जयंती विशेष: बंगाल की महिला क्रांतिकारी बीना दास जो डिग्री ले​ने गईं तो अंग्रेज गवर्नर पर चला दी थीं गोलियां
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जयंती विशेष: बंगाल की महिला क्रांतिकारी बीना दास जो डिग्री ले​ने गईं तो अंग्रेज गवर्नर पर चला दी थीं गोलियां

6 फरवरी 1932 का दिन था, अचानक बीना दास अपनी सीट से उठीं, थोड़ा आगे बढ़ीं लेकिन हिचकिचाकर वापस अपनी सीट पर लौट आईं. एक बार फिर बीना ने हिम्मत की और इस बार वो तेजी से मंच पर भाषण देते जैक्सन की तरफ बढ़ीं...

जयंती विशेष: बंगाल की महिला क्रांतिकारी बीना दास जो डिग्री ले​ने गईं तो अंग्रेज गवर्नर पर चला दी थीं गोलियां

नई दिल्ली: 1986 में एक महिला की लाश ऋषिकेश में सड़क किनारे मिलती है, शायद कई दिन पुरानी थी. लोग पुलिस को सूचना देते हैं, पुलिस लावारिस लाश का पता ठिकाना ढूंढने की कोशिश करती है, 1 महीने के बाद जब उन्हें पता चलता है कि वो महिला कौन थी, तो उनके होश उड़ जाते हैं. बंगाल की प्रमुख महिला क्रांतिकारी, जिसने कभी बंगाल के गर्वनर पर एक के बाद एक 5 फायर किए थे, जो 9 साल की कड़ी सजा काट के आई थी, जो नेताजी बोस के गुरु की बेटी थी, और नेताजी बोस उनके मेंटर थे, नाम था बीना दास. बीना दास की लाश को आजाद भारत में कोई पहचानने वाला नहीं था, जबकि उन्हें पद्मश्री तक मिल चुका था. ये तो एक कहानी है. दूसरी कहानी ये है कि 2012 में जिस कोलकाता यूनिवर्सिटी में वह पढ़ीं. वही यूनिवर्सिटी उन्हें और एक और दूसरी क्रांतिकारी प्रीतिलता वाड्डेदार को डिग्री देने का ऐलान करती है कोर्स करने के 80 साल बाद.

बीना दास ने 1932 में गर्वनर पर गोलियां चलाई थीं. दास जब उमंगों भरी अपनी युवावस्था में देश के लिए अपनी जान की बाजी लगाकर इतने बड़े कारनामे को अंजाम दे रही थीं, तब उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन उन्हें कोई पहचानने वाला भी नहीं मिलेगा. 

घर का माहौल काफी सामाजिक और क्रांतिकारी
बीना दास प्रमुख ब्रह्मो समाजी नेता बेनी माधव दास की बेटी थीं, जो सुभाष चंद्र बोस के भी शिक्षक थे. अक्सर बोस उनके घर आते जाते रहते थे. बीना दास कोशिश करती रहती थीं कि उनको सुभाष बाबू से ज्यादा से ज्यादा बात करने का मौका मिले. नेताजी बोस भी भारत से निकलने से ठीक पहले उनके पिता से सलाह लेने आए थे.

इधर उनकी मां सरला देवी गरीब लड़कियों के नाम से एक गर्ल्स हॉस्टल चलाती थीं ‘पुण्य आश्रम’, जो क्रांतिकारियों के लिए बम, हथियार आदि छुपाने, बनाने का अड्डा बन गया था. उनकी बड़ी बहन कल्याणी दास भी अंग्रेज विरोधी आंदोलनों में हिस्सा लेती थीं, अर्ध क्रांतिकारी संगठन ‘छत्री संघा’ की सचिव थीं. ऐसे में बीना दास को घर का माहौल काफी सामाजिक और क्रांतिकारी मिला था. वो भी युगांतर पार्टी से जुड़ गई थीं, उनका भी मन था कि किसी अंग्रेज अधिकारी को गोलियों से भून दें. उन्होंने थोड़ी सी गन चलाने की ट्रेनिंग भी ली. एक दिन उनको बोला गया कि स्कूल में वायसराय की पत्नी आएंगी, तो आपको उनका स्वागत करना है, रिहर्सल में जब बीना ने देखा कि वायसराय की पत्नी के चरणों में फूल डालने हैं, तो बीना ने फौरन रिहर्सल का ही नहीं पूरे समारोह का बहिष्कार कर दिया था, अपनी 2 दोस्तों के साथ.

