कठिन चुनौतियों से लोहा लेने में माहिर थे हनुमनथप्पा कोप्पड़
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कठिन चुनौतियों से लोहा लेने में माहिर थे हनुमनथप्पा कोप्पड़

सियाचिन में छह दिन 35 फुट बर्फ के नीचे फंसे रहने का बाद जिंदा निकले लांस नायक हनुमंथप्पा नहीं रहे। दिल्ली के आर्मी अस्पताल में 11.45 पर उन्होंने आखिरी सांस ली। इससे पहले खबर मिली थी कि उनकी हालत और बिगड़ गई है और वह गहरे कोमा में चले गए हैं।

कठिन चुनौतियों से लोहा लेने में माहिर थे हनुमनथप्पा कोप्पड़

नई दिल्ली: सियाचिन में छह दिन 35 फुट बर्फ के नीचे फंसे रहने का बाद जिंदा निकले लांस नायक हनुमंथप्पा नहीं रहे। दिल्ली के आर्मी अस्पताल में 11.45 पर उन्होंने आखिरी सांस ली। इससे पहले खबर मिली थी कि उनकी हालत और बिगड़ गई है और वह गहरे कोमा में चले गए हैं।

 

सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक हनुमनथप्पा कोप्पड़ अपनी 13 साल की कुल सेवा में से 10 साल कठिन और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में सेवा दी।  उन्होंने शुरूआत से ही चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों को चुना। आसान क्षेत्रों को चुनने के बजाय उन्होंने कठिन क्षेत्रों को चुना और संघर्ष के क्षेत्रों में 10 साल तक लड़े।

हनुमनथप्पा ने महोर (जम्मू कश्मीर) में 2003 से 2006 के बीच काम किया, जहां वह आतंकवाद निरोधी अभियान में सक्रिय रूप से शामिल थे । उन्होंने एकबार फिर 2008 से 2010 के बीच स्वेच्छा से 54 वीं राष्ट्रीय राइफल्स में सेवा देने की बात कही, जहां उन्होंने आतंकवाद से लड़ने में अदम्य साहस और वीरता दिखाई। हनमनथप्पा 2010 से 2012 के बीच पूर्वोत्तर में स्वेच्छा से सेवा दी, जहां वह नेशनल डेमोक्रेटिक फंट्र ऑफ बोडोलैंड और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम के खिलाफ सफल अभियानों में सक्रियता से हिस्सा लिया।

गौर हो कि हनुमनथप्पा अगस्त 2015 से सियाचिन ग्लेशियर के बेहद उंचाई वाले क्षेत्रों में सेवा दे रहे थे और दिसंबर 2015 से 19600 फुट की उंचाई पर सर्वाधिक उंची चौकियों में से एक पर अपनी तैनाती को चुना। वहां तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे और 100 किलोमीटर प्रति घंटे तक हवा चलती है।

 

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