India Pakistan Partition: 30 जनवरी के दिन 1948 में नाथूराम गोडसे ने अपने साथियों के साथ मिलकर महात्मा गांधी की हत्या की थी. आज भी समाज में गांधीजी (Gandhi) की हत्या को लेकर जब कभी भी बहस छिड़ती है. तो हत्या को जायज ठहराने वाले ये तर्क देते है कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने के लिए अनशन किया था.
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Jaipur: 30 जनवरी के दिन 1948 में नाथूराम गोडसे ने अपने साथियों के साथ मिलकर महात्मा गांधी की हत्या की थी. आज भी समाज में गांधीजी (Gandhi) की हत्या को लेकर जब कभी भी बहस छिड़ती है. तो हत्या को जायज ठहराने वाले ये तर्क देते है कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने के लिए अनशन किया था.
क्या था 55 करोड़ का मामला ?
दरअसल विभाजन (India Pakistan Partition) के समय देश के संपत्ति का भी विभाजन हुआ. पशु से लेकर अनाज और लाइब्रेरी की किताबों से लेकर बैंकों में पड़े पैसों का भी बंटवारा हुआ. अशोक कुमार पांडेय ने अपनी किताब “उसने गांधी को क्यों मारा” में बताया है कि उस समय भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) में 400 करोड़ थे. जिसमें से 75 करोड़ रुपए पाकिस्तान (Pakistan News) के हिस्से आए. तो कई लोगों का ये तर्क है कि उस वक्त रिजर्व बैंक में 155 करोड़ थे. जिसमें से 75 करोड़ पाकिस्तान को दिए जाने तय हुए.
ये भी तय हुआ कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ही अक्टूबर 1948 तक दोनों देशों के राष्ट्रीय बैंक के रुप में काम करेगा. और इसे संचालित करने के लिए 6 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई. इस कमेटी में पाकिस्तान की तरफ से गुलाम मोहम्मद, जाहिद हुसैन और कुरैशी थे. जबकि भारत (India) की तरफ से केजी आंबेगांवकर, संजीव रो और एमवी रंगाचारी थे. पाकिस्तान के हिस्से के 75 करोड़ में से 20 करोड़ रुपए विभाजन के समय ही दिए गए. और बाकि के 55 करोड़ पर ये फैसला हुआ, कि पाकिस्तान की जरुरत के हिसाब से धीरे धीरे बाकी पैसा दिया जाएगा.
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इसी बीच पाकिस्तान की फौज (Pakistani Army) ने कबाइली भेष में कश्मीर (Kashmir News) पर हमला कर दिया. लिहाजा भारत और पाकिस्तान (India Pakistan Relation) के बीच रिश्ते बिगड़ गए. संबंधों में आए तनाव का असर रिजर्व बैंक (Reserve Bank Of India) तक भी पहुंचा. 7 जनवरी 1948 को केंद्रीय मंत्री मंडल (Union Cabinet) ने सर्वसम्मति से फैसला लिया कि ये 55 करोड़ रुपए पाकिस्तान को नहीं दिए जाएंगे.
याद रखने वाली बात ये भी है कि इससे पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर सीडी देशमुख ने भारत सरकार (Indian Government) को सुझाव भी दिया था कि पैसा एक साथ न देकर 3-3 करोड़ की किस्तों में दिया जाए.
7 जनवरी को कैबिनेट ने 55 करोड़ रुपए न देने का फैसला लिया और इसके ठीक 6 दिन बाद 13 जनवरी को महात्मा गांधी ने दिल्ली (Delhi News) के बिड़ला हाउस में अनशन शुरु कर दिया था. लोगों का तर्क है कि गांधीजी ने पाकिस्तान (Gandhi On Partition) को 55 करोड़ दिलाने के लिए अनशन किया था.
क्या 55 करोड़ के लिए किया था अनशन ?
अनशन की घोषणा 12 जनवरी की प्रार्थना सभा में हुई थी. लेकिन उस दौरान 55 करोड़ का कोई जिक्र नहीं हुआ था. इसी दिन गांधीजी ने वायसराय माउंटबेटन (Mountbatten) से भी मुलाकात की. माउंटबेटन ने कहा कि भारत सरकार का ये फैसला राजनीतिक रुप से कमजोर और अविवेकपूर्ण है. ये असम्मानजनक कार्रवाई की वजह बन सकता है. यही बात माउंटबेटन ने सरदार पटेल (Sardar patel) से भी कही. हालांकि सरदार पटेल असम्मानजनक शब्द से नाराज हुए. इधर पाकिस्तान ने भी धमकी देनी शुरु कर दी थी. कि अगर भारत अपने समझौते से मुकरता है तो वो उसे अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में ले जाएगा.
वक्त के साथ भारत के नेताओं को भी समझ में आने लगा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मामला गया, तो भारत की फजीहत हो सकती है, क्योंकि भारत ने 55 करोड़ देने के लिए समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए है. इधर 14 जनवरी को हुई प्रार्थना सभा में भी गांधीजी की चर्चा कराची (Karachi) से लेकर गुजरात (Gujarat News) में हुए दंगों पर केंद्रित रही.
अगले दिन 15 जनवरी को फिर से कैबिनेट की बैठक हुई. और उसमें 55 करोड़ रुपए पाकिस्तान को देने का फैसला हुआ. ध्यान देने वाली बात ये है, कि इस कैबिनेट बैठक में गांधीजी नहीं थे, नेहरु, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी समेत तमाम मंत्रीगण थे.
एक और तथ्य, अगर गांधीजी ने 55 करोड़ के लिए अनशन किया होता. तो 15 जनवरी को भारत सरकार के इस फैसले के बाद खत्म कर देते. लेकिन नहीं किया. गांधीजी का अनशन 19 जनवरी को खत्म हुआ. 19 जनवरी को दिल्ली में सभी धर्मों के प्रतिनिधियों ने हिंसा रोकने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद गांधीजी ने अपना अनशन खत्म कर दिया.
इन तमाम तर्कों को देखने से जो स्पष्ट होता है. वो यही है, गांधीजी का अनशन उस वक्त दिल्ली में चल रही हिंसा (Delhi Riots) के खिलाफ था. न कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने के लिए था.
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ऐसे में एक सवाल ये जरुर होना चाहिए, गांधीजी की हत्या को 74 साल हो गए है. इस समयावधि में अलग अलग दौर की सरकारों ने अपने एजेंडे को जनता तक पहुंचाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए. और उसमें पूरी तरह से कामयाबी भी हासिल की. लेकिन गांधीजी को लेकर जनता के बीच फैले ऐसे भ्रमों को दूर करने की सरकारों ने उतनी कोशिश क्यों नहीं की. या गांधीजी की पूंजी को सरकारों ने अपने हितों के लिए इस्तेमाल किया. और गांधीजी की पवित्रता और उनके सपनों को सरकारी डस्टबिन में डाल दिया.