Arvind Kejriwal Arrest: दिल्ली में बड़ा खेल हो गया है. पहली बार कोई मुख्यमंत्री रिमांड में भेजा गया है. आम आदमी पार्टी पर बड़ा संकट है. 2024 चुनाव के मद्देनजर इस संकट के क्या मायने हो सकते हैं. इसे समझने के लिए आंकड़ों को देखना जरूरी है. 2024 चुनाव के लिए आदमी पार्टी ने कुल 4 राज्यों में दांव खेला है. इस चार राज्यों में उसके पास 20 सीटें हैं. जिन पर उसे चुनाव लड़ना है . इसमें दिल्ली में 4, तो पंजाब से सबसे ज्यादा 13 सीट हैं. गुजरात में 2 हैं तो हरियाणा में भी एक सीट है. आम आदमी पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो रही है. लेकिन फिलहाल जिस तरह के हालात हैं. उसके बाद सवाल तो हैं ही कि अब दिल्ली का क्या होगा. आम आदमी पार्टी के सामने अब किस तरह की चुनौतियां हैं और इससे गठबंधन कितना प्रभावित होगा, इसे भी आंकड़ों के जरिए ही समझिए.
असल में अरविंद केजरीवाल की रिमांड के बाद एक और जो सबसे बड़ा सवाल है, वो ये कि अगर केजरीवाल जेल में रह गए, तो फिर स्टार प्रचारक की भूमिका में कौन होगा. क्योंकि अब तक कहीं भी चुनाव प्रचार रहा हो.. हर चुनाव में अरविंद केजरीवाल की स्टार प्रचारक रहे हैं. भीड़ जुटाने से लेकर वोट जुटाने तक में उन्हीं का चेहरा सबसे ज्यादा कारगर रहा है.
अरविंद केजरीवाल से अलग अगर आम आदमी पार्टी के दमदार चेहरे देखते हैं. तो यही चार चेहरे आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर रहे हैं,
- अरविंद केजरीवाल
- मनीष सिसोदिया
- संजय सिंह
- सत्येंद्र जैन
स्टार कैंपेनर की भूमिका में कौन..
ऐसे में बड़ा सवाल तो है. कि आखिर केजरीवाल और बाकी के तीन चेहरे नहीं तो तो फिर आखिर स्टार कैंपेनर की भूमिका में कौन होगा. क्योंकि ये सभी चारों स्टार प्रचारक तो जेल में हैं. ऐसे में सियासत के जानकारों की राय में पहले स्टार प्रचारक चेहरे के तौर पर भगवंत मान को देखा जा सकता है. उसके बाद राघव चड्ढा, दिल्ली की मंत्री आतिशी, सौरभ भारद्वाज और गोपाल राय. यही वो पांच चेहरे हैं जिन्हें दिल्ली और दिल्ली से बाहर लोग बेहतर ढंग से जानते हैं... लेकिन क्या इनमें से कोई भी नेता अरविंद केजरीवाल का विकल्प हो सकता है.
तो फिर हालात और ज्यादा मुश्किल..
अब अगर अरविंद केजरीवाल को राहत नहीं मिली तो फिर हालात और ज्यादा मुश्किल हो सकते हैं...सवाल ये भी है कि अगर अरविंद केजरीवाल नहीं तो दिल्ली में भी हालात कौन संभालेगा. केजरीवाल 28 मार्च तक ED की रिमांड पर रहेंगे. उनकी गिरफ्तारी और रिमांड के राजनीतिक लिहाज से क्या हो सकता है ये आपको बताते हैं. सबसे पहले तो केजरीवाल की छवि पर असर पड़ सकता है क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी मुहम चलाकर ही वो दिल्ली की सत्ता तक पहुंचे थे लेकिन अब भ्रष्टाचार के मामले में ही उनके खिलाफ कार्रवाई हुई है.
- केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक भी हैं ऐसे में पार्टी के सबसे बड़े नेता के जेल जाने से संगठन के लिए सियासी लड़ाई लड़ना कठिन हो सकता है.
- लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग में अब 1 महीने से भी कम वक्त रह गया है ऐसे में केजरीवाल की गिरफ्तारी से आम आदमी पार्टी के कोर वोटर भी छिटक सकते हैं.
