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नई दिल्ली: आज हम सबसे पहले सफलता और श्रेय की लूट के उस सिद्धांत पर आपके साथ चर्चा करना चाहते हैं, जो अंग्रेजों के DNA में था और हमें लगता है जब किसी से उसका श्रेय लूटा जाता है तो ये एक किस्म का भ्रष्टाचार होता है और राधानाथ सिकदर (Radhanath Sikdar) के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.
राधानाथ सिकदर (Radhanath Sikdar) भारत के महान गणितज्ञ थे और उन्होंने ही पहली बार दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) की ऊंचाई मापी थी. लेकिन ये श्रेय अंग्रेजों ने उनसे लूट कर सर जॉर्ज एवरेस्ट को दे दिया, जिन्हें ये जानकारी भी नहीं थी कि दुनिया में कंचनजंगा से भी ऊंची कोई पर्वत चोटी हो सकती है. इसलिए हमने राधानाथ सिकदर को उनका श्रेय दिलाने के लिए एक मुहिम शुरू की है और आप भी इस मुहिम का हिस्सा बनने के लिए #IndiaforMountsikdar पर ट्वीट कर सकते हैं.
हमारे देश का इतिहास मुगल शासकों और ब्रिटिश राज के पन्नों से भरा पड़ा है. स्कूलों में बच्चों को औरंगज़ेब और बाबर के बारे में पढ़ाया जाता है और इतिहास की एक ऐसी रुपरेखा खींची जाती है, जिसमें राधानाथ सिकदर जैसे महान विचारक रेखा के उस पार खड़े होते हैं, जहां से उन्हें देखा नहीं जा सकता. लेकिन हमने तय किया है कि आज हम आपको अपनी इस राष्ट्रवादी मुहिम के तहत राधानाथ सिकदर के विषय से जुड़ी हर वो बात बताएंगे, जो आपसे आज तक छिपाया गया.
राधानाथ सिकदर का जन्म वर्ष 1813 में संयुक्त बंगाल के कलकत्ता में हुआ था और बचपन से ही उन्हें पढ़ने लिखने में काफी रुचि थी. उनके परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी, ऐसे में उनके पास एक ही विकल्प था कि वो किसी भी तरह स्कॉलरशिप हासिल कर लें और इसमें उन्हें सफलता भी मिली.
- वर्ष 1824 में कलकत्ता के हिन्दू स्कूल, जो आज Presidency University के नाम से प्रसिद्ध है, उसमें उन्हें दाख़िला मिल गया. उनका प्रिय विषय गणित था इसलिए इस विषय की वो पढ़ाई करने लगे.
- वर्ष 1831 में जब Survey of India में उन्हें कम्प्यूटर के पद पर नौकरी मिली, तब सर जॉर्ज एवरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर थे.
- उस समय कम्प्यूटर का आविष्कार नहीं हुआ था. सारी गणनाएं लोग खुद ही किया करते थे और ऐसे लोगों को Survey Of India में कम्प्यूटर कहा जाता था क्योंकि, कम्प्यूटर का मूल काम गणना करना ही है.
- वर्ष 1830 के दशक में Survey Of India की टीम हिमालय पर्वत श्रृंखला के करीब पहुंच गई थी. उस समय कंचनजंगा पर्वत के शिखर को ही दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माना जाता था.
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- लेकिन बाद में पीक 15 नाम के पर्वत शिखर की पहचान हुई और इस मापने का काम राधानाथ सिकदर को सौंप दिया गया. माउंट एवरेस्ट को पहले Peak 15 कहा जाता था.
- उस समय विदेशियों को नेपाल की सीमा में दाख़िल होने की इजाज़त नहीं थी इसलिए राधानाथ सिकदर वहां नहीं जा पाए. पर उन्होंने वहां से दूर रह कर एक विशेष उपकरण और गणित में इस्तेमाल होने वाले ट्रिग्नोमेट्री के सूत्रों की मदद से पीक 15 की ऊंचाई कैलकुलेट की और ये ऊंचाई थी, 8 हज़ार 839 मीटर.
- वर्ष 1852 में उन्होंने इसकी जानकारी एंड्रयू स्कॉट वॉ को दी, जो सर जॉर्ज एवरेस्ट के बाद सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर थे. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि एंड्रयू स्कॉट वॉ ने चार वर्षों तक राधानाथ सिकदर की इस सफलता के बारे में किसी को नहीं बताया.
- उन्होंने चार वर्षों तक राधानाथ सिकदर के दावे का आकलन किया और वो आखिर में इस नतीजे पर पहुंचे कि राधानाथ सिकदर की जानकारी पूरी तरह सही है. यहां डायरेक्टर होने के नाते एंड्रयू स्कॉट वॉ का ये कर्तव्य था कि वो राधानाथ सिकदर को इसका श्रेय देते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
- एंड्रयू स्कॉट वॉ, सर जॉर्ज एवरेस्ट को अपना गुरु मानते थे और इसीलिए उन्होंने 'Peak 15' पर्वत शिखर का नाम माउंट एवरेस्ट रखने का प्रस्ताव ब्रिटेन की Royal Geographical Society को भेज दिया और इस प्रस्ताव को मंजूर भी कर लिया गया.
