अप्रैल में कड़ाके की ठंड, मई में चिलचिलाती गर्मी; पहाड़ों पर क्यों बिगड़ गया मौसम?
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अप्रैल में कड़ाके की ठंड, मई में चिलचिलाती गर्मी; पहाड़ों पर क्यों बिगड़ गया मौसम?

Kashmir Weather: कश्मीर में आमतौर पर मार्च के महीने में वसंत की शुरुआत हो जाती है, लेकिन इस बार अप्रत्याशित बर्फबारी और बारिश हुई. इस वजह से अप्रैल के तीसरे सप्ताह तक कड़ाके की ठंड रही. लेकिन, अब मौसम अचानक बदल गया है और चिलचिलाती गर्मी पड़ने लगी है.

अप्रैल में कड़ाके की ठंड, मई में चिलचिलाती गर्मी; पहाड़ों पर क्यों बिगड़ गया मौसम?

Heatwave in Mountains: देश के हिल स्टेशनों पर बढ़ती भीड़ के कारण बढ़ रहे प्रदूषण से प्रकृति का संतुलन डगमगा रहा है. हाल यही रहा तो कुछ सालों में पहाड़ों और मैदानों में एक जैसा मौसम और तापमान मिलेगा. आमतौर पर मार्च से मई के अंत तक उत्तर भारत के हिल स्टेशन सुहावने रहते हैं, लेकिन इस बार इन महीनों में या तो कड़ाके की ठंड पड़ी है या फिर तीखी गर्मी. 2024 में, वसंत ऋतु सर्दी और गर्मी के बीच खो गई. कश्मीर के पर्यटन स्थल सबसे अच्छे हिल स्टेशनों में से एक हैं, लेकिन पर्यटकों और स्थानीय लोगों की बढ़ती संख्या ने प्रकृति को असंतुलित कर दिया है. कंक्रीट बिल्डिंग की बढ़ती संख्या और वाहनों की भारी भीड़ की वजह से मौसम अनियमित हो गया है. हमेशा से पर्यटकों की पहली पसंद रहा कश्मीर आजकल अनिश्चित मौसम की स्थिति के कारण उन्हें निराश कर रहा है.

अप्रैल में कड़ाके की ठंड, मई में चिलचिलाती गर्मी

कश्मीर में आमतौर पर मार्च के महीने में वसंत की शुरुआत हो जाती है, लेकिन इस बार अप्रत्याशित बर्फबारी और बारिश हुई. इस वजह से अप्रैल के तीसरे सप्ताह तक कड़ाके की ठंड रही. लेकिन, अब मौसम अचानक बदल गया है और चिलचिलाती गर्मी पड़ने लगी है. कश्मीर में तापमान सामान्य से 5-7 डिग्री अधिक हो गया है. अप्रैल पिछले लगभग 20 वर्षों में सबसे ठंडा महीना रहा और अब मई पिछले लगभग 35 वर्षों में सबसे गर्म महीना है.

पहाड़ों पर क्यों बिगड़ गया मौसम?

पिछले कुछ वर्षों से जब भी मैदानी इलाकों में तापमान बढ़ा और चिलचिलाती धूप से कोई राहत नहीं मिली तो लाखों पर्यटक जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हिल स्टेशनों का रुख किया. इससे भारी ट्रैफिक जाम की स्थिति पैदा हो गई है. कई विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की वहन क्षमता से परे पर्यटन इन क्षेत्रों के नाजुक पारिस्थितिक तंत्र को अपरिवर्तनीय रूप से नुकसान पहुंचा सकता है. कश्मीर और इसके प्रसिद्ध हिल स्टेशनों जैसे गुलमर्ग, पहलगाम, सोनमर्ग और कई अन्य स्थानों पर क्षमता से परे भीड़ के साथ भी ऐसा ही हुआ. होटलों, हट्स, रिसॉर्ट्स का निर्माण तेज़ी से होता देखा गया. कई जगहों पर नए निर्माण के लिए हरे पेड़ों को काटा गया और आज नतीजा यह है कि कश्मीर में झुलसाती गर्मी ने जीना मुहाल कर दिया है.

कश्मीर में गर्मी का कहर कब तक?

कश्मीर मेट्रोलॉजी विभाग के निदेशक मुख्तार अहमद ने कहा कि जम्मू कश्मीर में कम से कम 15 दिनों तक गर्मी की लहर से राहत नहीं मिलने वाली है. उन्होंने आगे कहा कि हम परिवर्तनशील मौसम का सामना कर रहे हैं. अचानक गर्मी और अचानक तेज बारिश होती है. ये स्थिति और बढ़ेगी. अब इंसानों को यह सब अपनाना होगा और यह सब हमारे बड़े स्तर पर शहरीकरण के कारण हुआ है. इसके कारण इंफ्रास्ट्रक्चर, गाड़ियों की संख्या और फैक्ट्रियों की बढ़ रही सख्या भी तापमान बढ़ने की वजह हैं. पिछले कुछ वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर की वजह से पर्यटन को बढ़ावा मिला है, लेकिन कहीं न कहीं इसका प्रभाव भी पड़ रहा है.

