कार्यक्रम में दस महिलाओं को सावित्री देवी फुले अवॉर्ड-2022 देकर सम्मानित किया गया. सृजनात्मक पत्रकारिता हेतु पूनम फाउंडेशन ट्रस्ट की शिक्षा अभियान संयोजक डॉ पूनम प्रजापति भारतीय को दिया गया. पूनम फाउंडेशन ट्रस्ट के सदस्यों, राजीव कुमार, प्रमिला, पूजा ,अंजली निशा, डॉ इंद्रलाल प्रजापति धनुर, पूजा प्रजापति, सुशीला देवी को कोरोना योद्धा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया.
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Hanumangarh: देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री बाई फुले (Savitribai Phule) जयंती पर राज्य स्तरीय सम्मेलन और सावित्री देवी अवॉर्ड 2022 (Savitri Devi Award 2022) और विशिष्ट सेवा सम्मान कोरोना योद्धा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया. कार्यक्रम में लेबर एज्यूकेशन एंड डेवलपमेंट सोसायटी (Labor Education and Development Society) की निदेशक हेमलता कंसोटिया के नेतृत्व में आयोजित हुआ. इसमें दलित साहित्य अकादमी के बनवारी लाल मेहरड़ा, भूरेलाल राजस्थान नागरिक मंच , कविता सेवा सोसायटी द्वारा महिला अधिकारों, शिक्षा, मज़दूर कोड बिल, आदि पर विस्तृत रूप से बताया.
कार्यक्रम में दस महिलाओं को सावित्री देवी फुले अवॉर्ड-2022 देकर सम्मानित किया गया. सृजनात्मक पत्रकारिता हेतु पूनम फाउंडेशन ट्रस्ट की शिक्षा अभियान संयोजक डॉ पूनम प्रजापति भारतीय को दिया गया. पूनम फाउंडेशन ट्रस्ट के सदस्यों, राजीव कुमार, प्रमिला, पूजा ,अंजली निशा, डॉ इंद्रलाल प्रजापति धनुर, पूजा प्रजापति, सुशीला देवी को कोरोना योद्धा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया.
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सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों और समाज के बहिष्कृत हिस्सों के लोगों को शिक्षा प्रदान करने में अग्रणी भूमिका निभाई. वह भारत की पहली महिला अध्यापिका बनीं (1848) और उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए पहला स्कूल साावित्रीबाई और उनके पति ज्योतिराव ने 1848 में पुणे में खोला था. इसके बाद सावित्रीबाई और उनके पति ज्योतिराव ने मिलकर लड़कियों के लिए 17 और स्कूल खोले. उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा जैसी बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई.
देश की पहली महिला शिक्षक, समाज सेविका, मराठी की पहली कवयित्री और वंचितों की आवाज बुलंद करने वाली क्रांतिज्योति सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के पुणे-सतारा मार्ग पर स्थित नैगांव में एक दलित कृषक परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था.
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1840 में मात्र 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई का विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले के साथ हुआ. विवाह के बाद अपने नसीब में संतान का सुख नहीं होते देख उन्होंने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवाकर उसके बच्चे को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया और उसका नाम यशंवत राव रख दिया. बाद में उन्होंने यशवंत राव को पाल-पोसकर और पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाया.
प्रेग्नेंट रेप विक्टिम की दयनीय स्थिति को देखते हुए उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर ऐसी पीड़िताओं के लिए 'बालहत्या प्रतिबंधक गृह' नाम से एक देखभाल केंद्र खोला. विधवाओं के दुखों को कम करने के लिए उन्होंने नाइयों के खिलाफ एक हड़ताल का नेतृत्व किया ताकि वे विधवाओं का मुंडन न कर सकें, जो उस समय की एक प्रथा थी.
बच्चों को पढ़ाई करने और स्कूल छोड़ने से रोकने के लिए उन्होंने एक अनोखा प्रयास किया. वह बच्चों को स्कूल जाने के लिए उन्हें वजीफा देती थीं. ऐसे वक्त में जब देश में जाति प्रथा अपने चरम पर थीं, तो उन्होंने अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया. उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की, जो बिना पुजारी और दहेज के विवाह आयोजित करता था. 1897 में पुणे में प्लेग फैला था और इसी महामारी की वजह से 66 वर्ष की उम्र में सावित्रीबाई फुले का 10 मार्च 1897 को पुणे में निधन हो गया था.
Reporter- Manish Sharma