोरी में नमकीन रखकर चली गईं.

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इस दौरान कोई कहासुनी नहीं हुई, किसी तरह की बहस नहीं हुई! उन सज्जन को लगा यह कैसा घर है. उन्हें लगा यह क्या माजरा है. दिन में लालटेन, मीठे की जगह नमकीन, कोई तकरार नहीं, कोई विवाद नहीं?

कबीर उनकी दुविधा समझ गए और बोले यही तो एक-दूसरे को समझना और समझदारी है. पत्नी ने समझ लिया कुछ वजह रही होगी कि दिन में लालटेन मांग रहे. उसी तरह मैंने समझ लिया घर में मीठा नहीं रहा होगा इसीलिए तो वह नमकीन लाईं. एक-दूसरे के प्रति समझदारी, बहुत गहरी समझ और आत्मीयता रिश्ते में स्नेहन से आती है. यह आती जरा मुश्किल से है, लेकिन एक बार आ जाए जिंदगी बहुत खूबसूरत, सरल हो जाती है.

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मुझे पूरा विश्वास है कि कबीर के इस सूत्र को अगर हम जीवन में थोड़ा भी उतार सकें, तो अपने भीतर बहुत सारा अंतर पैदा कर सकते हैं!

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