5 लाख गांव खुले में शौच से मुक्त, PM मोदी ने कहा, स्वच्छता का सपना जल्द पूरा होगा
पीएम ने कहा, देश की जनता के स्पष्ट सहयोग के कारण भारत आज खुले में शौच से मुक्त होने के तय लक्ष्य को 2 अक्टूबर 2019 से बहुत पहले ही पूरा करने वाला है.
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि साढ़े पांच लाख से ज्यादा गांव और 600 जिले खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं और 98 फीसदी से ज्यादा ग्रामीण भारत स्वच्छता के दायरे में आ गया है. इनमें नौ करोड़ परिवारों को शौचालय उपलब्ध कराया गया है. मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में कहा, "दो अक्टूबर 2014 को हमने साथ मिलकर देश को स्वच्छ करने और खुले में शौच से मुक्त करने का यादगार सफर शुरू किया था. देश की जनता के स्पष्ट सहयोग के कारण भारत आज खुले में शौच से मुक्त होने के तय लक्ष्य को 2 अक्टूबर 2019 से बहुत पहले ही पूरा करने वाला है.
यह लक्ष्य बापू की 150वीं जयंती के मौके पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए तय किया गया था." उन्होंने कहा कि दिसंबर 2018 में 50 लाख से ज्यादा शौचालयों ने 'क्लीन ब्यूटीफुल टॉयलेट' या 'शाइनिंग टॉयलेट' प्रतियोगिता में भाग लिया था. मोदी ने कहा कि इस प्रतियोगिता के तहत लोग अपने शौचालयों को स्वच्छ करते हैं और उन्हें रंगते हैं.
इसके बाद सोशल मीडिया पर कन्याकुमारी से कच्छ से असम के कामरूप तक के ऐसे शौचालयों की कई तस्वीरें जारी हुई थीं. प्रधानमंत्री ने सरपंचों और ग्राम प्रधानों से उनकी पंचायतों में स्थित स्वच्छ और सुंदर शौचालयों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर हैशटैग 'माईइज्जतघर' के साथ शेयर कर अभियान की अगुआई करने का आग्रह किया.
खुले में शौच की चुनौती से जल्द पार पा लेगा भारत : डब्ल्यूएचओ
खुले में शौच की समस्या से निपटने में करीब 90 देशों की प्रगति बेहद धीमी है, जबकि भारत ने इस चुनौती से निपटने के अपने प्रयास को उच्च स्तर पर पहुंचा दिया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट में सोमवार को यह बातें कही गई.
प्रत्येक व्यक्ति की पहुंच शौचालय तक हो
स्वच्छता और स्वास्थ्य पर पहले वैश्विक दिशा-निर्देश को जारी करते हुए डब्ल्यूएचओ ने कहा कि 2030 तक दुनिया सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज के लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएगी, जहां दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति की पहुंच बुनियादी शौचालय तक हो, जो मल-मूत्र को सुरक्षित ढंग से समाविष्ट कर सके. यह तब तक पूरा नहीं होगा, जब तक कि इससे जूझ रहे देश व्यापक नीति नहीं बनाते हैं और इसमें निवेश नहीं बढ़ाते हैं.
इनपुट आईएएनएस से भी
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