30 साल से दबदबा.. रहेगा कि जाएगा? बृजभूषण की कैसरगंज सीट.. बीजेपी के लिए सबसे बड़ी सिरदर्द
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30 साल से दबदबा.. रहेगा कि जाएगा? बृजभूषण की कैसरगंज सीट.. बीजेपी के लिए सबसे बड़ी सिरदर्द

Kaisarganj News: इस चुनाव में कैसरगंज सीट को फिलहाल कई नजरिए से देखने की जरूरत है. बृजभूषण के नाम का अभी तक ऐलान नहीं, बीजेपी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर हुई किरकिरी, जाटलैंड की चिंता और उधर कैसरगंज में बृजभूषण का 'ऐतिहासिक और सिलसिलेवार' दबदबा, बीजेपी के लिए इनमें से सबसे बड़ी चिंता क्या है. समझ लीजिए.

30 साल से दबदबा.. रहेगा कि जाएगा? बृजभूषण की कैसरगंज सीट.. बीजेपी के लिए सबसे बड़ी सिरदर्द

Brijbhushan Sharan Singh Gonda: अयोध्या से करीब 15 किलोमीटर पर गोंडा का विश्नोहरपुर गांव.. इसी गांव में बृजभूषण शरण सिंह का कई एकड़ में फैला पैतृक निवास, हालांकि इस गांव को हाईटेक बनाने में बृजभूषण ने कोई कसर नहीं छोड़ी, छोटा सा हेलीपैड.. कई स्कूल, यहां तक कि महाविद्यालय भी. यहां पिछले तीस साल से बृजभूषण सुबह-सुबह हरी घास पर कुर्सी-मेज पर अपने समर्थकों के बीच ऐसे बैठते हैं जैसे पुराने समय में राजा-महाराजा बैठा करते थे. पूरे लोकसभा क्षेत्र के लोगों की समस्याओं के बारे में सुनते हैं. कुछ लोग प्रशासनिक समस्या लेकर आते हैं, कुछ राजस्व तो कोई एजुकेशन के बारे में मदद लेने आते हैं. वैसे तो मौजूदा समय में बृजभूषण शरण सिंह के स्कूल-कॉलेजों की संख्या तकरीबन अस्सी के आसपास है, जो गोंडा, बलरामपुर, बहराइच और श्रावस्ती में बने हुए हैं. लेकिन इन सब में गोंडा के नवाबगंज में मौजूद नंदिनी नगर देशभर में चर्चित है. इसी नंदिनी नगर कैपंस में बृजभूषण राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कुश्ती चैंपियनशिप करवा डालते थे.

वैसे तो नवाबगंज कहने को गोंडा जिले में है लेकिन यह अयोध्या से सटा इलाका है. नंदिनी नगर महाविद्यालय अयोध्या से महज सात आठ किलोमीटर पर है. यही कारण है कि बृजभूषण का 'दबदबा' बाकी के तीन चार जिलों के अलावा अयोध्या में भी भरपूर रहा है. गोंडा तो उनका गृह जिला है, बाकी के जिलों में उन्होंने पिछले तीन दशकों से 'दबदबा' कई कारणों के चलते बना रखा है. यह संयोग ही है कि उनकी कैसरगंज लोकसभा में गोंडा की तीन जबकि बहराइच की दो विधानसभा आती है. वे कैसरगंज से तो सांसद रहे ही हैं, गोंडा लोकसभा से भी सांसद रहे हैं, बलरामपुर जिला गोंडा लोकसभा में ही आता है. 

आसान भी नहीं बृजभूषण हो जाना.. 

उनकी लोकप्रियता का आलम या यूं कहें दीवानगी के आलम का एक उदाहरण समझिए कि इन चार-पांच जिलों में पिछले दस पंद्रह सालों के स्नातक के अधिकतर छात्र-छात्रा बृजभूषण के ही किसी ना किसी कॉलेज से पढ़कर निकले हैं. उन्होंने अपने महाविद्यालयों को साफ संदेश दिया हुआ है कि छात्र-छात्राओं के हित में जितना संभव हो, उसे किया जाना चाहिए. यहां तक कि महाविद्यालयों में ही नहीं स्कूलों का भी यही हाल है. उनके स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों या पूर्व छात्रों से पूछिए तो वे बताते हैं कि उनके लिए बृजभूषण क्या है.

