अदालत ने कहा कि पर्याप्त कानून नहीं होने की वजह से हड़ताल लगातार होने वाली एक प्रक्रिया बन गई है.
Trending Photos
कोच्चि: सबरीमाला मुद्दे को लेकर राज्य में हो रहे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि राज्य में सात दिन पहले बिना नोटिस दिए हुए हड़ताल नहीं बुलाई जा सकती है. केरल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री और त्रिशूर के एक गैर सरकारी संगठन ‘मलयाला वेदी अगेंस्ट हड़ताल्स’ की ओर से अदालत में हड़ताल के विरोध में एक याचिका दायर की गई थी. मुख्य न्यायाधीश ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति ए. के. जयशंकरण नांबियार की एक खंडपीठ ने अचानक से हड़ताल बुलाए जाने की आलोचना की.
उन्होंने कहा कि अगर पहले से नोटिस नहीं दी जाती है तो लोग अदालत और सरकार से इस स्थिति से निपटने के लिए प्रयाप्त कदम उठाने के लिए संपर्क कर सकते हैं. अदालत ने कहा कि जो भी राजनीतिक पार्टी, संगठन या व्यक्ति हड़ताल का आह्वान करेगा, वह बंद के दौरान हुए नुकसान और क्षति के लिए भी जिम्मेदार होगा.
अदालत ने कहा कि पर्याप्त कानून नहीं होने की वजह से हड़ताल लगातार होने वाली एक प्रक्रिया बन गई है. इस तरह से अचानक बुलाई जाने वाली हड़ताल की वजह से राज्य की आर्थिक स्थिति सहित देश के पर्यटन क्षेत्र पर असर पड़ता है. पीठ ने कहा कि हालांकि विरोध जताने का अधिकार है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकार प्रभावित हों.
अदालत ने सरकार को तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए कहा है. याचिकाकर्ताओं ने दुकानों और कारोबारी प्रतिष्ठानों के लिए इस तरह के हड़ताल के दौरान पुलिस सुरक्षा की मांग की है. पिछले साल दिसंबर में 35 से ज्यादा ट्रेड संगठनों ने साथ आकर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा बुलाई जा रही लगातार बंद का विरोध किया और निर्णय लिया है कि 2019 ‘हड़ताल विरोधी वर्ष’ हो.
इनपुट भाषा से भी