- भ्रष्टाचार के मुद्दे पर I.N.D.I.A. गठबंधन पहले से ही बीजेपी के निशाने पर है और अब केजरीवाल की गिरफ्तारी विपक्ष की चुनौती बढ़ा सकती है. गठबंधन को लेकर केजरीवाल ने भी लगातार कसरत की और कांग्रेस के साथ तमाम विवाद के बाद भी साथ चलने का रास्ता निकाला, मगर अब उनका जेल जाना गठबंधन के लिए नई मुसीबत बन गया है.
- इस पूरे प्रकरण में I.N.D.I.A. गठबंधन के लिए थोड़ी संभावना इस बात की है कि वो बीजेपी पर जांच एजेंसियों के जरिए विपक्ष को परेशान करने के आरोपों को जोर शोर से उठाया जा सकता है. मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी को विपक्ष बीजेपी की साजिश बताकर भी जनता के बीच मैसेज देने की कोशिश कर सकता है.
I.N.D.I.A गठबंधन के लिए कितना मुश्किल?
केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद I.N.D.I.A गठबंधन के लिए लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना या दिल्ली की सत्ता तक पहुंचा कितना मुश्किल हो सकता है. 2019 लोकसभा चुनाव के आंकड़े समझिए-
- चांदनी चौक सीट पर बीजेपी को 52% वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 30 प्रतिशत लोगों ने वोट किया और केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 14 फीसदी वोट मिले. अगर आम आदमी और कांग्रेस को इस बार भी 2019 की तरह ही वोट पड़े तो आंकड़ा 44 फीसदी तक ही जाता है जो बीजेपी के कुल वोट से 8 प्रतिशत कम है.
- उत्तर पूर्वी सीट: यहां 2019 में बीजेपी को 54 प्रतिशत वोट मिले. जबकि कांग्रेस को 29 और आम आदमी पार्टी को 13 फीसदी वोट मिले. इस बार भी यही स्थिति रही तो दोनों का वोट 42 % होगा जो कि बीजेपी के वोट से 12 प्रतिशत कम है.
- पूर्वी दिल्ली सीट पर 2019 में बीजेपी को 55 फीसदी वोट मिले. जबकि कांग्रेस के खाते में 24 और AAP की झीली में 17 फीसदी वोट आए. दोनों का कुल योग 41 फीसदी है जो बीजेपी से 14 प्रतिशत कम है.
- नई दिल्ली लोकसभा सीट पर 2019 में बीजेपी को 54 फीसदी लोगों ने वोट किए. जबकि कांग्रेस को 27 और आम आदमी पार्टी को 17 प्रतिशत वोट मिले. इस बार दोनों पार्टियों का गठबंधन है और दोनों दलों का वोट शेयर पिछली बार की तरह ही बना रहता है तो आंकडा 44 प्रतिशत तक ही पहुंचेगा जो बीजेपी के वोट शेयर से 10 प्रतिशत कम है.
- उत्तर पश्चिमी दिल्ली सीट के मतदाताओं ने 2019 में बीजेपी को 60 प्रतिशत वोट दिए. जबकि कांग्रेस को 17 और आम आदमी पार्टी को 21% वोट मिले. दोनों का कुल योग 38 % है जो बीजेपी से 22 प्रतिशत कम है.
- पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीट पर बीजेपी को 60 प्रतिशत वोट मिले. वहीं कांग्रेस को 20 और AAP को 18% वोट मिले. यानी दोनों दलों का कुल वोट 38% वोट मतलब यहां भी विपक्ष का गठबंधन बीजेपी के वोट शेयर से 22 प्रतिशत कम है.
- दक्षिण दिल्ली लोकसभा सीट पर 2019 में बीजेपी को 57 प्रतिशत वोट मिले. जबकि कांग्रेस को 16 और आम आदमी पार्टी को 26 फीसदी लोगों ने वोट किया. दोनों दलों का आंकड़ा 42 प्रतिशत पहुंचता है जो बीजेपी से 15 फीसदी कम है.
I.N.D.I.A के लिए दिल्ली कितनी दूर?
