'एथलीट भी होते हैं इंसान', अभिनव बिंद्रा ने बताया कि खिलाड़ियों की मेंटल हेल्थ ट्रेनिंग क्यों है जरूरी
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'एथलीट भी होते हैं इंसान', अभिनव बिंद्रा ने बताया कि खिलाड़ियों की मेंटल हेल्थ ट्रेनिंग क्यों है जरूरी

एक खिलाड़ी को मैदान के अंदर और बाहर दोनों जगह मानसिक दबाव का सामना करना पड़ता है, इसलिए हमें उनके मेंटल वेलबीइंग पर फोकस करना होगा, तभी ओलंपिक जैसे बड़े इवेंट में परफॉर्मेंस बेहतर हो पाएगी. 

'एथलीट भी होते हैं इंसान', अभिनव बिंद्रा ने बताया कि खिलाड़ियों की मेंटल हेल्थ ट्रेनिंग क्यों है जरूरी

Abhinav Bindra on Mental Health of Athletes: भारत के दिग्गज शूटर अभिनव बिंद्रा ने जब साल 2008 के बीजिंग ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था, तो हम हिंदुस्तानियों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था. बिंद्रा का मानना है कि एक एथलीट का मानसिक लचीलापन और ताकत उनके ओवरऑल वेलबीइंग से जुड़ा हुआ है. खिलाड़ी स्पोर्ट्स इवेंट के बाहर भी काफी तनाव का सामना करते हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्पोर्ट्सपर्सन की मेंटल हेल्थ ट्रेनिंग पर ध्यान दिया जाना चाहिए. 

मेंटल हेल्थ पर फोकस जरूरी

अभिनव बिंद्रा ने 'एमपॉवर' के ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान नीरजा बिड़ला से कहा, "मानसिक लचीलापन और ताकत की नींव वास्तव में इस बात से बनती है कि एक एथलीट मानसिक रूप से एक इंसान के तौर पर कितना सेहतमंद है, उनके पास किस तरह का संतुलन है, क्योंकि इसका एथलीट के रूप में उनके मेंटल परफॉर्मेंस पर बहुत सीधा असर पड़ता है. इसलिए मुझे लगता है कि कभी-कभी थोड़ा पीछे हटना और एथलीट को एक इंसान के रूप में देखना बहुत अहम होता है, क्योंकि ये इस बात की नींव बनाता है कि आप खेल के मैदान पर मानसिक रूप से कैसा प्रदर्शन करने जा रहे हैं."

अभिनव ने ये भी कहा, "कभी कभी हम इस बात को भूल जाते हैं कि हम इस टनेल विजन में काफी फोकस हो चुके हैं कि मैदान में कैसे अच्छा प्रदर्शन किया जाए, लेकिन ये गौर नहीं किया जाता कि मैदान के बाहर एथलीट की जिंदगी कैसे होती है. बाहर की जिंदगी का सीधा लिंक खेल के मैदान में परफॉर्मेंस से जुड़ा होता है."

एथलीट को इंसान समझना जरूरी

अभिनव बिंद्रा ने इस बात पर फोकस किया कि एथलीट भी इंसान होते हैं उनको भी मानसिक दबाव महसूस होता है. उन्होंने कहा, "हम आखिर इस स्थिति से कैसे निपटेंगे? हम एक ऐसी स्थिति से निपटने में सक्षम होने जा रहे हैं, जहां हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि एथलीटों के पास अपने खेल करियर के दौरान दोहरा करियर का रास्ते हों और वो अपने खेल के दिनों के दौरान एक इंसान के तौर पर अपनी जिंदगी में संतुलन स्थापित करने में सक्षम हों क्योंकि ये ऐसी चीजें हैं जो खेल के बाद उनके जीवन में बिल्कुल जरूरी होंगे."

कामयाबी भी ला सकती है खालीपन

बीजिंग में गोल्ड मेडल जीतने को लेकर उन्होंने कहा कि वो मेडल जीतने का ख्वाब काफी समय से देख रहे थे, जब उन्होंने ये अचीव किया तो जिंदगी में एक बड़ा खालीपन आ गया. उस वक्त मेरे लिए कोई मोटिवेशन बाकी नहीं रहा और समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या किया जाए, क्योंकि जिंदगी वो एक बड़े मोमेंट के इर्द-गिर्द घूमने लगी थी, आगे के लिए कोई प्लानिंग नहीं थी, इसलिए ये चुनौतीपूर्ण समय बन चुका था. अभिनव ये कहना चाह रहे थे कि कभी-कभी बड़ी कामयाबी का असर भी मेंटल हेल्थ पर पड़ सकता है. 

 

मेडिटेशन का लिया सहारा

अभिवन ने ये भी बताया कि उन्होंने विपश्यना का सहारा लिया था. उन्होंने कहा, "मुझे याद है कि मेरी कामयाबी का एक पल सचमुच में तब आया था जब मैंने विपश्यना मेडिटेशन कोर्स पर जाने का फैसला किया था. उस समय, यह दिलचस्प था क्योंकि, उस समय, मैं सही में खेल छोड़ना चाहता था और अगली कॉलिंग पर आगे बढ़ना चाहता था. विपश्यना जाने के लिए ये मेरा पहला अभियान था - अपने नए कदम को खोजने के लिए, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि मेरा अगला जुनून क्या होने वाला है." वो 8 से 9 घंटे विपश्यना करते थे और करीब 10 दिनों तक बिलकुल शांत रहते थे.

ओलंपिक में क्यों घबरा जाते हैं एथलीट?

जब ज़ी न्यूज (ZEE NEWS) ने अभिनव बिंद्रा से सवाल पूछा, "हमने देखा है कि भारत के काफी खिलाड़ी वर्ल्ड कप और वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसे इवेंट में गोल्ड मेडल लाते हैं, लेकिन वही एथलीट ओलंपिक में कामयाब नहीं हो पाते, क्या ये ओलंपिक का प्रेशर है जिसका सामना करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है?"

अभिनव बिंद्रा ने जवाब देते हुए कहा, "इस बात में कोई शक नहीं है कि ओलंपिक में यूनिक लेवल का प्रेशर होता है, जो अपने आप में खास होता है और वो कई एथलीट के लिए भारी पड़ सकता है. वर्ल्ड चैंपियनशिप और ओलंपिक जैसे इवेंट में जो परफॉर्मेंस का जो फर्क आता है वो अक्सर दुनिया के सबसे बड़े स्टेज पर कॉम्पिटीशन करने के साथ आने वाले जबरदस्त साइकोलॉजिकल प्रेशर से पैदा होता है. इसको लेकर गहन जांच, एक्सपेक्टेशन और पूरे देश को रिप्रेजेंट करने की भावना एक मानसिक बोझ पैदा कर सकती है जो किसी भी दूसरे कॉम्पिटीशन से अलग होता है."

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