Jaipur News: बंगाली कल्चरल सोसायटी के महाष्टमी सन्धि पूजा में जलाए इतने दीपक
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Jaipur News: बंगाली कल्चरल सोसायटी के महाष्टमी सन्धि पूजा में जलाए इतने दीपक

Jaipur latest News: शास्त्रों के अनुसार नवरात्र के समय मां दुर्गा अपने बच्चों मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, गणेश और कार्तिकेय के साथ अपने पीहर आती है. जिस कारन इनकी पूजा की जाती हैं. परंपरा को आगे बढ़ाते हुए प्रोबासी बंगाली कल्चरल सोसायटी, पिछले 28 वर्षों से जय क्लब प्रांगण में दुर्गा पूजा  का आयोजन कर रहा है. लोगों को जोड़ना और आगामी पीढ़ी को संस्कृति की पहचान करवाना ही  मुख्य उद्देश्य है. 

फाइल फोटो

Jaipur News: शास्त्रों में दुर्गा पूजा का एक अलग ही महत्व है. शास्त्रों के अनुसार इस समय मां दुर्गा अपने बच्चों मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, भगवान गणेश और  भगवान कार्तिकेय के साथ अपने पीहर आती हैं. जिस कारन नवरात्र के  समय मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती,  भगवान गणेश और  भगवान कार्तिकेय की विधिवत पूजा की जाती है. 

इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए प्रोबासी बंगाली कल्चरल सोसायटी, पिछले 28 वर्षों से जय क्लब प्रांगण में दुर्गा पूजा महोत्सव का आयोजन कर रहा है. लोगों को जोड़ना और आगामी पीढ़ी को हमारी संस्कृति की पहचान करवाना ही सोसायटी का मुख्य उद्देश्य है.

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सोसायटी के अध्यक्ष डॉ एस के सरकार ने बताया, कि पांच दिवसीय दुर्गा पूजा महोत्सव में बच्चों के लिए आकर्षक झूले और विभिन्न प्रकार के स्टॉल लगाए गए हैं. डॉ एस के सरकार ने कहा कि अधिक से अधिक लोगों को जोड़ना और आगामी पीढ़ी को  हमारी संस्कृति की पहचान करवाना ही सोसायटी का मुख्य उद्देश्य है. 

पांच दिवसीय इस पर्व में 22 अक्टूबर महाष्टमी को प्रातः माता की आरती और पुष्पांजली के पश्चात फल प्रसादी का वितरण किया गया. तत्पश्चात महिलाओं ने महाअष्टमी पूजा का आयोजन किया और  इसमें महिलाओं के द्वारा माता को फल, मिठाई, सिन्दूर और आलता चढ़ाया गया. पंगत प्रसाद में मिक्स खिचड़ी और खीर बांटी गई. सांयकाल 5 बजे संधि पूजा का भी आयोजन किया गया. 

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आपको बता दें कि संधि पूजा को दुर्गा पूजा की सबसे महत्वपूर्ण पूजा माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं अनुसार यह वही समय होता है, जब अष्टमी समाप्त होकर नवमी प्रारंभ होती है. और इसी समय मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था. 

संधि पूजा में मां दुर्गा का श्रृंगार करके, 108 दीपकों से उनकी आरती की गई. और साथ ही कद्दू, केला और गन्ने की बलि दी गई. इसके अलावा प्रतिदिन की भांति विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम किए गए.

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