तिहाड़ जेल में कैदियों की मानसिक स्थिति को दुरुस्त करने के लिए प्रशासन ने उठाया कदम
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तिहाड़ जेल में कैदियों की मानसिक स्थिति को दुरुस्त करने के लिए प्रशासन ने उठाया कदम

इस जेल में तिहाड़ प्रशासन इस बात से चिंता में है कि जेल में कैदियों के आत्महत्या के मामले नहीं थम रहे. हर साल 6 से 7 कैदी आत्महत्या करते हैं.

तिहाड़ डीजी (जेल) अजय कश्‍यप.

नई दिल्‍ली: एशिया की सबसे सुरक्षित जेल, दिल्ली की तिहाड़ जेल हमेशा से ही सुर्खियों में रहती है. देश के बड़े से बड़े अपराधी और खूंखार आतंकी अपनी सजा काट रहे हैं. चाहे आतंकी यासीन भटकल हो या फिर छोटा राजन या बाहुबली नेता और दिल्ली का गैंगस्टर नीरज बवानिया और निर्भया गैंगरेप के दोषी. लेकिन इस जेल में तिहाड़ प्रशासन इस बात से चिंता में है कि जेल में कैदियों के आत्महत्या के मामले नहीं थम रहे. हर साल 6 से 7 कैदी आत्महत्या करते हैं.

कैदियों की मानसिक हालात को ठीक करने के लिए जेल प्रशासन ने बड़ा कदम उठाया है. दिल्ली तिहाड़ जेल के डीजी अजय कश्यप ने ज़ी न्यूज़ को बताया की तिहाड़ जेल देश की देश की पहली ऐसी जेल बन गया है जहा साइकोलॉजीकल फर्स्ट एड सर्विस कैदियों को मुहैया कराई जा रही है एक विशेष स्क्रीनिंग टूल के जरिये कैदियों की आत्महत्या हिंसक प्रवित्ति को रोकने के लिए एम्स अस्पताल के साथ मिलकर एक सार्थक प्रयास से करीब 60 काउंसलर जेल के करीब 7 हजार कैदियों की विशेष काउंसलिंग कर रहे हैं. उसके लिए स्क्रीनिंग टूल के जरिये हर कैदी के लिए करीब 20 सवाल तैयार किये जाते हैं. फिर अवसाद या किसी भी तरह की खराब मानसिक स्थिति से जूझ रहे कैदियों को तनावग्रस्त होने से बचाने की वर्कशॉप की जाती है.

तिहाड़ के मुताबिक जेल में हर साल करीब 6 से 7 कैदी आत्महत्या कर रहे है. कुछ कैदी मारपीट हत्या तक की वारदात को अंजाम देने से गुरेज नही करते हैं. बता दें कि तिहाड़ की 16 जेलों में करीब 16 हजार 400 कैदी बन्द हैं, जिसमें करीब 20 परसेंट विचारधीन कैदी हैं और बाकी 80 परसेंट सजायाफ्ता हैं. जिनमें 7 हजार कैदी इस ट्रेनिंग का लाभ ले रहे हैं.

तिहाड़ के इस प्रयास में WTO का एक महत्वपूर्ण योगदान है. बाकी कई सरकारी एजेंसियों की मदद भी तिहाड़ जेल प्रशासन ने ली हैं. तिहाड़ जेल के डीजी अजय कशयप के मुताबिक जेल में आने वाला हर कैदी किसी न किसी समस्या तकलीफ से ग्रस्त जरूर रहता है और कई बार वो थक हार कर आत्महत्या या हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम देने लगता है. यही वजह से एम्स जैसे संस्थान के साथ मिलकर ये प्रयास किया जा रहा है.

 

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