UP Bypolls: प्रदेश में कुछ समय बाद होने वाले विधानसभा उपचुनाव में सपा ने इस रणनीति को लिटमस टेस्ट के तौर पर अपनाने का निर्णय लिया है. अगर यहां सफलता मिली तो 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस प्रयोग को बड़े पैमाने पर अमल में लाया जाएगा.
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Yogi Adityanath Vs Hari Shankar Tiwari : गोरखपुर के माध्यम से पूर्वांचल की सियासत दो विरोधी खेमों में बंटी रही. जातीय गोलबंदी, अपराध, राजनीति के मिश्रण से इसमें एक तरफ जहां बाहुबली से ब्राह्मण शिरोमणि बने हरिशंकर तिवारी रहे और वहीं दूसरे छोर पर उनके विरोध में वीरेंद्र प्रताप शाही का नाम आता रहा. कहा जाता है कि शाही को गोरखनाथ मठ का शह मिलता रहा. 1960 के दशक में गोरखपुर यूनिवर्सिटी से शुरू हुई ब्राह्मण-ठाकुर लॉबी की राजनीति का आज भी पूर्वांचल में अलग-अलग रूप और शक्ल में दबदबा है.
हरिशंकर तिवारी का पिछले साल 16 मई को 90 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. कुछ दिन पहले उनके गांव टाडा में उनकी प्रतिमा लगाई जानी थी लेकिन प्रशासन ने बुलडोजर चलाकर उसको गिरा दिया. हरिशंकर तिवारी के बेटे ने इस घटना इसको ब्राह्मण स्वाभिमान से जोड़ा है. सीएम योगी के राज में ब्राह्मणों की नाराजगी के सुर के बीच अखिलेश यादव ने इस मुद्दे को पकड़ा है. वैसे भी सपा ने पीडीए के साथ अब ब्राह्मणों में पैठ बढ़ाने के प्रयास तेज कर दिए हैं.
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प्रदेश में कुछ समय बाद होने वाले विधानसभा उपचुनाव में सपा ने इस रणनीति को लिटमस टेस्ट के तौर पर अपनाने का निर्णय लिया है. अगर यहां सफलता मिली तो 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस प्रयोग को बड़े पैमाने पर अमल में लाया जाएगा. यही वजह है कि अखिलेश यादव ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पीडीए (पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यक) नेता के बजाय माता प्रसाद पांडेय को बनाया. आने वाले समय में माता प्रसाद के कार्यक्रम सभी जिलों में ब्राह्मण समाज के बीच लगाने की भी योजना है. कहने का मतलब है कि ब्राह्मण वोटबैंक में सेंधमारी की पूरी तैयारी सपा ने कर ली है.
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मठ, हाता और शक्ति सदन
गोरखपुर की राजनीति तीन राजनीतिक केंद्रों से चलती रही है. इनमें गोरखपुर के धर्मशाला मार्केट स्थित हरिशंकर तिवारी का निवास 'तिवारी हाता' के नाम से जाना जाता है. इसको ब्राह्मण राजनीति का केंद्र कहा गया. मठ यानी गोरखनाथ मंदिर को हिंदुत्व की राजनीति का केंद्र माना जाता है. शक्ति सदन का नाता वीरेंद्र प्रताप शाही से जुड़ा रहा है. इसको ठाकुर राजनीति का केंद्र कहा जाता है. जातीय गोलबंदी से पैदा हुई हाता और शक्ति सदन के बीच गैंगवार में 1980 के दशक में 50 से अधिक लोग मारे गए. उस दौर में गोररखपुर को 'पूर्व का शिकागो' और 'सिसली का स्लाइस' कहा गया.
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1997 में वीरेंद्र प्रताप शाही की हत्या के साथ ही क्षत्रिय राजनीति पूरी तरह से मठ की तरफ शिफ्ट हो गई. 1998 में योगी आदित्यनाथ पहली बार गोरखपुर से सांसद बने. उसके बाद उनका कद बढ़ता गया और 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद वह गोरखपुर की सियासत के पर्याय बन गए.
योगी आदित्यनाथ के सियासी उदय के साथ ही हाता और मठ के बीच प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से टशन चलती रही. 2017 में जब योगी आदित्यनाथ पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उसके एक महीने के बाद ही एक केस के सिलसिले में हाता में पुलिस की रेड पड़ी. तिवारी परिवार ने आरोप लगाते हुए कहा कि ये सीएम योगी के आदेश पर रेड डाली गई. इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया. बड़ी संख्या में ब्राह्मण समुदाय के लोग एकत्र हुए. ब्राह्मण वोटबैंक को देखते हुए चिंतित बीजेपी ने हस्तक्षेप करते हुए मामले को शांत कराया.
हरिशंकर तिवारी
गोरखपुर के बड़हलगंज एरिया के टाडा गांव से ताल्लुक रखने वाले हरिशंकर तिवारी 1985 में पहली बार चिल्लूपार से एमएलए बने. उसके बाद लगातार सात बार जीते. 1996-2007 के बीच कैबिनेट मंत्री रहे. मायावती सरकार में मंत्री बनने के बाद परशुराम जयंती को बड़े पैमाने पर मनाने का चलन शुरू किया. धीरे-धीरे ब्राह्मण शिरोमणि कहा जाने लगा.