Indian Citizenship: 17 साल पहले कहे गए विदेशी, अब जाकर भाई-बहन को मिली भारतीय नागरिकता
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Indian Citizenship: 17 साल पहले कहे गए विदेशी, अब जाकर भाई-बहन को मिली भारतीय नागरिकता

Bimal Das-Sushma Das Story: फर्ज करिए कि आप भारतीय नागरिक हों लेकिन टैग विदेशी होने का लग जाए तो क्या करेंगे. जाहिर सी बात है कि खुद को भारतीय साबित करने के लिए आपको कानूनी मदद लेनी होगी. ऐसा ही एक मामला असम का है जहां एक भाई और बहन को 2006 में विदेशी घोषित कर दिया गया था.

Indian Citizenship: 17 साल पहले कहे गए विदेशी, अब जाकर भाई-बहन को मिली भारतीय नागरिकता

Bimal Das-Sushma Das Indian Citizen:   17 साल बाद बिमल दास और उनकी बहन सुषमा के चेहरे पर खुशी के भाव हैं. हो भी क्यों नहीं 2006 में उन्हें विदेशी घोषित किया गया था. विदेशी टैग को हटाने के लिए उन्हें लंबी कानूनी लड़ाई पड़नी. वो कहते हैं कि 2011 में एक पक्षीय फैसले से उनकी उम्मीद टूट गई. लेकिन वो जानते थे कि सच ये है कि वो विदेशी नहीं बल्कि भारतीय हैं. उनके सामने कानूनी लड़ाई के अलावा कोई और विकल्प नहीं था. ऐसे में उन्हें तलाश एत बेहतर वकील की थी जो उसकी मदद कर सके.

इस शख्स ने लड़ी लड़ाई

बिमल और सुषमा की तलाश ब्रजबल्लभ गोस्वामी नाम के वकील पर पूरी हुई. गोस्वामी ने दोनों के केस को लड़ने का जिम्मा उठाया. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक गोस्वामी बताते हैं कि बिमल और सुषमा की तरह उनके पिता नीलमणि दास को भी विदेशी नागरिक बताया गया था. हालांकि आठ अगस्त को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल 1 ने उन्हें विदेशी टैग से मुक्त कर दिया. कानूनी लड़ाई में रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन और दूसरे दस्तावेजों में दर्ज नाम से उन्हें मदद मिली.

एक और महिला को राहत
दास परिवार पर दुखों का पहाड़ तब टूटा जब 2006 में बॉर्डर पुलिस ने उन्हें अपनी रिपोर्ट में संदेहास्पद व्यक्तियों की सूची में डाला. ये तीनों पुलिसिया कार्रवाई के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ते रहे. करीब पांच साल बाद यानी 2011 में जब फैसला आया तो उन्हें विदेशी माना गया. हालांकि इन तीनों की गिरफ्तारी कभी नहीं हुई. इसी तरह से दक्षिण करीमगंज की रहने वाली दिप्ती मालाकार को भी विदेशी टैग से आजादी मिल चुकी है. इन्हें 2018 में विदेशी नागरिक माना गया था. 

ये लोग माने जाएंगे भारतीय नागरिक

बता दें कि असम में बांग्लादेशी शरणार्थियों का मुद्दा राजनीतिक तौर पर संवेदनशील मुद्दा है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट मे केंद्र सरकार से इन शरणार्थियों की संख्या के संबंध में सवाल भी किया था. इसके लिए अदालत के सामने आंकड़े भी पेश करने के निर्देश दिए गए हैं. 1985 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के मुताबिक जो लोग एक जनवरी 1966 या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश से असम में आए उन्हें असम का नागरिक माना गया. हालांकि उन्हें भारतीय नागरिकता के लिए धारा 18 के तहत अपना पंजीकरण कराना होगा.

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