उधर इन जिलों में बृजभूषण के दबदबे का आलम एक और उदाहरण से समझिए कि यहां के ग्राम पंचायतों के सरपंचों, जिला पंचायत सदस्यों, अध्यक्षों यहां तक कि विधायकों तक बृजभूषण की सीधी पहुंच है. वे किसी भी समय कभी भी सीधा किसी को फोन कर सकते हैं. इतना ही नहीं ये सब लोग भी किसी भी काम के लिए बृजभूषण तक पहुंचते हैं और बृजभूषण उनके काम को कराने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. बृजभूषण के विरोधियों का तो ये भी तर्क है कि इन इलाकों में बृजभूषण की जानकारी के बिना कोई बड़ा चुनाव नहीं जीत सकता. इसमें सरपंच से लेकर विधायक भी शामिल हैं. यहां तक कि गोंडा बलरामपुर के लिए जब एमएलसी का चुनाव हो रहा था तो बृजभूषण के एक सहयोगी अवधेश कुमार सिंह मंजू जो पहले समाजवादी पार्टी में थे, उनको बृजभूषण ने एमएलसी बनवा दिया.

इन जिलों में बृजभूषण का दबदबा पार्टी लाइन से भी ऊपर रहा है. यही कारण है कि 2009 में जब वे बीजेपी से नाराज होकर समाजवादी पार्टी में गए तो भी वे कैसरगंज सीट से सांसद बन गए. हालांकि अगले चुनाव यानि कि 2014 में वापस बीजेपी में आए और फिर से लगातार दो बार चुनाव जीते. बृजभूषण राम मंदिर आंदोलन के भी प्रोडक्ट रहे हैं. उस दौर में वे अयोध्या के साकेत कॉलेज में छात्रनेता थे और बाबरी विध्वंस के दिन युवा बृजभूषण अयोध्या में आडवाणी के इर्द गिर्द ही खड़े रहे और अपने साथियों की टोली को निर्देश देते रहे. यहां तक कि उन्होंने गुंबद को ढहाने के लिए अपने गांव से औजार भी रात में ही मंगवा लिए थे. बृजभूषण उन गिने-चुने लोगों में शामिल रहे जिन पर बाबरी विंध्वंस का केस चला.

लेकिन हाल के कुछ सालों में उनकी रॉबिनहुड वाली छवि धूमिल होती गई. गोंडा की तरबगंज विधानसभा के एक बुजुर्ग का कहना है कि पहले बृजभूषण बेधकड़क लोगों की मदद करते थे. लेकिन बाद में वे ठेका-पट्टा वालों, गुंडई करने वालों और छुटभइए नेताओं के आका बन गए और शायद यह बात वो समझ भी नहीं पाए. बृजभूषण की राजनीति पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स भी कमोबेश ऐसी ही बात बताते हैं, वरना बृजभूषण की हार्डकोर बीजेपी की हिंदुत्व वाली छवि राष्ट्रीय राजनीति में उनको काफी आगे ले जा सकती थी. पहले तो 2009 में मुलायम से नजदीकी के चलते बीजेपी छोड़ दिया फिर वापस तो लौटे, लेकिन हाल के समय में अपने बड़बोलेपन के चलते भी चर्चा में रहे.

तीन दशक की ताबड़तोड़ राजनीति.. 

वे शुरू से ही पहलवानी करते थे, अयोध्या के कई अखाड़ों में वे छात्रनेता के दौर में वे खूब जाते रहे. यही कारण है कि अभी भी उनके कॉलेजों में अखाड़े बनाए जाते हैं और वे खुद भी अपने शरीर को फिट रखते हैं. इसी बीच वे दस साल कुश्ती संघ के अध्यक्ष रहे और देशभर में उनके नाम की चर्चा हुई लेकिन वे खुद को इन्हीं चार-पांच जिलों से बाहर का नहीं दिखा पाए. उनके आलोचक ये भी कहते हैं कि उन्होंने इन इलाकों का विकास नहीं किया, सिर्फ पूंजी बनाई और जमीने कब्जा लीं, वरना अस्सी के आसपास स्कूल कॉलेज बनाना आसान नहीं है. हालांकि इलाके में उनके समर्थकों का तर्क है कि अगर इतने सालों में बीजेपी नेता बृजभूषण का विरोध ना करते तो वे अब तक केंद्रीय मंत्री बन गए होते. 

ऐसा हुआ भी जब 2009 में वे बीजेपी छोड़कर सपा में गए तो उन्होंने उस समय खुद भी यही जताया था कि वे स्थानीय नेताओं से नाराज हैं. बृजभूषण 1980 के ही दशक में खूब सक्रिय हो गए थे. 1987 में गन्ना समिति के चेयरमैन का चुनाव लड़ा और जीत गए. फिर राम मंदिर आंदोलन से जुड़ गए. गोंडा बलरामपुर के राजा कुंवर आनंद सिंह अन्नू भइया के यहां उनका आना-जाना लगा रहता था. लेकिन मौक़ा पाते ही 1991 में उन्हीं के खिलाफ बृजभूषण को बीजेपी से लोकसभा टिकट मिल गया और उनको पटकनी दे दी. 

