राज्य सूचना आयोग के इतिहास में पहली बार लगाई गई लोक अदालत, लोगों को मिला न्याय
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राज्य सूचना आयोग के इतिहास में पहली बार लगाई गई लोक अदालत, लोगों को मिला न्याय

आयोग कार्यालय में लगाई गई इस लोक अदालत में जेडीए से सम्बंधित 270 प्रकरणों की सुनवाई कर आपसी समझौते के आधार पर निस्तारण का प्रयास किया गया. 

प्रतीकात्मक तस्वीर.

Jaipur: राज्य सूचना आयोग (State information commission) के इतिहास में पहली बार लोक अदालत (Lok Adalat) लगाई गई है. आयोग कार्यालय में लगाई गई इस लोक अदालत में जेडीए (JDA) से सम्बंधित 270 प्रकरणों की सुनवाई कर आपसी समझौते के आधार पर निस्तारण का प्रयास किया गया. सूचना के अधिकार से सम्बंधित राजस्थान (Rajasthan News) में 18 हजार से अधिक केस पेंडिंग हैं, जिन्हें नियमित सुनवाई और लोक अदालत के माध्यम से खत्म किया जाएगा. 

राज्य सूचना आयोग में लम्बे समय तक मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्तों के पद खाली रहने से करीब 18 हजार केस बकाया हो गए. इन केसों की साधार स्तर पर सुनवाई की जाए तो एक एक मामले का नम्बर छह से आठ महीने में आता है. ऐसे में जल्द केस निपटाने के लिए लोक अदालत का नवाचार किया गया. आयोग में हर महीने एक हजार नए केस सुनवाई के लिए आते हैं. वहीं, 1400 से 1500 केसों का निपटारा किया जाता है. मुख्य सूचना आयुक्त डीबी गुप्ता (DB Gupta) का कहना है कि हर महीने लक्ष्य से ज्यादा पांच सौ केसेस की सुनवाई तथा लोक अदालत के जरिए केसों की सुनवाई कर पुराना बैक लॉग खत्म किया जा सकता है.

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कोरोना ने भी बढ़ाई केसों की पेंडेंसी
मुख्य सूचना आयुक्त का कहना है कि 18000 हजार केसों में ज्यादा पुराने पेंडिग केस नहीं है. पेंडेंसी का कारण पद खाली रहने के साथ कोरोना में नौ महीने में ढाई महीने कोर्ट (Court) बंद रहना है. ढाई महीने जयपुर की एक कोर्ट को छोड़कर अन्य कोर्ट बंद रहे.

पेनाल्टी खूब लगाई, लेकिन नहीं सुधर रहे अफसर
मुख्य सूचना आयुक्त डीबी गुप्ता ने कहा कि विभाग में सूचना मांगने पर अगर नहीं मिलती तो वह अपील करता है, लेकिन वहां से संतुष्टी नहीं होती तो आयोग के पास आता है. समय पर सूचना नहीं मिलती है तो आयोग विभाग या अधिकारी पर अधिकतम 25 हजार रुपये तक जुर्माना भी लगाते हैं. आयोग ने अब तक चार करोड़ 78 लाख रुपये जुर्माना लगाया है, जिसमें 2 करोड़ 17 लाख की वसूली की जा सकी है. आयेाग के पास वसूली की शक्ति नहीं है.

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विभाग डिस्पले करे तो नहीं बढ़े मामले
गुप्ता ने कहा कि अब पुराना टाइप जमाना नहीं है कि चीजों को कॉन्फिडेंशियल रखा जाए. अधिक से अधिक शेयरिंग की बात है, अधिकारी वेबपोर्टल (Webportal) पर डिस्प्ले कर दें तो अपील होने से बच सकती है. अपील होती है तो समय पर सूचना दें दें, बिंदूवार दे दें तो अपील की नौबत नहीं आएगी. सचिव ध्यान रखें कि जो प्रौपर सूचना गई या नहीं उसे दिलवा दें तो यहां तक आते संख्या में कमी आ सकती है.

राजस्थान से सीख लेंगे दूसरे राज्य
मुख्य सूचना आयुक्त डीबी गुप्ता ने बताया कि कुछ दिन पहले दिल्ली (Delhi) में सभी मुख्य सूचना आयुक्तों की बैठक हुई थी. बैठक में लोक अदालत के नवाचार के बारे में बताया तो सब ने कहा कि इस तरह का नवाचार किसी ने नहीं किया. राजस्थान के इस कदम का अध्ययन करने के बाद सब उसका फायदा ले सकते हैं.

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जनता से जुड़े विभागों में होगी जनसुनवाई
मुख्य सूचना आयुक्त ने कहा कि लोक अदालत को विभाग, संस्थान, संभाग स्तर तक या बड़े जिलों में जिला स्तर पर ले जाना चाहते हैं. यह निर्भर करेगा कि कहां कितनी तादाद में आरटीआई केसेस (RTI Cases) हैं. नगर निगम छांटा था, लेकिन प्रशासन शहरों के संग के कारण मार्च तक सुनवाई नहीं होगी. उदयपुर संभाग में मई में शिविर लगाने की घोषणा भी कर दी थी, संभाग में स्तर पर प्रशासन गांवों के संग शिविरों से फ्री होने के बाद लगाएंगे. अब ऐसे विभागों को छांटेंगे जो दोनों अभियानों से नहीं जुड़े हैं. पुलिस, शिक्षा, चिकित्सा, कार्मिक आदि विभागों से सम्बंधित केसों की लोक अदालत लगाएंगे. 

राजनीतिक दल भी खुद को आरटीआई दायरे में शामिल करें
सूचना आयुक्त नारायण बारेठ ने कहा कि राजनीतक दलों को भी सूचना के अधिकार के दायरे में शामिल होना चाहिए. राजनीतिक दलों को खुद पहल कर इस दायरे में आना चाहिए, लेकिन तमाम विरोधों के बावजूद सारे राजनीतिक दल इस मामले में एक हो जाते हैं. 

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बारेठ ने कहा कि देश में इस वक्त सूचना के अधिकार के करीब 3 करोड़ मामले बकाया हैं. इन मामलों की सुनवाई हो तो प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही बढ़ेगी और भ्रष्टाचार (Corruption) खत्म होगा. एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में आरटीआई के 45 प्रतिशत मामलों में सूचना मिली, जबकि 55 प्रतिशत केसों में सूचना नहीं मिल पाई. इनमें भी महज दस प्रतिशत लोग ही अपील के लिए गए. बारेठ ने कहा कि अधिकारी सूचना छिपाने का प्रयास करते हैं.

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