प्राइमरी स्कूल का टीचर घर-घर गया और 35 बच्चों को ले आया सरकारी स्कूल
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प्राइमरी स्कूल का टीचर घर-घर गया और 35 बच्चों को ले आया सरकारी स्कूल

यह खबर उन शिक्षकों के लिए है जो स्कूल में आकर केवल अपनी इतिश्री करके लौट जाते हैं.

स्कूल में रोजाना दीपक बच्चों के साथ मस्ती की पाठशाला चलाते हैं.

हिसार (हरियाणा): आज के समय में सरकारी बाबू या टीचर को लेकर हर किसी की सोच सवालिया ही रहती है. लोग सोचते हैं कि ये खुद की नौकरी से ही मतलब रखता है, लेकिन हिसार जिले के एक सरकारी स्कूल के जेबीटी टीचर दीपक की मेहनत चर्चा का विषय बनी हुई है. दीपक ने घर-घर जाकर गांव के 35 बच्चों को पढ़ाई के लिए सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवाया है.

जैसा कि आप जानते ही है कि अभिभावकों की सरकारी स्कूलों के प्रति विश्वसनीयता खत्म होती जा रही है. एक तो स्कूल सरकारी और ऊपर से ग्रामीण माहौल. हर कोई सोचता है कि बच्चों का एडमिशन प्राइवेट स्कूल में ही करवाया जाए. ऐसे में सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार घट ही रही है. हिसार जिले के बरवाला कस्बे के सरहेड़ा गांव में भी ऐसा ही माहौल था, लेकिन जेबीटी टीचर दीपक कुमार के प्रयासों के चलते हाल ही में प्राइवेट स्कूलों से अपना नाम कटवाकर बच्चों ने सरकारी स्कूल में दाखिला करवाया गया है.

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इसके लिए दीपक बकायदा स्टूडेंट्स के घरों तक पहुंचे. अभिभावकों से मिले और उन्हें समझाया कि वो बेहतर रिजल्ट तो देंगे ही साथ ही दूसरी एक्टिविटी में भी बच्चों को तराशेंगे. बस फिर क्या थे, अभिभावक मान गए और उन्होंने एक नहीं, दो नहीं बल्कि पूरे 35 बच्चों का नाम सरकारी स्कूल में लिखवाया है.
 
ऐसे किया दीपक ने कमाल, बच्चों का लिया साथ
दीपक ने जी मीडिया से बातचीत में बताया, उन्होंने हरियाणा शिक्षा बोर्ड में 5 जनवरी 2011 को ज्वाइनिंग की थी. 20 सितंबर 2016 को उनकी नियुक्ति सरहेड़ा के प्राइमरी स्कूल में हुई. उन्होंने बताया कि पहले इस स्कूल में 62 बच्चे थे, जिनमें से 17 पांचवीं कक्षा को पास करके चले गए. ऐसे में संख्या केवल 45 रह गई थी. उनके प्रयास शुरू से ही रहे है कि बच्चे इस सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए आए. अपने इस मिशन को कामयाब करने के लिए स्कूल के बच्चों की ही मदद ली.

एडमिशन करवाने में कामयाब रहे
दीपक बताते हैं, ''कक्षा में आने वाले बच्चों से वो पूछते कि तुम्हारे घर के पास कितने बच्चे हैं? कौन से स्कूल में जाते हैं? जानकारी जुटाकर वह बच्चों को साथ ले जाकर उनके अभिभावकों से मिलते और उन्हें समझाते. बस फिर क्या था, अभिभावक मान जाते और ऐसे करते-करते 38 बच्चों का एडमिशन करवाने में वह कामयाब रहे.
 
