Allahabad High Court: पति के खिलाफ 'दूसरी पत्नी' द्वारा क्रूरता की ये शिकायत सुनवाई योग्य नहीं, इलाहाबाद HC ने क्यों कहा ऐसा
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Allahabad High Court: पति के खिलाफ 'दूसरी पत्नी' द्वारा क्रूरता की ये शिकायत सुनवाई योग्य नहीं, इलाहाबाद HC ने क्यों कहा ऐसा

Allahabad High Court: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-A को लेकर अदालतों में अक्सर चर्चा होती है. 5 महीने पहले झारखंड हाईकोर्ट ने कहा था कि असंतुष्ट पत्नियां 498-A का इस्तेमाल ढाल के बजाय एक हथियार के रूप में कर रही हैं. इस बार इसकी गूंज इलाहाबाद HC में सुनाई दी तो क्या हुआ? वो भी आपको जानना चाहिए.

Allahabad High Court: पति के खिलाफ 'दूसरी पत्नी' द्वारा क्रूरता की ये शिकायत सुनवाई योग्य नहीं, इलाहाबाद HC ने क्यों कहा ऐसा

High Court News: समाज को सही तरीके से चलाने में कानून और न्यायपालिका की अपनी अहम भूमिका है. लेकिन जब कोई कानून का गलत इस्तेमाल करे तो मामला गंभीर हो जाता है. यहां बात इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की चौखट में पहुंचे उस केस की जिसमें एक शख्स की दूसरी पत्नी ने पति (ससुराल वालों) के खिलाफ IPC की धारा 498-A के तहत क्रूरता का आरोप लगाया. निचली अदालत से पति को राहत नहीं मिली तो उसने परिवार समेत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने कहा ये याचिका सुनवाई के योग्य नहीं है. HC ने ऐसा क्यों कहा इसे ध्यान से समझने की जरूरत है. हाईकोर्ट (HC) से लेकर सुप्रीम कोर्ट (SC) तक धारा 498-A को लेकर बहुत कुछ कहा गया है. पिछले साल देशभर में इसी धारा के करीब 7 मामले सामने आए थे.

क्या है पूरा मामला 

IPC की धारा 498-A यानी ये कानून ये क़ानून विवाहित महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए बनाया गया है. अगर किसी शादीशुदा महिला पर उसके पति या उसके ससुराल वालों की ओर से किसी तरह की ‘क्रूरता’ की जा रही है तो IPC की धारा 498A के तहत यह अपराध के दायरे में आता है. यानी ये धारा ससुराल वालों द्वारा शादीशुदा महिलाओं पर क्रूरता को अपराध मानती है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा- 'इस केस में दूसरी पत्नी की शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है. हालांकि, ऐसे मामलों में, दहेज (dowry) की मांग होने पर दहेज निषेध अधिनियम, 1961 लागू होगा.'

एचटी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में जस्टिस एके सिंह देशवाल ने अखिलेश केशरी और तीन अन्य द्वारा दायर याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार किया. इस याचिका में IPC की धारा 498-A, 323, 504 और 506 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत एक मामले के संबंध में दायर चार्जशीट के साथ एक सम्मन के आदेश को चुनौती दी गई थी.

हाईकोर्ट में युवक और उसके परिजनों की ओर से यह तर्क दिया गया कि उनके खिलाफ हुआ एक्शन गैरकानूनी था. सुनवाई के दौरान उनके वकील ने कहा, 'शिकायतकर्ता महिला जिसने खुद को आरोपी केशरी की पत्नी बताया, जो कि कानूनी रूप से उसकी वैध पत्नी नहीं थी क्योंकि आरोपी बनाए गए युवक केशरी ने अपनी पहली पत्नी से तलाक नहीं लिया था. ऐसे में याचिकाकर्ता की दूसरी पत्नी होने का दावा करने वाली महिला के कहने पर केशरी के खिलाफ धारा 498-A और DP एक्ट की धारा 3/4 के तहत मुकदमा चलाने योग्य नहीं था.

कैसे आगे बढ़ी सुनवाई

दूसरी ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि इस मामले में विवाह की वैधता के संबंध में सख्त व्याख्या नहीं की जानी चाहिए और उन व्यक्तियों पर उदारतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए जिन्होंने विवाह के लिए अनुबंध किया था और एक साथ रह रहे थे. हाईकोर्ट ने 28 मार्च को दिए अपने फैसले में कहा- 'किसी भी हिंदू व्यक्ति द्वारा दूसरी शादी अमान्य है. ऐसे में धारा 498-ए के तहत मुकदमा कायम नहीं किया जा सकता. वहीं DP अधिनियम की धारा 3/4 के तहत, अभियोजन कायम है क्योंकि इस धारा का मुख्य तत्व किसी भी शख्स द्वारा दहेज देना, लेना या मांगना है और शादी से पहले दहेज की डिमांड करना भी दंडनीय अपराध है.

बीते साल इस धारा के करीब 7 मामलों ने देशभर की सुर्खियां बटोरी थीं. जिनमें से दो के बारे में आपको बताते हैं. 

कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई में कहा था कि धारा 498ए का दुरुपयोग कर महिलाओं ने 'लीगल टेरर' (कानूनी आतंक) मचा रखा है. वहीं झारखंड हाईकोर्ट ने कहा था कि असंतुष्ट पत्नियां 498-A का इस्तेमाल ढाल के बजाय एक हथियार के रूप में कर रही हैं.

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