सुपरिचित कवयित्री निवेदिता दिनकर के कविता संग्रह ''इत्र तुम्हारी शर्ट का'' की कविताओं से साक्षात्कार करना, निश्चय ही एक अलग अनुभूति, एक अलग आस्वाद से साक्षात्कार करना है.
Trending Photos
नई दिल्ली: सुपरिचित कवयित्री निवेदिता दिनकर के कविता संग्रह ''इत्र तुम्हारी शर्ट का'' की कविताओं से साक्षात्कार करना, निश्चय ही एक अलग अनुभूति, एक अलग आस्वाद से साक्षात्कार करना है. कम से कम शब्दों में किसी भी बड़ी से बड़ी बात या गंभीर से गंभीर बात को व्यक्त कर देना, बिलकुल किसी ग़ज़ल के शेर की तरह, निवेदिता की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता है. कुछ कविताओं में तो मात्र दो या तीन शब्दों में एक वाक्य पूरा हो जाता है और ऐसे ही वाक्यों या वाक्यांशों से कविता का प्रवाह जारी रहता है.
रंगों ने
रंगों को
रंगों से
रंगों के
रंगों द्वारा
रंगों के लिए
रंगों का
रंगों के
रंगों की
रंगों में
रंगों पर
रंग दिया ..
कविता में कहन ही सबसे महत्वपूर्ण होती है जो कविता को प्रभावशाली बनाती है और कवयित्री ने कहन भी अपनी ही एक शैली गढ़ी है जैसे एक चित्र में रंगों तथा रेखाओं के परे जो भाव उभरते हैं वही उस चित्र को प्रभावशाली बनाते हैं | उसी तरह कविता में भी शब्दों से परे जो कुछ पाठक या श्रोता के मन में घुमड़ता है, वह महत्वपूर्ण होता है. कवयित्री की 'लहर ' कविता का उदाहरण प्रासंगिक रहेगा जहाँ जीवन को इतनी सहजता से प्रतिबिंबित कर दिया गया है, मात्र कुछ शब्दों में, बिम्बों के माध्यम से -
हर पहर
लहर लहर...
आत्म मुग्ध
यह लहर...
क्षण भंगुर
है लहर,
फिर भी
लहर लहर... !!
अक्सर कोई कविता पढ़ते हुए लगता है जैसे कवयित्री किसी विचार को रेखागणित की एक प्रमेय की तरह बुनती हैं और ''इति सिद्धम '' की तर्ज़ पर उसका प्रभावी समापन कर देती हैं . 'रंगीली ' कविता का सत्य सम्भवतः लाखों महिलाओं की सच्चाई है , जो इसी तरह बुनी गई है -
तुमने देखा ,
कैसी उजली उजली दिख रही हूँ
कितनी
दहक
ऊष्मा
प्रकाश
जल
नारी जीवन में आ रहे बदलावों पर भी कवयित्री की दृष्टि है. आज की युवती एक नए रूप में हमारे सामने है जो अपने पंखों से मनचाही उड़ान भरना चाहती है -
अब
मैं बूंदो से दोस्ती करूंगी,
पुरवैया मेरी सहेली बन गई है,
अनजान रास्तों पर कूदूंगी फाँदूंगी …
अमरुद के पेड़ पर चढ़ अमरुद तोड़ूँगी,
झुकी टहनियों से लटकूँगी,
अमावस रात में चाँद ढूँढूँगी,
और
सदियों से जमी बर्फ बनकर पिघलूंगी …
वर्तमान सामाजिक परिदृश्य पर भी कवयित्री की पैनी नज़र है , जो हम सबको चिंतित करवा दे -
चारों तरफ लहू
और सब
एक दुसरे का लहू पी रहे
'वैम्पायर' ...
राक्षसी प्रवृत्ति
की
प्रथा आज 'डिमांड' में जो है|
कहते है ,
फिर समुद्र मंथन होगा
और क्षीर सागर को मथ कर
अमृत पान
लेकिन,
लेकिन
विष निगलने
कोई नीलकंठ ...
अबकी बार
शायद ही आये ...
कुछ कविताओं में संजोए गए गहरे मानवीय एवं सामाजिक सरोकार भी संग्रह को मूल्यवत्ता प्रदान करते हैं. 'असाधारण वसंत ' एक ऐसी ही कविता है जहाँ समाज के हाशिये पर पड़े शोषितों वंचितों का जीवन हमारे सामने आता है और साथ ही कवयित्री की मानवीय दृष्टि भी -
कभी चित्रकार की तूलिका में,
कभी लुहार के हथौड़े में,
कभी रेहड़ी वाले के ठेल में,
कभी जीवन के रेलमपेल में
बसंत अगड़ाई लेता रहा ...
निशंक आह्वान देता रहा ...
संग्रह की समस्त कविताएँ पढ़ने के बाद, इन कविताओं की एक अनूठी कहन, विषयवस्तु की विविधता , सामाजिक एवं मानवीय सरोकारों की मार्मिक अभिव्यक्ति के आधार पर यह कहना उपयुक्त ही है कि संग्रह का काव्यप्रेमी स्वागत करेंगे.
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी