DNA ANALYSIS: माउंट एवरेस्‍ट को Mount Sikdar बनाने की राष्‍ट्रवादी मुहिम को मिला जबरदस्‍त समर्थन
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DNA ANALYSIS: माउंट एवरेस्‍ट को Mount Sikdar बनाने की राष्‍ट्रवादी मुहिम को मिला जबरदस्‍त समर्थन

दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) से जब हमने माउंट सिकदर (Mount Sikdar) का विचार आप सबके सामने रखा तो हमें उम्मीद थी कि भारत के लोग ब्रिटिश राज में हुई इस ऐतिहासिक लूट का DNA समझेंगे और हमें ये बताते हुए खुशी हो रही है कि आपने इस लूट को न सिर्फ समझा, बल्कि इस विचार ने राधानाथ सिकदर को घर घर तक पहुंचा दिया और सबसे अहम बात ये है कि राधानाथ सिकदर भारत में पहली बार 13 जनवरी को ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे थे. 

DNA ANALYSIS: माउंट एवरेस्‍ट को Mount Sikdar बनाने की राष्‍ट्रवादी मुहिम को मिला जबरदस्‍त समर्थन

नई दिल्‍ली: आज हम सबसे पहले आपको एक शुभ समाचार देना चाहते हैं कि हमने माउंट सिकदर (Mount Sikdar) को लेकर जो राष्ट्रवादी मुहिम शुरू की थी.  उसे आपका जबरदस्त समर्थन मिला है और अब ये मुहिम एक राष्ट्रव्यापी मांग में बदल चुकी है.  इसके लिए हम आपको बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहते हैं और ब्रिटेन की सरकार को भी ये कहना चाहते हैं कि जिस राष्ट्र के कंधों पर लूटे गए श्रेय का बोझ ज्‍यादा होता है, उस राष्ट्र को एक न एक दिन झुकना ही पड़ता है. इसलिए ब्रिटेन को अब राधानाथ सिकदर (Radhanath Sikdar) को उनका खोया हुआ श्रेय दिलाने के लिए खुल कर सामने आना ही चाहिए.

  1. राधानाथ सिकदर कोई सेलिब्रिटी नहीं थे.
  2. लेकिन इसके बावजूद ट्विटर पर लोगों ने उनके बारे में बात करनी शुरू की.
  3. यहीं से हमारी (ZEE NEWS की) मुहिम को राष्ट्रवादी रूप मिला. 

Mount Sikdar का विचार 

दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) से जब हमने माउंट सिकदर (Mount Sikdar) का विचार आप सबके सामने रखा तो हमें उम्मीद थी कि भारत के लोग ब्रिटिश राज में हुई इस ऐतिहासिक लूट का DNA समझेंगे और हमें ये बताते हुए खुशी हो रही है कि आपने इस लूट को न सिर्फ समझा, बल्कि इस विचार ने राधानाथ सिकदर को घर घर तक पहुंचा दिया और सबसे अहम बात ये है कि राधानाथ सिकदर भारत में पहली बार 13 जनवरी को  ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे थे. 

सोचिए जिस महान गणितज्ञ के बारे में लोगों को कुछ दिनों पहले तक कोई जानकारी नहीं थी, उनके लिए ट्विटर पर एक अभियान चला और कुछ ही समय में इसने माउंट एवरेस्ट जैसा विशाल रूप ले लिया.  राधानाथ सिकदर को ट्रेंड कराने के लिए कोई आंदोलन नहीं हुआ.  किसी सड़क पर कब्‍जा नहीं किया गया.  लोकतंत्र के नाम पर डराने की कोशिश नहीं की गई और सबसे बड़ी बात राधानाथ सिकदर कोई सेलिब्रिटी नहीं थे. इसके बावजूद कल वो ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे थे और यही इस देश की असली ताकत है. 

हम आपको यहां एक और बात बताना चाहते हैं कि कल ट्विटर पर हमारे अभियान से जुड़े तीन ट्रेंड्स टॉप पर थे और लोग राधानाथ सिकदर के बारे में चर्चा कर रहे थे. राधानाथ सिकदर का निधन 57 वर्ष की उम्र में वर्ष 1870 में हो गया था. उन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया और आज इसलिए उनकी कहानी सुनाने वाला उनका कोई अपना नहीं है.  हम कहना चाहते हैं हम ही राधानाथ सिकदर का परिवार हैं, आप ही राधानाथ सिकदर का परिवार हैं. 

