दोपहर 3 बजे के बाद थम जाता था बिहार का ये इलाका, एक भीषण नरसंहार ने बिहार को दिया नया पुलिस जिला
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दोपहर 3 बजे के बाद थम जाता था बिहार का ये इलाका, एक भीषण नरसंहार ने बिहार को दिया नया पुलिस जिला

Bagaha Police District: आज भी बगहा इलाके में 90 के दशक का वो दौर याद करके लोग सिहर जाते हैं. आज मोबाइल और गांव-गांव सड़क कनेक्टिविटी हो जाने से भी लोगों के मन में डाकुओं का खौफ खत्म हो गया है. ये कह सकते हैं कि वो दौर दूसरा था और ये दौर दूसरा है. 

बगहा पुलिस अधीक्षक कार्यालय (File Photo)

पिछले 28 साल से बगहा पुलिस जिला (Bagaha Police District) बना हुआ है और उसे राजस्व जिला बनाने की मांग भी तेज हो गई है. उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव से पहले अप्रैल 2025 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बाबत ऐलान भी कर दें. ऐसे में आपके लिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि ​बगहा किन हालात में पुलिस जिला बना था? वो क्या कारण थे कि तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बगहा को पुलिस जिला बनाने का ऐलान कर दिया था? उस समय बगहा समेत पश्चिम चंपारण के अधिकांश इलाकों में दोपहर बाद 3 बजे के बाद लोग सहम से जाते थे. जो जहां ठहर गया, रात वहीं गुजारनी होती थी, क्योंकि दोपहर बाद 3 बजे के बाद डाकुओं की तूती बोलती थी. जिसको मन किया उठा लिया, जिसको मन किया मार दिया, अपहरण कर लिया. उस इलाके के माई-बाप एक तरह से डाकू ही हुआ करते थे. जो लोग सुबह घर से निकलते थे, उनके सुरक्षित वापस लौटने की कोई गारंटी नहीं हुआ करती थी. 

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बताया जाता है कि 14 दिसंबर 1994 को रामनगर प्रखंड के नरकटिया बहुअरवा गांव में दर्जन भर लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. मारे गए लोगों में गौरीशंकर महतो, रामविलास महतो, जयराम महतो, विश्रान महतो, भिखारी महतो, धर्मराज महतो, छेदी महतो, रोशन महतो, रोगाही महतो, नरसिंह महतो, भुवनेश्वर महतो, रूदल महतो, बलिराम महतो, सदाकत मियां और पांडू मुंडा शामिल थे. 

1995 तक बगहा पश्चिम चंपारण का एक अनुमंडल ही था, लेकिन गोबरहिया थाने के नरकटिया दोन में 15 लोगों की हत्या के बाद से पूरा सीन ही चेंज हो गया था. लोगों ने बड़ा आंदोलन करना शुरू कर दिया और मुख्यमंत्री को घटनास्थल पर बुलाने की मांग करने लगे. लोगों की जिद पर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को मौके पर जाना पड़ा था. 

मामले की गंभीरता को समझते हुए लालू प्रसाद यादव ने 8 जनवरी 1996 को बगहा को पुलिस जिला घोषित कर दिया था. उसके बाद बगहा के पहले एसपी के रूप में आरके मल्लिक ने ज्वाइन किया था. उस समय बगहा में कुख्यात डकैत राधा यादव, रामचंद्र मल्लाह, अलाउद्दीन मियां, चुम्मन यादव, राजेंद्र चौधरी, किशोरी नुनिया, पत्थर चौहान और नेमा यादव का आतंक सिर चढ़कर बोलता था. 

वो साल दूसरा था और ये साल दूसरा है. तब बच्चे स्कूल जाते थे, तब माताएं बच्चों की सुरक्षित वापसी की मन्नत मांगती थीं. कुछ दस्तावेज बताते हैं कि बगहा के कुछ इलाकों में नक्सलाइट भी सक्रिय थे. डाकुओं का आतंक और नक्सलाइट समस्या को देखते हुए सशस्त्र सीमा बल की एक बटालियन बगहा में स्थापित की गई. सरकार किसी की भी आए या जाए, वो 15 साल का काला दौर फिर से आने की कल्पना मात्र से ही सिहरन पैदा हो जाती है. 

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2005 के बाद जब राबड़ी देवी की सरकार गिर गई और नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई, तब जाकर डकैतों में खौफ दिखने लगा. एक एक कर अधिकांश डकैत या तो एनकाउंटर में मारे गए या फिर आत्मसमर्पण कर जेल चले गए. 2005 के बाद अभी तक आप चंपारण के किसी भी इलाके में रात हो या दिन, कभी भी किसी समय आवाजाही कर सकते हैं. बस बगहावासियों को इंतजार है कि यह पुलिस जिला कब राजस्व जिले में तब्दील हो और छोटे छोटे काम के लिए उनका 60 किलोमीटर का बेतिया का सफर खत्म हो. उम्मीद है उनका यह इंतजार खत्म होने वाला है.

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