चंद्रयान-3 के लिए ये 15 मिनट होंगे बेहद अहम, जरा सी चूक पूरे मिशन पर फेर देगी पानी
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चंद्रयान-3 के लिए ये 15 मिनट होंगे बेहद अहम, जरा सी चूक पूरे मिशन पर फेर देगी पानी

Chandrayaan-3 DNA Analysis: अब केवल 21 घंटे बचे हैं. अगले 21 घंटे, ISRO के वैज्ञानिक ही नहीं, पूरे देश की निगाहें, उस ऐतिहासिक घटना का इंतजार कर रही हैं, जो कल 6 बजकर 4 मिनट पर घटने वाली है. ये वो समय होगा जब चंद्रयान-3, चांद की सतह पर उतरेगा. हम शब्दों में बयां तो नहीं कर सकते हैं, लेकिन इस घटना के आखिरी 15 मिनट, वैज्ञानिकों की सांसें थाम देने वाले क्षण होंगे.

चंद्रयान-3 के लिए ये 15 मिनट होंगे बेहद अहम, जरा सी चूक पूरे मिशन पर फेर देगी पानी

Chandrayaan-3 DNA Analysis: अब केवल 21 घंटे बचे हैं. अगले 21 घंटे, ISRO के वैज्ञानिक ही नहीं, पूरे देश की निगाहें, उस ऐतिहासिक घटना का इंतजार कर रही हैं, जो कल 6 बजकर 4 मिनट पर घटने वाली है. ये वो समय होगा जब चंद्रयान-3, चांद की सतह पर उतरेगा. हम शब्दों में बयां तो नहीं कर सकते हैं, लेकिन इस घटना के आखिरी 15 मिनट, वैज्ञानिकों की सांसें थाम देने वाले क्षण होंगे. इन्हीं आखिरी 15 मिनट को वर्ष 2019 में ISRO के पूर्व चेयरमैन के.सिवन ने '15 Minutes of Terror' यानी 'आतंक के 15 मिनट' कहा था.

आप सोचिए देश के इतने बड़े वैज्ञानिक के लिए Landing के आखिरी 15 मिनट इतने डरावने होते हैं, क्योंकि इसमें कुछ भी हो सकता है. यही वो 15 मिनट हैं, जिसमें पिछले 10 वर्षों के अंदर 4 अलग-अलग देशों के Moon Mission Fail हुए हैं. वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 की Crash landing की शुरुआत, इन्हीं 15 मिनट के अंदर हुई थी. इस 15 मिनट के अंदर अंतरिक्ष यान, Operating System पर निर्भर हो जाता है. Landing Process के इन्हीं 15 मिनट की सारी Calculation, वैज्ञानिक पहले से ही करके रखते हैं, ताकि उस दौरान तय Algorithm के मुताबिक Soft Landing हो सके. Landing के इन आखिरी 15 मिनट के अंदर की जटिल गणनाएं करनी होती हैं, जो मशीनें ही करती हैं. इसके लिए उन्हें पहले से ही Program किया जाता है. इन गणनाओं में होने वाली जरा सी चूक से पूरा मिशन खतरे में पड़ जाता है.

अब आप ये जानना चाहते होंगे कि Landing  के आखिरी 15 मिनट के अंदर किस तरह की गणनाएं की जाती हैं. आइये आपको विस्तार से बताते हैं इसके बारे में.

-Lander Module की Horizontal Speed यानी सतह से उसकी समानांतर गति को 6 हजार किलोमीटर प्रति घंटा से घटाकर बारह सौ नब्बे किलोमीटर प्रति घंटा की जाती है.

-इस दौरान Lander Module की Vertical Speed यानी ऊपर से सतह की तरफ आने की गति भी नियंत्रित की जाती है.

-इस 15 मिनट के अंदर Lander Module को 90 डिग्री तक सीधा किया जाता है. यानी Lander Module के चारों पैर नीचे करते हुए Landing के लिए तैयार किया जाता है.

-इसके अलावा इसी दौरान Lander Module को सारे काम करते हुए, अपने लिए सबसे अच्छी Landing Site भी चुननी होती है. चांद पर गड्ढे और पत्थर भी हैं, ऐसे में उसकी Landing सही जगह हो, ये बेहद जरूरी है.

-Lander Module में 4 Thrusters और 12 छोटे इंजन लगे हुए हैं. Thrusters और इंजन कब चलाने हैं, कब बंद रखने हैं. कितने चलाने और कितने बंद रखने है, ये सारे फैसले इन्हीं 15 मिनट में लिए जाते हैं.