माउंट एवरेस्ट को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने का संघर्ष  

आज हमने राधानाथ सिकदर के व्यक्तित्व और उनकी अद्भुत उपलब्धियों को और क़रीब से समझने के लिए कई महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा की हैं. हमें लगता है कि जो मुहिम हमने शुरू की थी. उसे अब भारत के लोगों ने अपना बना लिया है और हम सब एक टीम बनकर माउंट एवरेस्ट को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए इस संघर्ष को जारी रखेंगे. 

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ZEE NEWS के अभियान की प्रशंसा

इस समर्थन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद. आपको याद होगा.  हमने आपको बताया था कि माउंट एवरेस्ट का नाम बदल कर माउंट सिकदर करने के लिए नेपाल और चीन के अलावा संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNESCO की सहमति भी जरूरी होगी, क्योंकि माउंट एवरेस्ट नेपाल के सागरमाथा नेशनल पार्क में मौजूद है, जो एक UNESCO World Heritage Site है और आज का सबसे बड़ा अपडेट ये है कि UNESCO की गर्वनिंग बॉडी  में भारत की तरफ से एक्‍सक्‍यूटिव बोर्ड मेंबर जे एस राजपूत  ने ZEE NEWS के अभियान की प्रशंसा की है और उन्होंने कहा है कि वो इस विषय को UNESCO में उठाएंगे.  इसका मतलब है कि माउंट एवरेस्ट को माउंट सिकदर बनाने का हमारा अभियान अब अगले चरण में पहुंच चुका है.

राधानाथ सिकदर की उपलब्धियों को भुला दिया गया

अब हम आपको जो बताने वाले हैं, उसे आपको बहुत ही ध्यान से सुनना चाहिए.  इतिहास एक कालखंड में हुई घटनाओं और उससे संबंध रखनेवाली बातों का वर्णन करता है.  उदाहरण के लिए जैसे आज से 100 वर्षों के बाद जब हमारी इस मुहिम का कहीं जिक्र होगा तो इसे इतिहास कहा जाएगा. लेकिन जब कोई इतिहासकार इसे लिखने बैठेगा तो ये इतिहास उसके विचारों तक सीमित हो जाएगा और राधानाथ सिकदर के साथ भी ऐसा ही हुआ था.  राधानाथ सिकदर ने जब पहली बार माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई मापी थी, तब इतिहास बना था.  लेकिन जब यही इतिहास लिखा गया तो राधानाथ सिकदर की उपलब्धियों को भुला दिया गया और यही बताने के लिए आज हमने कुछ रिसर्च की है. हम आपको इसे सिर्फ तीन पॉइंट्स  में बताएंगे.

माउंट एवरेस्ट से जुड़ा एक किस्सा 

ऑक्‍सफोर्ड यूनिवर्सिटी  के मशहूर प्रोफेसर Kenneth Mason ने अपने एक लेक्‍चर में माउंट एवरेस्ट से जुड़ा एक किस्सा शेयर किया था. इस लेक्‍चर का शीर्षक था ''Himalayan Romances''

इसमें उन्होंने कहा था कि वर्ष 1852 में हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं की गणना के दौरान एक सुबह बाबू (Clerk)दौड़ते हुए  सर एंड्रयू वॉ के दफ्तर में घुस गए और कहा कि उन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी की खोज कर ली है.  सर  एंड्रयू वॉ, सर जॉर्ज एवरेस्‍ट के बाद Survey of India के डायरेक्टर बने थे और जिस बाबू ने उनके दफ्तर में माउंट एवरेस्ट की खोज की जानकारी दी थी वो कोई और नहीं राधानाथ सिकदर ही थे.  उस समय बाबू सरकारी दफ्तरों में काम करने वाला एक छोटा सा कर्मचारी होता था. 

रिसर्च के दौरान ही हमें एक और बात पता चली कि राधानाथ सिकदर पहले भारतीय थे, जिन्हें सर्वे ऑफ इंडिया में कम्‍प्‍यूटर के पद पर नौकरी मिली थी. तब उनकी मासिक तनख्वाह सिर्फ 30 रुपये थी और इतने पैसों में वो अपनी पढ़ाई का खर्च और घर दोनों चलाते थे. 

यही नहीं राधानाथ सिकदर ने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई मापने के लिए किसी आधुनिक उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया था. अब आप सोचिए कि वो कितनी प्रतिभा के धनी थे. 

राधानाथ सिकदर की उपलब्धियों को समझने के लिए आज आपको कुछ शिक्षाविद और पर्वतारोहियों के भी विचार सुनने चाहिए. 

