Supreme Court Article 370 Hearing: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 2019 में आर्टिकल 370 को निरस्त कर दिया था. इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं हैं, जिस पर हर दिन चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच सुनवाई कर रही है.
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What is Article 370: सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 370 को हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को कहा कि आर्टिकल 35ए सिर्फ जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है, जिससे एक 'आर्टिफिशियल क्लास' बनता है. मोदी सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आर्टिकल 35ए ने भारत के संविधान में एक नया प्रावधान बनाया है, जो केवल जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों पर लागू होगा.
'मौलिक अधिकारों से वंचित थे'
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी ने सॉलिसिटर जनरल की दलील को यह कहकर मजबूत किया कि आर्टिकल 35ए आर्टिकल 35 का संशोधन नहीं है बल्कि यह संविधान के तहत एक नए आर्टिकल का निर्माण है. उन्होंने कहा कि वर्षों से बसे सफाई कर्मचारियों जैसे समान स्थिति वाले लोग, जो स्थायी निवासियों की आर्टिफिशियल क्लास से बनाई गई परिभाषा के तहत नहीं आते थे, जम्मू-कश्मीर में सभी मौलिक अधिकारों से पूरी तरह से वंचित थे.
सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि अगर कोई निवासी महिला जम्मू-कश्मीर के बाहर शादी करती है, तो वह अपनी स्थायी निवास खो देती है. उन्होंने कहा कि शुरुआत से ही आर्टिकल 370 को एक अस्थायी प्रावधान के रूप में माना गया था.
मेहता ने आर्टिकल 370 को निरस्त करने को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले राज्य के राजनीतिक दलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें इसे निरस्त करने पर जम्मू-कश्मीर के निवासियों का मार्गदर्शन करना चाहिए, क्योंकि इससे क्षेत्र में तरक्की के रास्ते खुलेंगे.
'राजनीतिक पार्टियां कर रहीं बचाव'
उन्होंने कहा, 'आपके आधिपत्य में कम से कम दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियां हैं जो आर्टिकल 370 का बचाव कर रही हैं, जिसमें आर्टिकल 35ए भी शामिल है.' उन्होंने आगे कहा, 'अब तक लोगों को उन (राजनीतिक दलों का जिक्र) की तरफ से भरोसा दिया गया है कि यह आपके लिए लड़ने का विशेषाधिकार है कि कोई भी आपसे आर्टिकल 370 नहीं छीन सकता. यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा है.'
मेहता ने कहा कि ऐसे कई प्रावधान थे जो लोगों के हितों के खिलाफ काम कर रहे थे, लेकिन निवासी आर्टिकल 370 को बरकरार रखने के लिए राजी थे. मेहता ने तर्क दिया, 'अब उन्हें एहसास हुआ है कि उन्होंने क्या खोया है. आर्टिकल 35ए नहीं होने की वजह से निवेश आ रहा है. अब पुलिसिंग केंद्र के पास होने से पर्यटन शुरू हो गया है. अब तक 16 लाख पर्यटक आ चुके हैं. नए होटल आ रहे हैं जो बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देते हैं.' उन्होंने संवैधानिक पीठ से जम्मू-कश्मीर के लोगों के नजरिए से फिर सोचने का अनुरोध किया.
उन्होंने कहा, इस मामले को जम्मू-कश्मीर के लोगों के नजरिए से देखा जाए. सत्ता का विवादित संवैधानिक इस्तेमाल मौलिक अधिकार देता है और उन्हें उनके अन्य भाइयों और बहनों के बराबर लाने के लिए पूरे संविधान को लागू करता है और सभी कल्याणकारी कानूनों को लागू करता है जो लागू नहीं थे (अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से पहले).'
संविधान सभा शब्द को रिप्लेस करने पर कही ये बात
मेहता ने तर्क दिया कि जम्मू-कश्मीर संविधान और इसकी संविधान सभा को भारतीय संविधान के अधीन होना चाहिए था. उन्होंने तर्क दिया कि भारत के प्रभुत्व के साथ एकीकरण के लिए राज्यों को विलय समझौतों पर दस्तखत करना अनिवार्य नहीं था.
'संविधान सभा' को 'विधान सभा' से रिप्लेस करने का बचाव करते हुए उन्होंने तर्क दिया कि जब भी आर्टिकल 370 में कोई शब्द लुप्त हो जाता है, तो उसे उसके उत्तराधिकारी से बदल दिया जाता है. उन्होंने आर्टिकल 370 के मामले में बताया कि सद्र-ए-रियासत बाद में राज्यपाल बन गया. इससे पहले, केंद्र ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला, चाहे जो भी हो, 'ऐतिहासिक' होगा और जम्मू-कश्मीर के निवासियों के मन में मौजूद 'मनोवैज्ञानिक द्वंद्व' को खत्म कर देगा. मामले की सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी.
(इनपुट-पीटीआई)