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नई दिल्ली: महिला बेचारी है, अकेली है, अस्तित्व की लड़ाई लड़ती है, घर और बाहर की दोहरी चुनौती से दो चार होती है. लेकिन महिला फिर भी मानसिक तौर पर मजबूत होती है. समाज से मिली दोयम दर्जे की अनुभूति हो, सहानूभूति हो या समाज से लड़ने की जिद, महिलाएं दिल और दिमाग को मजबूत कर लेती हैं. लेकिन पुरुष ऐसा नहीं कर पाते.
घर का मुखिया, परिवार की बुनियाद और काम के क्षेत्र में पुरुष को अव्वल समझा जाता है. लेकिन हकीकत यह है कि वो बोझ से दब रहा है और हार रहा है. 'Boys Don't Cry !! Be a man - Dont cry' अब ऐसी सोच को बदलने की जरूरत है. सबके सामने मजबूत दिखने के चक्कर में, कमजोरी छिपा कर रखने की कोशिश में, मन पर बोझ बढ़ाने का नतीजा आज के समय में आत्महत्या के आंकड़ों में साफ दिख रहा है. महिलाओं की तुलना में पुरुष ज्यादा आत्महत्या करते हैं. एक आंकड़े के अनुसार औसतन एक लाख पुरुषों में से 12 पुरुष आत्महत्या करते हैं तो वहीं सालाना एक लाख में से 5 महिलाएं आत्महत्या करती हैं.
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भारत की स्थिति भी कुछ खास अलग नहीं है. भारत में कुल आत्महत्या के मामलों में से 70% मामले पुरुषों के और तकरीबन 30% मामले महिलाओं के सामने आते हैं. साल 2019 में दुनिया में 7 लाख लोगों ने आत्महत्या की और उन 7 लाख में से डेढ़ लाख लोग तो सिर्फ भारत के थे. बताते चलें कि भारत में आत्महत्या के आंकड़ों को नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) दर्ज करता है. पिछले साल सितंबर 2020 में ये आंकड़े जारी किए गए थे. इसके मुताबिक भारत में होने वाली कुल मौतों में प्रतिवर्ष 10.4% लोग आत्महत्या करते हैं. यानी रोजाना तकरीबन 381 लोग अपनी जान दे रहे हैं.
साल 2019 में भारत में 1 लाख 40 हजार लोगों ने आत्महत्या की थी और इनमें से 93 हजार यानी तकरीबन 67% की उम्र 18- 45 वर्ष के बीच थी. आत्महत्या के कारणों को देखने पर ये साफ पता चलता है कि रिश्तों के बीच की बारीकियां लोगों को मार रही हैं. रिश्तों से उपजा डिप्रेशन और डिप्रेशन से पैदा हुआ अकेलापन. ये वो चक्रव्यूह है जिससे बाहर निकलना कई लोगों को मुश्किल लगता है और इसी मुश्किल घड़ी में लोग आत्महत्या करते हैं.
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एक आंकड़े के अनुसार 34% लोग परिवार में चल रही कलह से परेशान होकर जान दे देते हैं तो वहीं शादी से जुड़े मसलों की वजह से 7% लोग आत्महत्या कर लेते हैं. 7% युवा मानसिक बीमारी का शिकार होकर जान दे देते हैं तो वहीं 5.6% लोग शराब या ड्रग्स की लत के चक्कर में जान दे देते हैं और 5% ऐसे हैं जो कि लव अफेयर के चक्कर में फंसकर में जान दे देना ही आखिरी विकल्प समझते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक डिप्रेशन आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह है. दुनिया में 30 करोड़ लोग डिप्रेशन से और तकरीबन 25 करोड़ लोग तनाव या Anxiety से जूझ रहे हैं. WHO के मुताबिक हर 100 में से 1 मौत आत्महत्या की वजह से होती है. इतनी मौतें तो युद्ध में नहीं होती, HIV AIDS जैसी खतरनाक बीमारी से नहीं होती, दुनिया भर में इतनी मौतें मलेरिया से भी नहीं होती जितनी कि सिर्फ आत्महत्या से हो जाती हैं.
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15 से 29 वर्ष के युवाओं की मौत के कारणों पर अगर नजर डाली जाए तो आसानी से समझा जा सकेगा कि इस ऐज ग्रुप (Age Group) के युवाओं में मौत का चौथा कारण आत्महत्या ही है. इस ऐज ग्रुप में सबसे ज्यादा मौतें सड़क हादसे में होती हैं तो मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है 'टीबी'. इसके बाद सबसे अधिक मौतों के मामले में तीसरे नंबर का कारण है 'आपसी हिंसा'.
अगर आप दौलतमंद हैं और सोच रहे हैं कि पैसे से खुशी मिलती है तो आज आपको ये भी जान लेना चाहिए कि WHO के आंकड़ों के हिसाब से High Income Countries में पुरुषों की आत्महत्या करने की दर ज्यादा है. हालांकि महिलाओं के मामले में ऐसा नहीं है. जबकि गरीब देशों में स्थिति बिलकुल विपरीत है. गरीब देशों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में आत्महत्या की दर ज्यादा है. इन सबके बीच अच्छी खबर ये है कि दुनिया भर में आत्महत्या के आंकड़ों में गिरावट देखी जा रही है. ग्लोबल स्तर पर पिछले 20 सालों में आत्महत्या के मामलों में 36% की कमी आई है. हालांकि इसी दौरान अमेरिका में 17% बढोतरी हो गई. कोरोनाकाल में जापान में सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले बढ़ते हुए देखे गए.
तो समझ लें कि ऐसे इंसान को मदद की सख्त जरूरत है. ऐसी स्थिति में सबसे जरूरी है किसी ना किसी का हमेशा उसके आसपास बने रहना. अगर उसे कोई मानसिक बीमारी हो तो उसका इलाज करना और ये याद रखना कि अंदर का शोर अच्छा है, थोड़ा दबा रहे बेहतर यही है आदमी कुछ बोलता रहे. इसीलिए बातें करते रहें, दोस्त बनाते रहें, अकेले ना रहें और खुश रहें.
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