मुख्तार अहमद ने आगे कहा अभी तापमान जम्मू कश्मीर में पिछले कुछ हफ्तों से शुष्क चल रहा है. गर्मियों लगातार बढ़ रही हैं और पहाड़ी स्थानों में भी आज 30 डिग्री तक पारा चला गया है. जम्मू के पहाड़ी इलाकों में लगभग 35 डिग्री तापमान चल रहा है और जम्मू के मैदानी इलाकों में तापमान 43 डिग्री तक चला गया है. आने वाले दिनों में भी गर्मी जारी रहेगी.

कश्मीर में 200 प्रतिशत बढ़ी पर्यटकों की संख्या

पिछले पांच वर्षों से कश्मीर में पर्यटकों की संख्या में 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. यह देखा गया है कि कोविड-19 प्रतिबंधों ने लोगों की मानसिकता बदल दी है. अब लोग घरेलू यात्रा पर पैसा खर्च करने में संकोच नहीं कर रहे हैं. वे अंतर्राष्ट्रीय यात्रा की अपेक्षा घरेलू यात्रा को प्राथमिकता दे रहे हैं. कश्मीर की हवाई यात्रा दिल्ली-दुबई से भी महंगी है, फिर भी लोग टिकट खरीदकर यहां पहुंचते हैं. पर्यटक घरेलू यात्रा पर लाखों रुपये खर्च करते हैं, जो पहले नहीं देखा जाता था. कश्मीर में अब ऑफ सीजन में भी पर्यटक आते हैं.

पिछले साल जम्मू और कश्मीर में आजादी के बाद से अब तक सबसे ज्यादा पर्यटक आए, जो तीर्थयात्रियों समेत 2.11 करोड़ थे. जबकि, घाटी में विदेशी पर्यटकों में 700 फीसदी की वृद्धि हुई है. 2024 में आज तक माता वैष्णो देवी के तीर्थयात्रियों को छोड़कर 11 लाख से अधिक पर्यटक कश्मीर पहुंच चुके हैं. कश्मीर में पिछले साल की तुलना में 8 उड़ानें अधिक चल रही हैं और औसतन 18000 पर्यटक रोजाना कश्मीर पहुंच रहे हैं. 5000 से अधिक लोग सड़क मार्ग से यहां पहुंच रहे हैं. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, जुलाई तक कश्मीर में 100 फीसदी ऑक्यूपेंसी है.

पर्यटन में तेज उछाल सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित नहीं है. उत्तर भारत के पर्यटन स्थल जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश, शिमला, मनाली, मसूरी, नैनीताल और डलहौजी भी पर्यटकों से भरे हुए हैं. मैदानी इलाकों से पहाड़ों की ओर बढ़ती भीड़ ने पर्यावरण संबंधी समस्याओं को और बढ़ा दिया है, जैसे नाजुक पहाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान, प्लास्टिक प्रदूषण, वायु प्रदूषण, अप्रत्याशित ट्रैफिक जाम, पर्यटकों की मेजबानी करने के लिए किए जा रहे विशाल कंक्रीट के नए निर्माण. कई एक्सपर्ट्स चिंतित हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि कश्मीर एक स्थायी पर्यटन स्थल बने जिसका लाभ अगली पीढ़ी भी उठा सके, लेकिन उनका कहना है कि अगर यह बिना किसी चेक के ऐसे ही रहा तो यह कश्मीर की पहचान  को नष्ट कर देगा.

कश्मीर हाउसबोट एसोसिएशन के महासचिव मंजूर पख्तून ने कहा, 'गर्मी के मौसम में कश्मीर में शाम में ठंडी हवाएं चलती हैं और दिन में गर्मी होती है, लेकिन इतनी भी नहीं कि बर्दाश्त न हो. यहां पर्यटकों की संख्या काफी बढ़ गई है. इसीलिए, सरकार हो या आम आदमी हमें इसका ख्याल रखना होगा कि हम कैसे इसे टिकाऊ स्थल बनाएं और हमारे वेटलैंड, हमारे ग्लेशियर को बचाएं.

कश्मीर आने वाले टूरिस्ट भी गर्मी से परेशान

आजकल कश्मीर आने वाले पर्यटक पहले से कश्मीर की जलवायु में बदलाव महसूस कर रहे हैं. उनका कहना है कि उन्हें कश्मीर जैसे हिल स्टेशनों में ऐसी गर्मी की उम्मीद नहीं थी. कई लोग इसकी तुलना अपनी पिछली यात्राओं से करते हैं और कहते हैं कि यह बदल गया है. उनका कहना है कि कश्मीर में भारी ट्रैफिक जाम है और हर जगह प्रदूषण है. यही बदलाव का कारण है. पर्यटकों का कहना है कि ठंडे के लिए कश्मीर आए थे. हमने सोचा था यहां मौसम सुहाना होगा, लेकिन चुभने वाली गर्मी मिली.

आने वाले समय में क्या होगा बढ़ते तापमान का असर?

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की एक रिपोर्ट बताती है कि मौसम में आए बदलाव की वजह से पहाड़ी क्षेत्रों में अचानक बाढ़ और बादल फटने जैसी बारिश होने की संभावना अधिक होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते तापमान और पिघलते ग्लेशियरों का असर पौधों और जानवरों की प्रजातियों पर भी गंभीर पड़ेगा, जो पहले से ही हीटवेव, सूखे, जंगल की आग और बाढ़ के प्रभावों से जूझ रहे हैं. इसमें आगे कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले दशकों में सभी क्षेत्रों में तापमान में और वृद्धि होगी.

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