तो आप समझ सकते हैं कि Landing के आखिरी 15 मिनट में कितनी तरह की Calculation, एक साथ की जाती है. इसमें किसी भी एक प्रक्रिया में गलती की 1 प्रतिशत की गुंजाइश नहीं होती है. Landing के इन आखिरी 15 मिनट को ISRO के वैज्ञानिकों ने 4 चरणों में बांटा है.

पहला चरण- Rough Braking 
दूसरा चरण- Atitude Hold Phase 
तीसरा चरण- Fine Braking  
चौथा चरण- Terminal Descent 

ये चारों चरण सिर्फ 15 मिनट में पूरे किए जाते है. Landing की प्रक्रिया चांद की सतह से 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर आने के बाद से शुरू हो जाती है. इस समय Lander Module 6 हजार किलोमीटर प्रति घंटा यानी 1.68 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चक्कर लगा रहा होता है. यहीं से landing का पहला चरण शुरू हो जाता है, जिसे Rough Braking कहते हैं. इस चरण में Lander Module की रफ्तार 1.68 किलोमीटर प्रति सेकेंड से घटाकर 358 मीटर प्रति सेकेंड किया जाता है.

Rough Braking यानी पहले चरण के दौरान Lander Module 713 किलोमीटर की दूरी तय करेगा. जबकि उसकी ऊंचाई 30 किलोमीटर से घटकर साढ़े 7 किलोमीटर ही रह जाएगी. Rough Breaking चरण 11 मिनट 30 सेकेंड में पूरा किया जाएगा. पहला चरण यहां पर पूरा हो जाता है, इसके बाद दूसरा चरण शुरू होता है, जिसे कहते हैं Atitude Hold Phase. Atitude Hold का मतलब है, Lander Module के पैरों को सतह की ओर किया जाना. दरअसल Lander Module के पैर, सतह से 90 डिग्री के कोण पर होते हैं. Atitude Hold Phase के दौरान, Lander Module के चारों पैरों को सतह की ओर सीधा करना शुरू कर दिया जाएगा. इसी चरण में Lander Module की रफ्तार को भी 336 मीटर प्रति सेकेंड किया जाएगा. इस चरण में Lander Module करीब साढ़े 3 किलोमीटर की दूरी तय करेगा और इसकी ऊंचाई घटकर 6.8 किलोमीटर की जाएगी.

दूसरे चरण का सबसे महत्वपूर्ण काम Lander Module को सीधा करना है. और ये चरण केवल 10 सेकेंड के अंदर पूरा करना होता है. इसके बाद तीसरा चरण शुरू हो जाएगा. तीसरे चरण को कहते हैं- Fine Braking Phase. इस चरण में Lander Module को पूरी तरह से सीधा कर लिया जाएगा. मतलब ये है कि Lander विक्रम land करने के लिये तैयार हो जाएगा. इस चरण में Lander विक्रम की सतह से ऊंचाई 800 से 1000 मीटर तक हो जाएगी और वो करीब 28 किलोमीटर की दूरी तय करेगा. इस चरण में  Lander की गति को घटाकर लगभग शून्य कर दिया जाएगा. 

ये चरण  2 मिनट 55 सेकेंड में पूरा किया जाएगा. ये वही चरण है जिसमें पिछले बार चंद्रयान-2 रास्ता भटक गया था, वो पूरी तरह सीधा नहीं हो पाया था. यानी उसके पैर नीचे की तरफ नहीं आ पाए थे. इस बार वैज्ञानिकों ने इसके लिए विशेष इंतजाम किए हैं. Fine Braking Phase खत्म होने के बाद चौथा और आखिरी चरण शुरू हो जाएगा, इसे कहते हैं Terminal Descent. Landing के आखिरी चरण में जब Lander विक्रम, चांद की सतह से केवल 1000 मीटर की ऊंचाई पर होगा, उस वक्त Lander विक्रम अपने सभी सेंसर्स की जांच करेगा.

इसके बाद इस चरण में जब Lander विक्रम की ऊंचाई मात्र 150 मीटर रह जाएगी, उस वक्त वो Hazard Detection करेगा यानी वो अपने Landing Site की जांच करेगा. वो ये पता लगाएगा कि जिस जगह वो Land करने जा रहा है, वहां कोई गड्ढा, ढलान या पत्थर तो नहीं है. ये काम Lander में लगे 4 LH-DAC यानी Lander Hazard Detection and Avoidence Camera करेंगे. इसी चरण में अगर LH-DAC को Landing Site में गड़बड़ नजर आई, तो Lander विक्रम अपने landing Site को 150 मीटर और आगे ले जाएगा.

