Leader of Opposition Rajasthan : भाजपा नेता प्रतिपक्ष का चयन नहीं कर पाई है. कहा जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष का पद आपसी खींचतान में उलझता जा रहा है, हालांकि भाजपा हाईकमान सियासी के साथ-साथ जातीय समीकरण भी साधना चाहती है. राजपूत-ब्राह्मण-जाट समीकरण बनाने की तैयारी है.
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Leader of Opposition Rajasthan : राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी समीकरण साधने की जोड़तोड़ तेज हो गई है. खास तौर पर पिछले साढ़े चार सालों से सत्ता से दूर भाजपा ( Rajasthan BJP ) इसमें कोई चूक नहीं करना चाहती है. गुलाबचंद कटारिया के असम के राज्यपाल बनने के बाद सूबे में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हो गया है. विधानसभा का सत्र जारी है, लेकिन तुरंत फैसला लेने में माहिर भाजपा अब तक नए नेता प्रतिपक्ष का चयन नहीं कर पाई है. कहा जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष का पद आपसी खींचतान में उलझता जा रहा है, हालांकि भाजपा हाईकमान सियासी के साथ-साथ जातीय समीकरण भी साधना चाहती है. लिहाजा ऐसे में भाजपा के पास 4 विकल्प ही दिखाई देते हैं.
भाजपा राजस्थान में पहले भी राजपूत ( Rajput ) चेहरे पर दाव खेलते आई है. राजस्थान भाजपा में लम्बे वक्त तक राजपूत चेहरे ने ही नेतत्व किया है. भैरों सिंह शेखावत ( Bhairon Singh Shekhawat ) और वसुंधरा राजे ( Vasundhara Raje ) भाजपा को प्रदेश में लीड कर मुख्यमंत्री रह चुके हैं. ऐसे में वसुंधरा राजे एक आर फिर प्रबल दावेदार है. राजे रपट घराने से आती है और जाट घराने की बहू हैं. इसके अलावा मौजूदा उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का प्रमोशन कर उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया जा सकता है. राठौड़ लगातार सूबे की सियासत में सक्रीय है. इसके अलावा एक तीसरा नाम नरपत सिंह राजवी का भी सामने आ रहा है. राजवी ना सिर्फ कद्दावर भाजपा नेता है बल्कि वो पूर्व राष्ट्रपति बैरों सिंह शेखावत के दामाद भी हैं.
राजस्थान में जाटों ( Jatt ) का सबसे बड़ा वोर्टबैंक हैं. भाजपा राज में जाटों को अच्छा प्रतिनिधित्व मिलता आ रहा है. जाट समाज से आने वाले जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया, वहीं केंद्र में कैलाश चौधरी मंत्री हैं तो वहीं प्रदेश अध्यक्ष भी जाट है. ऐसे में भाजपा नेताप्रतिपक्ष के रूप में जाट समाज से आने वाले किसी चेहरे को दांव खेल सकती है. एक संभावना यह भी है कि सतीश पूनिया ( Satish Poonia ) को नेता प्रतिपक्ष बनाया जा सकता है, जबकि प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर किसी ब्राह्मण चेहरे को काबिज किया जा सकता है. सतीश पूनिया ने ही बजट भाषण में नेता प्रतिपक्ष के स्थान पर बोला था.
भाजपा चुनाव से पहले नेताप्रतिपक्ष के लिए दलित ( Dalit ) कार्ड भी खेल सकती है. इसमें सबसे प्रबल नाम पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल का है. दलित समाज से ही आने वाले अर्जुनराम मेघवाल भी केंद्र में मंत्री है. इसके अलावा किसी ब्राह्मण चेहरे पर भी दांव खेला जा सकता है. इसमें एक प्रबल दावेदार अरुण चतुर्वेदी हो सकते हैं.
पार्टी में किसी नाम पर सहमति ना बनने पर भाजपा इस पद को खाली भी छोड़ सकती है. इससे पार्टी आपसी को बढ़ने से भी रोक सकती है. चुनाव में अब महज कुछ ही वक्त बचा है, ऐसे में इस सत्र के बाद एक और छोटा का विधानसभा का सत्र बुलाया जाएगा इसके बाद आचार सहिंता लग जाएगी. ऐसे में भाजपा इस पद को खाली छोड़ सकती है.
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