दिल्ली में वोट प्रतिशत
चांदनी चौक- वर्ष 2019
BJP 52%
INC 30%
AAP 14%
उत्तर पूर्वी दिल्ली- 2019
BJP 54%
INC 29%
AAP 13%
पूर्वी दिल्ली- वर्ष 2019
BJP 55%
INC 24%
AAP 17%
नई दिल्ली- वर्ष 2019
BJP 54%
INC 27%
AAP 17%
उत्तर पश्चिमी दिल्ली- वर्ष 2019
BJP 60%
INC 17%
AAP 21%
पश्चिम दिल्ली- वर्ष 2019
BJP 60%
INC 20%
AAP 18%
दक्षिण दिल्ली- वर्ष 2019
BJP 57%
INC 16%
AAP 26%
आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी ताकत हैं केजरीवाल..और ED रिमांड का फैसला आने के बाद यही AAP की कमजोरी भी बन सकती है. दिल्ली की 4 सीटों पर AAP के कैंडिडेट्स, केजरीवाल के चेहरे...केजरीवाल के काम पर ही चुनाव लड़ रहे हैं..जनता से वोट मांग रहे हैं..यानी सीधे-सीधे कहें तो ये केजरीवाल के भरोसे हैं.
नई दिल्ली लोकसभा सीट से सोमनाथ भारती...
पूर्वी दिल्ली सीट से कुलदीप कुमार
पश्चिमी दिल्ली से महाबल मिश्रा
और दक्षिणी दिल्ली से सहीराम..
इन नामों का ऐलान आम आदमी पार्टी पहले ही कर चुकी है. केजरीवाल अपनी पार्टी के सबसे बड़े ब्रैंड एंबेसडर हैं. और केजरीवाल की कैंपेनिंग से इन उम्मीदवारों की चुनावी जीत की संभावना बन सकती है. पर ऐसा तब होगा जब केजरीवाल ED की कस्टडी से बाहर आकर इनके लिए प्रचार कर पाएं. हालांकि दिल्ली में करीब दो महीने के बाद 25 मई को छठे चरण में वोट डाले जाएंगे..पर 24 की सियासी रेस में किसी भी सियासी पार्टी के लिए एक-एक दिन बहुत महत्वपूर्ण है..
- दिल्ली में 25 मई को 7 लोकसभा सीटों पर वोटिंग होनी है
- दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन है, समझौते के मुताबिक नई दिल्ली की सीट पर AAP के उम्मीदवार सोमनाथ भारती चुनाव मैदान में उतरे हुए हैं
- यही वजह है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा इस बार कांग्रेस को वोट नहीं कर पाएंगे, क्योंकि यहां पर कांग्रेस नहीं बल्कि उनकी सहयोगी आम आदमी पार्टी चुनाव मैदान में है. ये सभी नेता नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र के वोटर भी हैं.
कभी नई दिल्ली की लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी...
यहां कांग्रेस का परचम लहराया करता था.
- कांग्रेस ने यहां अब तक 7 बार चुनाव मैदान में फतह हासिल की है..
- आपको बता दें कि 2009 में ये सीट कांग्रेस के पास थी, अजय माकन ने ये सीट लगातार दूसरी बार जीती थी
- लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की मीनाक्षी लेखी ने चुनाव मैदान में कांग्रेस को हाथ मलने पर मजबूर कर दिया था.
- यानी यहां अब इस सीट से कांग्रेस का सूपड़ा साफ पूरी तरह साफ हो गया है
पिछले तीन लोकसभा चुनावों यानी सिर्फ 15 वर्षों में ही बीजेपी ने सीटों और वोट शेयर के मामले में कांग्रेस की बराबरी कर ली है..दिल्ली में 2009 के बाद से कांग्रेस की राजनीति ढलान पर है..दिल्ली के लोकसभा चुनाव के नतीजों से इसे समझने की कोशिश करते हैं.
- 2009 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने दिल्ली की सभी 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उनका वोट शेयर था 57 प्रतिशत
- सिर्फ 5 साल के बाद 2014 में बीजेपी ने दिल्ली की सातों सीटों पर कब्जा किया..हालांकि तब बीजेपी का वोट शेयर 47 प्रतिशत था..यानी कांग्रेस की पिछली परफॉर्मेंस से करीब 10 प्रतिशत कम.
- 2019 में बीजेपी ने सीट और वोट शेयर दोनों में बाजी मारी और सभी 7 सीटों के साथ 57 प्रतिशत का वोट शेयर भी हासिल किया. इसका मतलब है कि तीन चुनावों में ही बीजेपी उस स्तर पर पहुंच गई है जहां कभी कांग्रेस हुआ करती थी. Zee Beuro Input