वादे को पूरा करने में केजरीवाल सरकार नाकाम, दिल्ली के इमामों को नहीं मिली बढ़ी हुई सैलरी
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वादे को पूरा करने में केजरीवाल सरकार नाकाम, दिल्ली के इमामों को नहीं मिली बढ़ी हुई सैलरी

 दिल्ली सरकार ने वादा किया था कि 5 फरवरी को दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के तहत आने वाले इमाम और मोअज़्ज़िन की सैलरी बढ़ाकर दी जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

वादे के मुताबिक सैलरी बढ़ाने को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड पर दबाव...

नई दिल्ली: दिल्ली की केजरीवाल सरकार अपने वादे को निभाने में बुरी तरह नाकाम रही है. दिल्ली सरकार ने वादा किया था कि 5 फरवरी को दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के तहत आने वाले इमाम और मोअज़्ज़िन की सैलरी बढ़ाकर दी जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. फरवरी में इमाम और मोअज़्ज़िन कि सैलरी 10 औऱ 9 हज़ार के हिसाब से ही आई जबकि सरकार ने वादा किया था, कि इमाम की 18 हज़ार और मोअज़्ज़िन की 16 हज़ार रुपये सैलरी दी जाएगी.

दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के जिस कार्यक्रम में इमाम और सैलरी बढ़ाने का ऐलान किया गया था, उसमें दिल्ली की मस्जिदों से बड़ी तादाद में इमाम और मोअज़्ज़िन को बुलाया गया था. बड़ी बात ये थी कि बोर्ड की मस्जिदों के अलावा दिल्ली में मौजूद दूसरी मस्जिदों के इमाम और मोअज़्ज़िन की सैलरी देने का भी एलान किया गया था, जिनकी तादाद एक हज़ार से ज्यादा बताई जा रही है. हालांकि अब तक इस मामले में बोर्ड ने अपनी आखिरी कार्यवाही को भी मुक्कमल नहीं किया है.

दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड को दिल्ली सरकार की तरफ से सालाना बजट सात करोड़ से भी ज्यादा दिया जाता है. इस बार केजरीवाल सरकार ने आखिरी तिमाही में 2 करोड़ रुपये बोर्ड को और दिए, लेकिन इस बजट में सरकारी शर्तों को जोड़ा गया है. बजट को खर्च करने के लिए सरकारी नियम कानून का पालन करना होगा और बगैर जिम्मेदार अधिकारी या विभाग की अनुमति के इसे खर्च नहीं किया जा सकता. सूत्रों की मानें तो दिल्ली वक़्फ़ की तरफ़ से तो इमाम और मोअज़्ज़िन की सैलरी बढाने पर मुहर लग गई, लेकिन दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के सीईओ ने इस फ़ाइल को दिल्ली सरकार के सम्बंधित विभाग को भेज दिया, जहां मामला अटक गया.

दिक़्क़त इस बात की है कि सरकारी बजट का इस्तेमाल इमाम और मोअज़्ज़िन की सैलरी देने के लिए कैसे किया जाए? सरकार को ये भी डर है कि इस मामले को लेकर कोई कोर्ट चला गया तो दिक़्क़त बढ़ सकती है. कहा यही जा सकता है कि दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड अपनी इनकम के आधार पर इमाम और मोअज़्ज़िन की बढ़ी हुई सैलरी ज्यादा वक्त तक नहीं दे सकता और सरकार अपने स्तर पर अगर कदम उठाएगी तो दूसरे समाज का विरोध उसे झेलना पड़ सकता है.
  
दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के तहत इस वक़्त 195 इमाम और 59 मोअज़्ज़िन आते हैं. इन इमाम और मोअज़्ज़िन की बढ़ाई हुई सैलरी के लिहाज़ से बजट को जोड़ा जाए तो हर महीने करीब 44 लाख रुपये की जरूरत पड़ेगी. वही सालाना ये बजट 5 करोड़ से भी ज़्यादा का है. यही नहीं अगर बोर्ड से अलग दिल्ली की तमाम मस्जिदों के इमाम और मोअज़्ज़िन की सैलरी को इसमें जोड़ दिया जाए तो सलाना बजट कई गुना ज्यादा बढ़ जाएगा. हालांकि इस सिलसिले में बोर्ड की तरफ से कोई बात करने को राज़ी नहीं.

 

 

अपने वादे के मुताबिक सैलरी बढ़ाने को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड पर बहुत दबाव है, और आने वाले दिनों में ये एलान भी हो सकता है कि वादा पूरा हो गया, लेकिन इसका फायदा सिर्फ बोर्ड के तहत आने वाली मस्जिदों के इमाम और मोअज़्ज़िन को ही मिलेगा, बाकी मस्जिद के इमाम और मोअज़्ज़िन को नहीं, और ये कब तक बोर्ड इस सैलरी को देता रहेगा ये भी एक सवाल है? क्योंकि बोर्ड की इनकम बढ़ी जरूर है लेकिन इमाम और मोअज़्ज़िन कि सैलरी के अलावा भी बोर्ड के बहुत ख़र्च हैं. ऐसे में केरजीवाल सरकार के लिए अपना ये फैसला गले की हड्डी बनता दिख रहा है.

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