महात्मा गांधी ने जब अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसर आंदोलन किए तो उनका मकसद सिर्फ भारत को आजाद कराना नहीं था.  वो भारत के लोगों के मन में राष्ट्रवाद की भावना को भी जगाना चाहते थे और आप कह सकते हैं कि ZEE NEWS ने भी महात्मा गांधी के इसी सिद्धांत पर चलते हुए राधानाथ सिकदर पर ये राष्ट्रवादी मुहिम शुरू की है. 

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माउंट एवरेस्ट नेपाल और तिब्बत की सीमा पर मौजूद है और इसीलिए नेपाल में हमारी इस मुहिम की काफ़ी चर्चा हो रही है और अब वहां पर भी हमें लोगों का समर्थन मिल रहा है. नेपाल में आज के अखबारों में हमारी मुहिम को प्रमुखता से जगह दी गई। और हमारी टीम ने वहाँ कई लोगों से इस पर बात भी की। नेपाल के लोग राधानाथ सिकदर के बारे में क्या सोचते हैं, इसे भी आज आपको जरूर सुनना चाहिए।

राधानाथ सिकदर का जन्म संयुक्त बंगाल के कलकत्ता में हुआ था लेकिन उन्होंने अपने जीवन का ज्‍यादातर समय हुगली जिले के चंदननगर में बिताया.  इस जिले में राधानाथ सिकदर का एक म्‍यूजियम भी है, जहां उनसे जुड़ी यादों को सहेज कर रखा गया है.  इस म्‍यूजियम में हर हफ्ते राधानाथ सिकदर पर एक फिल्म दिखाई जाती है, ताकि लोगों को उनके बारे में जागरूक किया जा सके। हमें लगता है कि ये अच्छी कोशिश है और इसके बारे में आपको जानकारी होनी ही चाहिए। इसलिए आप अगली बार अगर पश्चिम बंगाल जाएं तो इस म्‍यूजियम के दर्शन करना बिल्कुल न भूलें. 

अभियान में छिपी सीख 

राधानाथ सिकदर को लेकर शुरू हुए इस अभियान में आज एक सीख भी छिपी है कि..देश के हितों की बात करने के लिए डिज़ायनर ख़बरों की ज़रूरत नहीं होती। और ZEE NEWS ने इसे साबित किया है। हमने इस पर एक रिपोर्ट भी तैयार की है, जो सच्ची पत्रकारिता के मूल्यों पर पूरी तरह सटीक बैठती है। इस रिपोर्ट के जरिए आपको समझ आएगा कि कैसे एक विचार राष्ट्रव्यापी भावना का रूप ले सकता है और निगेटिव व प्रायोजित खबरों की रेखा मिटाई जा सकती है.  इसलिए आज आपको ये रिपोर्ट बिल्कुल भी मिस नहीं करनी चाहिए. 

10 जनवरी को हमने नए भारत के नए राष्ट्रवाद की एक मुहिम शुरू की थी.  हमारा मकसद था कि जो श्रेय अंग्रेजों ने भारत के महान गणितज्ञ राधानाथ सिकदर से छीन लिया था, उसे उन्हें वापस दिलाया जाए. इस विचार को आप तक पहुंचाने के लिए हमने माउंट एवरेस्ट का कठिन सफर तय किया और ये बताया कि भारत तो 1947 में आजाद हो गया था लेकिन दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंच एवरेस्ट आज भी अंग्रेजों की गुलाम है.

मुहिम को मिला राष्ट्रवादी रूप 

माउंट एवरेस्ट से माउंट सिकदर का विचार रखने के बाद हमारे साथ लोग जुड़ने शुरू हो गए.  राधानाथ सिकदर कोई सेलिब्रिटी नहीं थे, लेकिन इसके बावजूद ट्विटर पर लोगों ने उनके बारे में बात करनी शुरू की और यहीं से हमारी मुहिम को राष्ट्रवादी रूप मिला. 

हमारी इस मुहिम के तहत राधानाथ सिकदर पहली बार भारत में ट्रेंड भी हुआ. करोड़ों लोगों ने हमें देखा और हमारी इस मुहिम की तारीफ की.  इससे आप समझ सकते हैं कि सच्ची और राष्ट्रवादी पत्रकारिता करने के लिए आपको चीखने चिल्लाने की जरूरत नहीं होती है.  दिखावटी और प्रायोजित आंदोलन का सहारा लेने की जरूरत नहीं होती है.  अगर विचार देश के हितों से जुड़ा हो तो लोग अपने आप मुहिम से जुड़ते चले जाते हैं. 

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