उनकी पहली ही जीत की चर्चा अटल-आडवाणी तक पहुंच गई. यह इसलिए भी क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने पहला चुनाव उसी बलरामपुर सीट से ही लड़ा था. यही कारण है कि 1996 में जब बृजभूषण पर टाडा लगा तो तिहाड़ जेल में उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की चिट्ठी मिली. अटल ने उन्हें बहादुर बताया था. बृजभूषण पर आरोप था कि उन्होंने मुंबई ब्लास्ट के आरोपी दाऊद के शूटर्स की मदद की थी, हालांकि बाद में बृजभूषण को क्लीनचिट मिल गई थी. 1996 वाला चुनाव तो वे जेल से ही जीत गए, उस समय बीजेपी ने उनकी पत्नी केतकी सिंह को उम्मीदवार बनाया था.  

इसके बाद तो बृजभूषण ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. धीरे-धीरे वे रॉबिनहुड से बाहुबली बन गए, फिर उनके आलोचक उनको माफिया भी बताने लगे. उनके ऊपर मर्डर के भी कई आरोप लगे. उन पर IPC की चार गंभीर और 7 कम गंभीर धाराओं में केस दर्ज किए जा चुके हैं. लेकिन उनके समर्थकों के बीच उनकी तूती बोलती रही और वे धमाकेदार तरीके से चुनाव जीतते रहे. 2004 में उन्होंने मायावती का जमकर विरोध किया जब मायावती ने गोंडा का नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू की, गोंडा में बृजभूषण ने आंदोलन खड़ा कर दिया, बात अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंच गई. फिर मायावती को अपना फैसला वापस लेना पड़ गया.

समर्थकों-आलोचकों का तर्क समझ लीजिए

लेकिन ऐसा क्या हुआ कि देखते ही देखते वे पिछले कुछ सालों से वे बीजेपी के लिए ही किरकिरी बन गए. सीएम योगी की भी वे बाढ़ के दिनों में आलोचना करते हुए पाए गए. कहा जाता है कि योगी को वो कतई पसंद नहीं हैं. हालांकि बृजभूषण के बेटे प्रतीक भूषण गोंडा की सदर विधानसभा सीट से विधायक हैं और वे सीएम योगी के बड़े प्रशंसक हैं. यहां तक कि विधानसभा सत्रों के दौरान प्रतीक भूषण की तस्वीरें योगी के साथ खूब सामने आती हैं. गोंडा में बृजभूषण के राजनीतिक विरोधी रहे सपा सरकार में मंत्री पंडित सिंह उनके साथ कई मौकों पर मंच भी साझा करते रहे. हालांकि कोविड के दौरान पंडित सिंह की जब मौत हुई तो कंधा उठाने बृजभूषण पहुंचे थे और वे भावुक भी थे. वो तस्वीर भी खूब चर्चा में रही है. एक बार तो एक मंच पर बृजभूषण ने पंडित सिंह के लिए गाना भी गाया था. पुराने लोग बताते हैं कि पंडित सिंह के बड़े भाई के साथ बृजभूषण ने अपने शुरूआती दिनों काम किए हैं. हालांकि पंडित सिंह के अलावा उस इलाके में बृजभूषण को कोई उतनी बड़ी चुनौती नहीं दे पाया, यह बात भी सत्य है.

हाल के समय में बृजभूषण एक बार फिर गलत कारणों से चर्चा में रहे. पहलवानों के धरने के बाद बृजभूषण पर कई आरोप लगे. बीजेपी ने चुप्पी साधे रखी है. सवाल यही है कि क्या इस बार उनको टिकट मिलेगा. क्योंकि अभी तक यूपी की सिर्फ तीन सीटों का ही ऐलान नहीं हुआ है इसमें कैसरगंज वाली सीट भी है. यह सच है कि बृजभूषण का टिकट काटना आसान नहीं है लेकिन अंदरखाने दो बातें चल रही हैं. एक यह कि बीजेपी उनकी पत्नी केतकी को टिकट देना चाह रही लेकिन बृजभूषण इसके लिए तैयार नहीं है. दूसरी बात यह कि बीजेपी अब उनके विकल्प की तलाश में है. बृजभूषण के ही दो खास विधायक इस रेस में हैं. एक कर्नलगंज से विधायक अजय सिंह, दूसरे तरबगंज से विधायक प्रेम नारायण पांडे.

एक बात यह भी है कि पहलवानों के आरोपों को लेकर दिल्ली की एक कोर्ट में सुनवाई भी होने वाली है, शायद बीजेपी इसका भी इंतजार कर रही है. चुनाव के एक्सपर्ट्स का मानना है कि बीजेपी पहले चरण के चुनाव का भी इंतजार कर रही है जिसमें जाटलैंड के भी चुनाव शामिल हैं. अब देखना है कि कैसरगंज का भविष्य किस तरफ जाएगा. लेकिन एक बात तो तय है कि बृजभूषण शरण सिंह बीजेपी के लिए वो निवाला हैं जिनको ना निगलते बन रहा है और ना ही उगलते बन रहा है. जल्द ही तस्वीर साफ होगी.

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