Bollywood Actors: हिंदी सिनेमा का इतिहास शानदार एक्टरों से भरा है, जिन्होंने अपने-अपने समय में जबर्दस्त लोकप्रियता हासिल की. आज भले ही लोग दूरदर्शन पर महाभारत में नजर आए नितिश भारद्वाज को श्रीकृष्ण के रूप में जानते हैं लेकिन एक समय शाहू मोडक में लोगों को श्रीकृष्ण की छवि नजर आती थी.
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Shahu Modak As Shrikrishna: हिंदी सिनेमा में 1930 से 1950 के दौर में पौराणिक फिल्मों का जबर्दस्त ट्रेंड था. भगवान की कहानियां पर्दे पर खूब चलती थीं. श्रीकृष्ण की लीलाओं में कहानियों का भंडार है. हिंदी फिल्में एक ऐसा भी कलाकार हुआ, उस दौर में जिसे श्रीकृष्ण के रूप में सबसे ज्यादा देखा गया. यह एक्टर थे, शाहू मोडक. एक ईसाई परिवार में जन्मे. वह अपने जीवन में लगभग 30 फिल्मों में श्रीकृष्ण बने. शाहू मोडक को बाल श्रीकृष्ण की भूमिका के लिए सबसे पहले भालजी पेंढारकर ने चुना था, जिन दिनों वह स्कूल में पढ़ा करते थे. पूना की सरस्वती सिनेटोन की फिल्म 'श्याम सुंदर' (1932) का निर्देशन करते समय बाल श्रीकृष्ण की भूमिका के लिए उनका चयन हुआ था. यह फिल्म हिट रही. एक ही टॉकीज में लगातार 25 हफ्तों तक चलने वाली यह पहली फिल्म बनी. उसके बाद कृष्ण के ऊपर बनाई जाने वाली फिल्मों में शाहू मोडक प्रोड्यूसरो की पहली पसंद बन गए.
छपने लगे कैलेंडर
शाहू मोडक श्रीकृष्ण के रूप में इतने प्रसिद्ध हुए कि उस समय छपने वाले रंगीन कैलेंडरों पर कृष्ण के रूप में शाहू मोडक की ही तस्वीर होती थी. शाहू मोडक का जन्म अहमदनगर (महाराष्ट्र) के ईसाई परिवार में 25 अप्रैल, 1919 को हुआ था. श्रीकृष्ण के रूप में अपने दौर में सबसे चर्चित होने वाले शाहू मोडक के नाम एक बहुत अहम रिकॉर्ड है. वह हिंदी फिल्में के पहले हीरो हैं, जिन्होंने किसी फिल्म में डबल रोल निभाया. फिल्म थी, आवारा शहजादा. शाहू मोडक हिंदी के साथ साथ मराठी फिल्मों के भी प्रसिद्ध कलाकार थे.
कर दी थी मृत्यु की भविष्यवाणी
बाल भूमिकाओं के बाद शाहू युवा कलाकार के रुप में फिल्मों में आने लगे. जिन दिनों शाहू फिल्में कर रहे थे, उस समय किसी भी हीरो का गायक होना भी जरूरी था. ऐसे में शाहू मोडक ने शास्त्रीय संगीत भी सीखा. एक अच्छे गायक के रूप में भी उन्होंने अपनी जगह बनाई. सेवासदन, हिंद महिला तथा होनहार उनकी सफल फिल्में रहीं. शाहू मोडक ने अपने समय के सभी प्रतिष्ठित हिन्दी, मराठी फिल्म निर्देशकों के साथ काम किया. बड़े होने पर शाहू मोडक की दिलचस्पी ज्योतिष में पैदा हुई और उन्होंने इसकी किताबें पढ़ना शुरू की. धीरे-धीरे वह इसमें डूब गए और विद्वान बने. उनकी पत्नी प्रतिभा शाहू ने अपनी किताब, शाहू मोडकः प्रवास एक देव माणसा चा में लिखा है कि शाहू मोडक जब 25 अप्रैल 1993 को 75 बरस के हुए तो उन्होंने अपनी मृत्यु की घोषणा करते हुए कहा कि अब मैं 18 दिन और जीवित रहूंगा. ऐसा ही हुआ और 11 मई 1993 को उन्होंने इस संसाद को अलविदा कह दिया.
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