इसके अलावा Lander विक्रम LDV यानी Laser Doppler Velocimeter तकनीक का इस्तेमाल करेगा. इसी तकनीक के जरिए lander विक्रम, सतह तक आने के दौरान अपनी रफ्तार की जांच करेगा. Laser Doppler Velocimeter वही तकनीक है, जिसके जरिए हमारी ट्रैफिक पुलिस, तेज रफ्तार गाड़ियों की गति की जांच करती है और चालान करती है. इसी चरण में होने वाले Touch Down के वक्त, इसकी सतह तक आने की रफ्तार को 1 मीटर से 2 मीटर प्रति सेकेंड तक लाया जाएगा. हालांकि lander विक्रम 3 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से भी नीचे आया, तो भी वो Land कर जाएगा. यही नहीं अगर इस दौरान Lander विक्रम 12 डिग्री के कोण पर भी रहा, तो भी सुरक्षित तरीके से Land कर जाएगा. आखिरी चरण की पूरी प्रक्रिया 9 से 20 सेकेंड में पूरी की जाएगी.

अगर सब कुछ तय योजना के मुताबिक हुआ, तो Landing की प्रक्रिया 5 बजकर 45 मिनट से शुरू की जाएगी, यानी चंद्रयान-3 का Lander विक्रम, Rough Braking Phase में आ जाएगा. उसके बाद शाम 6 बजकर 4 मिनट पर Lander विक्रम, चंद्रमा की सतह पर पहुंच जाएगा. हालांकि ये आखिरी 15 मिनट ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि पूरे देश की सांसे थमी होंगी.

ISRO के वैज्ञानिकों ने इस बार ऐसी तैयारी की है, कि छोटी-मोटी कमियां अगर आ भी गईं, तो भी Lander विक्रम, Soft Landing का अपना मिशन पूरा कर लेगा. अभी जिस स्थिति में चंद्रयान -3 है, उसी स्थिति में चंद्रयान 2 भी सफल रहा था. लेकिन हम सब जानते हैं कि चंद्रयान-2, चंद्रमा की सतह पर Land नहीं कर पाया था. इसरो ने तब मिशन चंद्रयान-2 को 95 प्रतिशत तक कामयाब बताया था. चंद्रयान-2 की Soft Landing के अंतिम 15 मिनट में ही कुछ खराबियां आ गई थीं, जिसकी वजह से उसके Lander विक्रम  ने Hard Landing की थी. लेकिन इस बार चंद्रयान-3 में कुछ ऐसे बदलाव किए गए हैं, जिसकी मदद से चंद्रयान-3, मुश्किल हालातों में भी Soft Landing कर लेगा.

ISRO ने चंद्रयान-2 को Success based Design पर तैयार किया था. Success based Design का मतलब है कि चंद्रयान-2, अपना मिशन तभी पूरा करता, जब वो चंद्रमा पर Soft Landing में कामयाब होता. लेकिन इस बार ISRO ने चंद्रयान-3 को Failure Based Design पर तैयार किया गया है. यानी अगर Landing के समय, कुछ गड़बड़ी होती है, तो भी चंद्रयान-3 Land कर जाएगा. चंद्रयान-2 के समय भारत का Soft Landing का पहला प्रयास था. आपको बता दें कि दुनिया के केवल तीन ही देश हैं जो चंद्रमा पर Soft landing कर पाए हैं, इसमें अमेरिका, रूस और चीन का नाम है. वर्ष 2019 में ISRO के पास किसी भी ग्रह पर Soft Landing का कोई अनुभव नहीं था. 

ISRO ने चंद्रयान-2 की Landing Site के लिए 500 वर्गमीटर का क्षेत्र चुना था. Hard Landing के बाद ISRO को पता चला कि इतनी छोटी Landing site, चंद्रयान-3 के लिए ठीक नहीं रहेगी. इसीलिए इस बार ISRO ने चंद्रयान-3 की Landing के लिए करीब 10 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र चुना है. ये पिछली बार के मुकाबले कहीं ज्यादा बड़ी जगह है. LANDER विक्रम इस बड़े क्षेत्र में से अपने लिए सबसे उपयुक्त Landing Spot का चुनाव करके, Land करेगा.

