पिता की मानसिक बीमारी का बच्चे के जन्म पर पड़ता है बुरा असर, शोध में हुआ चौंका देने वाला खुलासा
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पिता की मानसिक बीमारी का बच्चे के जन्म पर पड़ता है बुरा असर, शोध में हुआ चौंका देने वाला खुलासा

Mental illness: आमतौर पर माना जाता है कि अगर मां मानसिक बीमारी से ग्रसित हो, तो बच्चे के समय पूर्व जन्म का खतरा होता है. परंतु अब नए शोध में पता चला है कि पिता की मानसिक बीमारी का भी बच्चे के जन्म पर असर पड़ता है.

पिता की मानसिक बीमारी का बच्चे के जन्म पर पड़ता है बुरा असर, शोध में हुआ चौंका देने वाला खुलासा

Mental illness: चिकित्सा जगत में आमतौर पर माना जाता है कि अगर मां मानसिक बीमारी से ग्रसित हो, तो बच्चे के समय पूर्व जन्म का खतरा होता है. परंतु अब नए शोध में पता चला है कि पिता की मानसिक बीमारी का भी बच्चे के जन्म पर असर पड़ता है. पीएलओएस मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित इस ताजा अध्ययन में यह भी बताया गया है कि समय से पहले जन्म का तात्पर्य गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पहले प्रसव से है और यह बच्चे के स्वास्थ्य पर नकारात्मक परिणामों के अधिक जोखिम से जुड़ा होता है. उदाहरण के लिए, समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार जैसी न्यूरोडेवलपमेंटल स्थितियों की दर अधिक होती है. बच्चे का जन्म जितनी जल्दी होगा, जटिलताओं का खतरा उतना ही अधिक होगा

15 लाख बच्चों के आंकड़े का अध्ययन
शोध में 1997 और 2016 के बीच स्वीडन में पैदा हुए 15 लाख शिशुओं का आंकड़ा शामिल किया गया. शोधकताओं ने राष्ट्रीय रोगी रजिस्टर से माता-पिता के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्राप्त की, जो स्वीडन में नैदानिक विशेषज्ञों द्वारा किए गए सभी मनोरोग निदानों का रिकॉर्ड रखता है. हमने मेडिकल जन्म रजिस्टर से हफ्तों में गर्भधारण की लंबाई (गर्भकालीन आयु) का पता लगाया, जहां सभी स्वीडिश जन्म दर्ज किए जाते हैं. लगभग 15% शिशुओं के माता-पिता में से कम से कम एक को मानसिक स्वास्थ्य विकार था.

शौच की तकलीफ से याददाश्त, एकाग्रता की परेशानी
न्यूयॉर्क एजेंसी कई लोग शौच संबंधी समस्याओं से जूझते रहते हैं, हाल ही में किए गए शोध में बताया गया है कि जिन लोगों को इस तरह की समस्या होती है, उनमें मस्तिष्क से जुड़ी बड़ी समस्याएं होने की आशंका अधिक होती है. शोधकर्ताओं द्वारा 1100 लोगों पर किए गए अध्ययन में यह भी पाया गया है कि दुनिया में 16% लोग इस तरह की समस्याओं से जूझते हैं. अमेरिका के मसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय में किए गए इस शोध में बताया गया है कि खासकर बुजुगों में यह परेशानी ज्यादा देखी जाती है. ऐसे लोगों में धीरे-धीरे सोचने की क्षमता, ध्यान देने और याददाश्त कम होने की समस्या ज्यादा होने लगती है. शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तरह की समस्या व्यक्ति को डिमेशिया या इससे सबंधित बीमारियों जैसे अल्जाइमर की और ले जाती है.

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