दहेज के लिए तीन तलाक देकर घर से निकाली गई मुस्लिम महिला की याचिका पर SC में सुनवाई आज
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दहेज के लिए तीन तलाक देकर घर से निकाली गई मुस्लिम महिला की याचिका पर SC में सुनवाई आज

महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि पति और ससुराल वाले दहेज के लिए मारते थे, अब एक साथ तीन तलाक दे घर से निकाल दिया है.

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली : दहेज के लिए तीन तलाक देकर घर से निकाली गई दिल्ली की एक मुस्लिम महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा. दरअसल, महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ससुराल वालों के खिलाफ नए कानून के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की है. महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि पति और ससुराल वाले दहेज के लिए मारते थे, अब एक साथ तीन तलाक दे घर से निकाल दिया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सरकार के अध्यादेश के बाद ये अपराध है ऐसे में पति और ससुराल वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. 

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सरकार के बाद एक बार में तीन तलाक़ अपराध घोषित किया जा चुका है.

कोर्ट से तीन तलाक अध्यादेश में कार्रवाई की भी मांग
महिला का आरोप है कि उसके पति ने गैर कानूनी तरीके से उसे तलाक दिया है. महिला ने कोर्ट से तीन तलाक अध्यादेश में कार्रवाई की भी मांग की है. 32 वर्षीय महिला ने अपने पति पर उसे प्रताड़ित करने का भी आरोप लगाया है. महिला ने कोर्ट से गुजारिश की है कि इस तलाक को गैर-कानूनी घोषित किया जाए और तीन तलाक अध्यादेश में कार्रवाई की जाए. गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने तीन तलाक के संबंध में जो ताजा अध्यादेश लाया गया है उसमें ऐसे तलाक को अवैध माना गया है. यहां तक कि फोन पर या वाट्सएप पर दिया गया तलाक गैरकानूनी है. 

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने तीन दो के बहुमत से फैसला देते हुए एक बार में तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) के चलन को असंवैधानिक करार दे निरस्त कर दिया था. तीन न्यायाधीशों ने बहुमत के फैसले में कहा था कि एक साथ तीन तलाक संविधान में दिये गए बराबरी के हक का हनन है. तलाक ए बिद्दत इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे संविधान में दी गई धार्मिक आजादी (अनुच्छेद 25) में संरक्षण नहीं मिल सकता. इसके साथ ही कोर्ट ने शरीयत कानून 1937 की धारा 2 में तीन तलाक को दी गई मान्यता शून्य घोषित करते हुए निरस्त कर दी थी. हालांकि अल्पमत से फैसला देने वाले दो न्यायाधीशों ने भी तलाक ए बिद्दत के प्रचलन को लिंग आधारित भेदभाव माना था, लेकिन कहा था कि तलाक ए बिद्दत मुस्लिम पर्सनल ला का हिस्सा है और इसे संविधान में मिली धार्मिक आजादी (अनुच्छेद 25) में संरक्षण मिलेगा, कोर्ट इसे निरस्त नहीं कर सकता.

क्या है तीन तलाक अध्यादेश
अध्यादेश में तीन तलाक को गैर जमानती अपराध माना गया है. राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पास ना होने के बाद सरकार को अध्यादेश का रास्ता अपनाना पड़ा था. हालांकि सरकार के पास अब छह महीने का समय है. इन छह महीनों में इसे संसद से पारित कराना होगा.यह अपराध संज्ञेय तभी होगा,जब महिला या उसके परिजन खुद इसकी शिकायत करेंगे.खून या शादी के रिश्ते वाले सदस्यों के पास भी एफआईआर दर्ज करने का अधिकार. पड़ोसी या कोई अनजान शख्स इस मामले में केस दर्ज नहीं कर सकता है. जब पीड़िता चाहेगी तभी समझौता होगा. पीड़िता की सहमति से ही मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है. तीन तलाक पर कानून में छोटे बच्चों की कस्टडी मां को दिए जाने का प्रावधान है. पत्नी और बच्चे के भरण-पोषण का अधिकार मजिस्ट्रेट को तयह करना होगा और ये पति को देना होगा.

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