1932 में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित करने को लेकर उनकी बहन कल्याणी को 9 महीने की जेल की सजा दी गई थी. बाहर बीना दास कुछ करने को उतावली थीं. उनके गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन थी कमला दास गुप्ता, हथियार बनाने और सप्लाई करने में मास्टरमाइंड, वो कल्याणी की दोस्त भी थीं. 

हर बार पकड़ी जाती थीं, लेकिन सबूत के अभाव में छूट जातीं
हर बार पकड़ी जाती थीं, लेकिन सबूत के अभाव में छूट जाती थीं. कमला से बीना को एक रिवॉल्वर मिली थी. कोलकाता यूनिवर्सिटी का दीक्षांत समारोह होना था. उस समारोह में बंगाल के गर्वनर स्टेनली जैक्सन को भाषण देना था, उसी साल बीना ने बीए किया था,  उन्हें भी डिग्री मिलनी थी. तय हुआ कि बीना गाउन में रिवॉल्वर छुपाकर ले जाएंगी.

6 फरवरी 1932 का दिन था, अचानक बीना दास अपनी सीट से उठीं, थोड़ा आगे बढ़ीं लेकिन हिचकिचाकर वापस अपनी सीट पर लौट आईं. एक बार फिर बीना ने हिम्मत की और इस बार वो तेजी से मंच पर भाषण देते जैक्सन की तरफ बढ़ीं, तब तक जैक्सन थोड़ा भांप चुका था. बीना ने जैसे ही फायर किया, जैक्सन के थोड़ा झुकने से वो फायर मिस हो गया.

फौरन बीना ने दूसरा फायर खोलने के लिए जैसे ही ट्रिगर दबाना चाहा, वीसी हसन सुहराव्रर्दी ने बीना को दबोच लिया. हसन सुहरावर्दी फौज में लेफ्टिनेंट कर्नल रह चुके थे, लेकिन बीना ने फिर भी दूसरा फायर खोल दिया. यहां तक नौसिखिया होने के बावजूद बीना ने आसानी से रिवॉल्वर नहीं छोड़ी, दो फायर इसी छीन झपट में हो गए, तब कुछ और लोग सुहराव्रर्दी की मदद के लिए आगे बढ़े और बीना को पकड़ा, लेकिन फिर भी बीना ने पांचवा फायर कर दिया, जो एक प्रोफेसर डॉ. दिनेश चंद्र सेन को छूते हुए निकल गया, वो घायल हो गए. खैर बीना को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया, उसी जेल जहां उनकी बहन भी मौजूद थीं. आप ये जानकर हैरत में पड़ जाएंगे कि इसी सुहरावर्दी की बेटी जिन्ना की बड़ी करीबी नेता बन गई और पाकिस्तान चली गई, बाद में उनकी बेटी की शादी जॉर्डन के राजपरिवार में हुई और आज उनके बच्चे वहां के प्रिंस और प्रिंसेज हैं. बीना को पकड़ने के लिए सुहरावर्दी को इंग्लैंड की महारानी ने बड़ा सम्मान दिया था.

लेकिन इंग्लैंड में ये खबर कुछ जरूरत से ज्यादा बड़ी हो गई क्योंकि जिस गर्वनर स्टेनली जैक्सन पर गोलियां चली थीं, वो इंग्लैंड के लिए नेशनल टीम में क्रिकेट भी खेल चुका था, कई क्रिकेट टेस्ट मैच और काउंटी क्रिकेट भी. उस मौके पर उसकी बीवी भी मौजूद थी. इस घटना में बचकर वो खुश तो बहुत था, बीना की गिरफ्तारी के बाद भाषण भी पूरा किया, लेकिन खौफ की वजह से फिर वो उसी साल वापस इंग्लैंड लौट गया.

नेताजी बोस से मिलीं आखिरी बार
इधर बीना दास जब सजा पूरी करके जेल से बाहर आईं तो फिर नेताजी बोस से मिलीं आखिरी बार, एक बार फिर गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के चलते जेल गईं, फिर 3 साल बाद वापस आईं. उनकी बहन प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गईं. बाद में बीना दास ने साथी क्रांतिकारी ज्योतिष भौमिक से शादी कर ली और शिक्षिका बन गईं, लेकिन उनके साथ दिक्कत थी कि उनको यूनिवर्सिटी ने डिग्री ही नहीं दी थी, वो तमाम समाज सेवा के कामों में जुट गईं. सरकार ने उन्हें 1960 में पद्मश्री सम्मान भी दिया. पति की मौत के बाद उनमें और विरक्ति आ गई थी. उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन लेने से इनकार कर दिया था, वो ऋषिकेश के एक आश्रम में रहने चली गईं और अकेले ही वहीं रहने लगीं. यही वजह थी कि जब उनकी मौत हुई तो कोई उन्हें पहचान नहीं पाया.

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