व्हटसऐप ग्रुप भी बनाया
स्कूल में रोजाना दीपक बच्चों के साथ मस्ती की पाठशाला चलाते हैं. हंसी-मजाक में उन्हें कहानियां या फिर दूसरी ग​तिविधियां करवाते हैं. माहौल ऐसा हो जाता है कि कविता सुनाते वक्त खुद उीपक भी उसमें इनवोलव होकर फेस एक्सप्रेशन इत्यादि देने लगते हैं. हंसी-खुशी खिलखाते माहौल में बच्चे भी खेल-खेल में काफी कुछ ना सिर्फ सीख लेते हैं. साथ ही उसे इंजाय करते हुए खूब हंसते भी नजर आते हैं. इसके अलावा जो अन्य गेम्स जैसे दौड़, खो-खो या फिर कोई भी गतिविधि करवाते हैं तो वो व्हाट्सऐप ग्रुप में डालते हैं. दीपक ने इस ग्रुप में अभिभावकों और गांव के लोगों को भी जोड़ा है ताकि ग्रामीणों को सरकारी स्कूल की गतिविधियों बारे पता रहे.
 
दीपक ने दूसरे शिक्षकों से की अपील
दीपक अपने अगले टॉरगेट के बारे में बताया, ''संख्या के अनुसार हाल ही में एक टीचर यहां और आएं हैं और एक और लाने की वो तैयारी में हैं. टीचर अनुपात की अगर बात करें तो 25 स्टूडेंटस पर एक टीचर होता है, तो अब 78 पर चार हो गए हैं. इसके लिए जल्द ही स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या को 78 से बढ़ाकर वो 150 करने में जुटे हुए हैं. उन्होंने दूसरे शिक्षकों को मैसेज देते हुए कहा कि सरकारी स्कूल किसी भी हालत में कमजोर नहीं है. बस जरूरत है सभी शिक्षक मेहनत से एकजुट होकर टीम के तौर पर काम करें.

ऐसे मिली कामयाबी
टीचर दीपक ने कहा कि प्राइवेट स्कूल में लोग दाखिला जरूर करवाते हैं, लेकिन माहौल की अगर बात करें तो जैसी शिक्षा सरकारी स्कूल में मिल सकती है वैसी प्राइवेट में मुमकिन नहीं. उन्होंने कहा कि प्राइवेट स्कूल और सरकारी स्कूल के बच्चे में फर्क क्या रहता है? ये अभिभावक को उन्होंने समझाया है, तभी तो कामयाबी मिली.
 
प्राइवेट से सरकारी में पढ़ने आए बच्चे
दीपक की कक्षा में पढ़ने वाले और प्राइवेट स्कूल से अपना नाम कटवाकर सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए आने वाले बच्चों से भी हमने बातचीत की. स्टूडेंट नमन और दीक्षा का कहना था कि उन्हें यहां सबसे अच्छा खेलना लगता है. शुभम और सुमेश ने बताया कि पढ़ाई तो होती है लेकिन दीपक सर जो कविता सुनाते है वो उन्हें अच्छा लग​ता है.

43 से बढ़कर 78 तक पहुंची संख्या
अक्षय और नमन छोटी कक्षा के स्टूडेंट है, लेकिन फर्राटेदार काउंटिंग भी सुनाई. वहीं दीपक की इस मेहनत और स्कूल में मिल रहे माहौल की ग्रामीण और बच्चों के अभिभावकों ने भी सरहाना की. बच्चों के अभिभावक जगदीश चंद्र ने बताया कि टीचर दीपक के कहने पर उन्होंने अपने 2 बच्चों का इस स्कूल में दाखिला करवाया. गांव सरहेड़ा के इंद्र लोहान ने कहा कि दीपक टीचर की मेहनत ही है, जो स्कूल में ऐसा हुआ. वरना, यहां स्कूल में स्टूडैंट्स की संख्या 43 ही रह गई थी, जो बढ़कर अब 78 पहुंच गई है.

प्रेरणादायक कहानी
कुल मिलाकर दीपक उन टीचर्स के लिए जरूर प्रेरणादायक है जो स्कूल में आकर केवल इतिश्री करके लौट जाते हैं. सरकारी स्कूलों पर सरकार हम लोगों के टैक्स से जुटाए रुपए को लगाती है, ताकि देश का भविष्य उज्जवल बन सके. हमारी उन टीचर्स से जरूर अपील है जो हाजिरी लगाने की इतिश्री करने स्कूल आते हैं, वो भले ही दीपक जैसे ना बने, लेकिन कम से कम अपने शिक्षा देने वाले फर्ज को तो सही से अदा करें.

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