Landing के दौरान चंद्रयान-2 ने चंद्रमा के सतह की कई तस्वीरें भेजी थीं. इन तस्वीरों की मदद से ही Lander विक्रम ने अपने लिए Landing spot का चुनाव किया था. ISRO ने चंद्रयान-3 की Landing के लिए चंद्रयान-2 से मिले Data और तस्वीरों की मदद ली है. दरअसल ISRO ने चंद्रयान-2 के लिए जिस Landing site का चुनाव किया था. उसी Landing site का data और तस्वीरें, ISRO के पास पहले से ही मौजूद थीं. चंद्रयान-3 की Landing Site भी उसी जगह के पास रखी गई है, जहां चंद्रयान-2 ने Hard Landing की थी. यानी Landing Site से जुड़ी कई अहम जानकारियां ISRO के पास पहले से ही मौजूद हैं. चंद्रयान-3 के Lander Module में भी कई तरह के बदलाव किए गए हैं. जो चंद्रयान-2 के मुकाबले बेहतर हैं. 

जैसे Soft Landing करवाने के लिए चंद्रयान-2 में 5 Thrusters लगे थे. इन Thrusters का काम था, Lander Module की रफ्तार को कम करना. हालांकि चंद्रयान-2 के Lander के Thrusters ने जरूरत से ज्यादा Thrust पैदा किया, जिसकी वजह से Lander विक्रम अपने तय रास्ते से भटक गया था. इस बार चंद्रयान-3 के Lander में 5 की जगह 4 Thrusters लगाए गए हैं. चंद्रयान-2 की Hard Landing की एक वजह ये भी थी, कि वो तय रफ्तार में नहीं था. इसके अलावा, उसका धरती से संपर्क भी टूट गया था. रफ्तार को नियंत्रित करने के लिए ही इस बार lander में 4 Thrusters लगाए गए हैं, लेकिन ये भी सुनिश्चित किया गया है, कि अगर कोई गड़बड़ी हुई, तो भी Landing हो जाए. इसके लिए चंद्रयान के Landing legs यानी Lander विक्रम के चारों पैरों की मजबूती बढ़ाई गई है.

Lander विक्रम के चारों पैरों को पहले के मुकाबले मजबूत बनाया गया है, ताकि वो ज़्यादा रफ़्तार में भी Land कर सके. तकनीकी रूप से Soft landing के दौरान 2 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार को safe माना जाता है. चंद्रयान-2 को इसी रफ्तार के हिसाब से तैयार किया गया था. लेकिन चंद्रयान-2 के समय रफ्तार इससे ज्यादा थी. जिसकी वजह से Crash landing हो गई थी. लेकिन ISRO ने इस बार चंद्रयान-3 को 3 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से भी Land करने के लिए तैयार किया है. हालांकि कोशिश 2 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से ही Land करवाने की होगी. लेकिन किसी कारणवश अगर lander की रफ्तार 3 मीटर प्रति सेकेंड भी रही तो भी वो ठीक ढंग से Land कर लेगा.

इस बार चंद्रयान-3 में सबसे बड़ा बदलाव उसके OPERATING SYSTEM में किया गया है. उसको पहले की तुलना में काफ़ी upgrade किया गया है. चंद्रयान में OPERATING SYSTEM का काम होता है, ISRO CENTER से मिले COMMAND पर LANDER का संतुलन, दिशा और गति को नियंत्रित करना. चंद्रयान-2 के OPERATING SYSTEM में इन सभी को नियंत्रित करने की सीमित क्षमता थी. यही वजह थी कि जब चंद्रयान-2 का LANDER  विक्रम, रास्ते से भटका, तो ऐसे में ना तो उसकी रफ़्तार कम हो पाई, ना ही उसको नियंत्रित किया जा सका. 

चंद्रयान-3 के OPERATING SYSTEM को इस तरह से Upgrade किया गया है कि, छोटी-मोटी कमियां आने पर भी वो Lander Module को नियंत्रित कर सकेगा. इस बार Landing के वक्त अगर Lander विक्रम 12 डिग्री तक झुका भी रहा तो भी वो ठीक से Land कर लेगा. यानी ISRO ने अपनी पिछली गलतियों से सबक लेते हुए, ना सिर्फ चंद्रयान-3 को UPGRADE किया है, बल्कि चंद्रयान-2 के समय आई तकनीकी खामियों को भी ठीक किया है.

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