डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के इस्तीफे पर बोले अर्थशास्त्री, 'हैरान करने वाली बात नहीं'
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डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के इस्तीफे पर बोले अर्थशास्त्री, 'हैरान करने वाली बात नहीं'

विरल आचार्य इस्तीफा देने की बात पर अर्थशास्त्रियों की राय है कि इससे कोई हैरानी नहीं है और इसका बाजार पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.

विरल आचार्य के इस्तीफे पर अर्थशास्त्रियों को हैरानी नहीं हुई है. (फाइल फोटो)

मुंबईः भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य द्वारा अपना कार्यकाल पूरा होने से छह महीने पहले इस्तीफा दे दिया है. वहीं, विरल आचार्य के इस कदम को लेकर अर्थशास्त्रियों की राय है कि इससे बाजार प्रभावित नहीं होंगे.

आचार्य 20 जनवरी, 2017 को सबसे युवा डिप्टी गवर्नर बने थे. उनका कार्यकाल तीन साल का था, लेकिन उन्होंने ‘अपरिहार्य निजी कारणों’ से अपना कार्यकाल पूरा होने से कुछ सप्ताह पहले ही इस्तीफा दे दिया है. 

एसबीआई रिसर्च के अर्थशास्त्रियों ने कहा, ‘‘आचार्य का पहले इस्तीफा देना हैरान करने वाला कदम नहीं है. बाजार तो दिसंबर, 2018 में उर्जित पटेल के रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से इस्तीफा देने के कुछ मिनट बाद ही इसकी उम्मीद कर रहा था.’’ 

अर्थशास्त्रियों ने कहा, ‘‘हालांकि, यह खबर दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन इससे बाजार प्रभावित नहीं होंगे.’’ 

जापान की ब्रोकरेज कंपनी नोमूरा ने कहा कि आचार्य का पद छोड़ना पूरी तरह हैरान नहीं करता है. उनके और सरकार के बीच केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को लेकर छिड़ा विवाद खुलकर सामने आया था. 26 अक्टूबर, 2018 को उन्होंने ‘स्वतंत्र नियामकीय संस्थानों का महत्व-केंद्रीय बैंक का मामला’ विषय भाषण दिया था. 

नोमूरा की रिपोर्ट में कहा गया है कि आचार्य के इस्तीफे के बाद मौद्रिक नीति समिति अधिक नरम रुख अख्तियार कर सकेगी क्योंकि आचार्य को सख्त रुख के लिए जाना जाता है. 

एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि आचार्य के समय से पहले इस्तीफा देने से यहां वहां कुछ आवाजें उठेंगी, जैसा कि रघुराम राजन द्वारा गवर्नर पद से इस्तीफा देने की घोषणा के बाद हुआ था. 

एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1983 से मूल्य स्थिरता को लेकर रिजर्व बैंक के इतिहास का विश्लेषण करने से पता चलता है कि सभी गवर्नर मूल्य स्थिरता को सबसे अधिक महत्व देते रहे हैं. 

(इनपुटः भाषा)

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