- यानी राधानाथ सिकदर से माउंट एवरेस्ट की आधिकारिक ऊंचाई मापने का श्रेय छीन लिया गया और दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर का नामकरण एक अंग्रेज के नाम पर कर दिया गया, जिन्होंने इसे देखा तक नहीं था.
आप कह सकते हैं कि अगर भारत 1852 में एक आजाद देश होता तो दुनिया माउंट एवरेस्ट को माउंट सिकदर के नाम से जानती. हालांकि ये भी एक बड़ी विडंबना है कि आजादी के 73 वर्षों के बाद भी भारत में राधानाथ सिकदर को उनका हक दिलाने के लिए कोई आवाज़ बुलंद नहीं हुई. किसी भी सरकार में इस पर कोई मुहिम नहीं चलाई गई. उनके लिए पुरस्कार नहीं लौटाए गए और न ही कोई आंदोलन हुआ. लेकिन आज ZEE NEWS ने इसके लिए एक मुहिम शुरू की है ताकि राधानाथ सिकदर से लूटा गया श्रेय उन्हें वापस लौटाया जा सके.
सफलता उस गुलाब की तरह होती है, जिसका नाम अगर बदल भी दिया जाए तो भी उसकी खुशबू वैसी की वैसी ही बनी रहती है और राधानाथ सिकदर के साथ भी ऐसा ही हुआ. उनसे उनका श्रेय और हक छीन तो लिया गया लेकिन उनका योगदान आज भी किसी गुलाब की तरह खुशबू बिखेर रहा है.
रविवार को जब मैं (ज़ी न्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी) माउंट एवरेस्ट के बेहद करीब था, तब इस सफलता की खुशबू को मैंने महसूस किया और इसी से मुझे ये विचार आप तक पहुंचाने की प्रेरणा मिली. हम चाहते हैं कि आज आप एक बार फिर माउंट एवरेस्ट से माउंट सिकदर के इस विचार को जानें.
नेपाल और तिब्बत की सीमा पर मौजूद माउंट एवरेस्ट का नाम तिब्बती भाषा में चोमो-लुंगमा है. नेपाल के लोग इसे सागरमाथा के नाम से जानते हैं. लेकिन पूरी दुनिया में ये माउंट एवरेस्ट के नाम से प्रसिद्ध है और भारत में भी लोग इसे इसी नाम से जानते हैं, जबकि सच ये है कि सर जॉर्ज एवरेस्ट ने खुद कभी हकीकत में माउंट एवरेस्ट को देखा तक नहीं था. अब आप सोच सकते हैं कि आजादी के 73 वर्षों के बाद भी दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी अंग्रेजाें की सोच की गुलाम है और हमें यहां ये भी लगता है कि भारत के बहुत से लोग अपने इतिहास, महान व्यक्तियों की विरासत और धरोहरों को सहजने को लेकर गंभीर नजर नहीं आते. लेकिन हम चाहते हैं कि ये परम्परा अब खत्म होनी चाहिए इसलिए हम आपको उस प्रक्रिया के बारे में बताएंगे, जिससे भारत राधानाथ सिकदर को उनका श्रेय दिला सकता है.
दुनियाभर में पर्वत शिखरों का नाम रखने की कोई एजेंसी नहीं है. लेकिन अगर भारत सरकार चाहे तो नेपाल, चीन और यूनेस्को के साथ मिलकर माउंट एवरेस्ट का नाम बदलने की कोशिश कर सकती है. माउंट एवरेस्ट, नेपाल और तिब्बत की सीमा पर मौजूद है और इस समय तिब्बत पर चीन का कब्ज़ा है और नाम बदलने के लिए इन देशों की सहमति जरूरी होगी. Mount Everest नेपाल के सागरमाथा नेशनल पार्क में मौजूद है और ये एक UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट है. यानी माउंट एवरेस्ट का नाम बदलने के लिए UNESCO की सहमति भी जरूरी है. हालांकि ऐसा करने के लिए सबसे पहले भारत सरकार को कूटनीतिक शुरुआत करनी होगी और ये प्रयास भी अपने आप में माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने जितना ही मुश्किल होगा.
ब्रिटेन की संसद में भारत को लेकर बहस हुई, जिसमें ब्रिटेन के सांसदों ने कहा कि भारत के साथ होने वाले व्यापार में धार्मिक भेदभाव को रोकने के लिए कानून में एक प्रावधान जोड़ा जाना चाहिए, जो ये सुनिश्चित करे कि कोई भी ऐसी बिजनेस डील न हो, जिससे धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन होता हो.
ब्रिटेन के सांसदों ने ये बात भी कही कि भारत में धार्मिक भेदभाव काफी बढ़ गया है.
