1990 में लाखो कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगा दिया गया था. इसके बाद वे देश के अलग अलग हिस्सों में बिखर गए थे. किसी तरह उन्होंने अपने परिवार को संभाला और बड़ी मशक्कत करने के बाद वे अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर ला पाए थे.
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नई दिल्ली: राज्यसभा में कश्मीर मुद्दे पर लिए गए फैसले में मोदी सरकार सरकार की ओर से 370 और 35A को ख़त्म कर दिया गया. साथ ही लद्दाख और कश्मीर को अलग करके दोनों को केंद्रशाषित राज्य बना दिया गया है. इस फैसले से पूरे देश में ख़ुशी की लहर है. इस फैसले से कोई सबसे ज्यादा खुश हुआ है और 30 साल बाद उसकी जान में जान आई हो तो वह है- 'कश्मीरी पंडित'.
1990 में लाखो कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगा दिया गया था. इसके बाद वे देश के अलग अलग हिस्सों में बिखर गए थे. किसी तरह उन्होंने अपने परिवार को संभाला और बड़ी मशक्कत करने के बाद वे अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर ला पाए थे. वहीं कई ने अपनी जान गंवा दी थी तो करीब 2000 से 3000 कश्मीरी पंडित वहां रह पाए थे. तब की सरकार के रवैये से कश्मीरी पंडितों ने ये उम्मीद छोड़ दी थी की वह अब फिर कभी अपनी मिट्टी पर लौट पाएंगे. कई साल गुज़र जाने के बाद उन्होंने इसके बारे में सोचना भी छोड़ दिया था और जहां रह रहे थे, उसी को को अपना सब कुछ मान कर नई ज़िन्दगी की शुरुआत कर दी थी.
5 अगस्त 2019 की सुबह टीवी ऑन करते ही कश्मीर में पथराव या आतंकियों से मुठभेड़ की खबर के बजाय कुछ ऐसी खबर सुनी की वे दंग रह गए. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वे सपना देख रहे हैं या हकीकत में वे इस बात को सुन रहे हैं कि 1954 में कश्मीर पर लगाईं गई धारा 370 और 35A को मोदी सरकार ने ख़त्म कर दिया है. कई अपने कश्मीर के समय के पड़ोसियों को फ़ोन कर एक दूसरे को ख़ुशी बांट रहे थे.
वैसे ही अहमदाबाद में रहने वाले परिवार से हमने बात की तो उन्होंने इस फैसले का ख़ुशी ख़ुशी स्वागत किया और कहा की ये बहुत ही अच्छा फैसला है. जो पिछली सरकारें 30 साल में नहीं कर पाई वह मोदी सरकार ने बड़े कम समय में सत्ता में आकर कर दिखाया है. आगे बातचीत में उन्होंने हमे अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया की जिस तरह से कश्मीरी पंडितों को भगाया जा रहा था. लोग बस सामान ट्रकों में भर-भर के घाटी छोड़ भाग रहे थे.
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वहीं सरकार की ओर से किसी तरह का मुआवजा भी नहीं दिया गया था. हमें शून्य से अपनी ज़िन्दगी की शुरुआत करनी पड़ी थी. महज़ 2000 से 3000 कश्मीरी पंडित घाटी में रुक पाए थे. वे बहुत ही बुरा दौर था, जिसके बाद से वहां के हालात बद से बदतर हो गए. कुछ सालों बाद हम वहां गए तो हमें लगा की हम किसी इस्लामिक देश में आ गए हों. हमें नहीं लग रहा था की हम फिर कभी हमारे बच्चों को हमारी जन्म भूमि के बारे में कुछ बता पाएंगे या पूर्वजों के बारे में कुछ बता पाएंगे. इन सब के पीछे की जड़ थी जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) पार्टी जो पाकिस्तान कब्ज़े वाले कश्मीर और भारत के कश्मीर में सक्रिय था. हालांकि मोदी सरकार द्वारा 2019 में इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था.
कश्मीरी परिवार ने आगे बातचीत में मोदी सरकार से कश्मीरी पंडितों की जम्मू-कश्मीर में पुनर्वास करने की उम्मीद जताई है तो वहीं मोदी को अपना मसीहा बता रहे हैं. आखिर सरकार ने एक बेहद मुश्किल पड़ाव को तो पार कर ही लिया है तो आगे की राह भी अब खुलना मुश्किल नहीं है. पूरे मामले की सबसे ख़ास बात ये है की आज आजादी के बाद से पहली बार कश्मीर को लेकर देश वासियों में एक उम्मीद जगी है. लोगों का कहना है की स्वर्ग समान माने जाने वाले कश्मीर को अब भारतीय बिना डर के घूमने जा सकते हैं.