लेकिन मैं ब्रिटेन के सांसदों से यहां ये पूछना चाहता हूं कि क्या उनमें इतनी हिम्मत है कि वो समानता के अधिकार को सिद्धांत बनाते हुए अपनी संसद में ये बात कहें कि माउंट एवरेस्ट का नाम बदल कर माउंट सिकदर रख देना चाहिए और राधानाथ सिकदर से लूटा गया श्रेय वापस लौटा देना चाहिए.
किसी भी देश के लिए उसकी ऐतिहासिक धरोहरों का नाम उसकी सॉफ्ट पावर होता है. जब मैंने अपने मोबाइल फोन से यहां तस्वीरें लीं तो उन पर जो लोकेशन मैंने देखी वो सागरमाथा नेशनल पार्क थी और जैसा कि हमने बताया माउंट एवरेस्ट नेपाल के सागरमाथा नेशनल पार्क में मौजूद है और ये एक UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट है. ये जानकारी UNESCO की वेबसाइट पर भी मौजूद है. यानी UNESCO माउंट एवरेस्ट को उस नाम से जानता है, जो नेपाल ने दिया है. लेकिन भारत में आज भी ये उसी नाम से प्रसिद्ध है, जो राधानाथ सिकदर से छीने गए श्रेय की याद दिलाता है और ये नाम है माउंट एवरेस्ट.
कल जब हमने माउंट एवरेस्ट से माउंट सिकदर का विचार आपके सामने रखा, उस समय नेपाल के लोग भी हमें बड़े ध्यान से देख रहे थे. नेपाल के अख़बारों में इस विषय पर कई तरह की ख़बरें भी छापी गईं. वहां के एक अखबार के फ्रंट पेज पर लिखा गया है- Zee News का माउंट एवरेस्ट का नाम बदलने का अभियान. इसमें आगे लिखा है कि कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा की जमीन पर अपना दावा करने वाला भारत अब माउंट एवरेस्ट पर भी अपना दावा पेश कर रहा है. हम कहना चाहते हैं भारत और नेपाल के बीच राम और लक्ष्मण जैसा रिश्ता है. हम ये नहीं कह रहे कि माउंट एवरेस्ट पर भारत का दावा होना चाहिए. हम ये मांग कर रहे हैं कि इस पर्वत शिखर की ऊंचाई मापने वाले भारत के महान गणितज्ञ राधानाथ सिकदर को इसका श्रेय मिलना चाहिए. ऐसा नहीं है कि माउंट एवरेस्ट के माउंट सिकदर हो जाने से इस पर भारत का कब्ज़ा हो जाएगा. ये नेपाल और तिब्बत की सीमा पर ही मौजूद रहेगा. बस इससे वो गलती सुधारी जा सकती है, जो ब्रिटिश राज में जानबूझकर की गई थी.
आज हम आपको राधानाथ सिकदर की जन्मभूमि पर भी ले जाना चाहते हैं. राधानाथ सिकदर का जन्म कोलकाता के पड़ोस में स्थित जोड़ासांको में वर्ष 1813 में हुआ था. लेकिन उन्होंने अपना ज्यादातर वक्त चंदन नगर में गुज़ारा और यहीं उन्होंने अंतिम सांस भी ली. चंदन नगर पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में स्थित है, जहां राधानाथ सिकदर का घर आज किसी खंडहर में बदल चुका है. राधानाथ सिकदर ने शादी नहीं की थी और इसलिए उनकी कहानी सुनाने वाला कोई उनका अपना नहीं है. लेकिन राधानाथ सिकदर के जीवन को और करीब से समझाने के लिए हमने एक विश्लेषण तैयार किया है. इससे आपको पता चलेगा कि राधानाथ सिकदर की विरासत आज किस स्थिति में है.
-राधानाथ सिकदर आज अगर जीवित होते तो अपने घर की ये हालत देख कर उन्हें बहुत दुख होता. राधानाथ सिकदर ने हुगली जिले के अपने इसी घर में अंतिम सांसें ली थीं, लेकिन आज ये घर किसी खंडहर में बदल चुका है.
-ये टावर वर्ष 1831 में बनाया गया था. इसे Great Trigonometry Survey Tower कहा जाता है और आप कह सकते हैं कि ये टावर राधानाथ सिकदर की महानता के दर्शन कराता है.
-हुगली जिले में ही राधानाथ सिकदर की कब्र है, जहां उन्हें दफनाया गया था. लोग आज भी उन्हें याद करने के लिए यहां पहुंचते हैं.
-यहां एक म्यूजियम भी है, जिसे राधानाथ सिकदर की याद में बनाया गया था. ये दुनिया में अकेला ऐसा म्यूजियम है, जो राधानाथ सिकदर की उपलब्धियों को बयां करता है.
-राधानाथ सिकदर की कहानी सुनाने वाला उनका कोई नहीं है. लेकिन हम राधानाथ सिकदर की उपलब्धियों को सलाम करते हैं और चाहते हैं कि उन्हें उनका वो श्रेय मिले, जिसे अंग्रेजों ने उनसे छीन लिया था.