राज्य सरकार ने राजस्थान विवाह के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन अधिनियम को लेकर रुख किया स्पष्ट, CM ने जारी किया बयान
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राज्य सरकार ने राजस्थान विवाह के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन अधिनियम को लेकर रुख किया स्पष्ट, CM ने जारी किया बयान

राजस्थान सरकार ने राजस्थान विवाह के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन अधिनियम को लेकर चल रही भ्रांतियों पर अपना रुख स्पष्ट किया है. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

Jaipur: राजस्थान सरकार ने राजस्थान विवाह के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन अधिनियम (Rajasthan Marriage Compulsory Registration Act) को लेकर चल रही भ्रांतियों पर अपना रुख स्पष्ट किया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 2009 की धारा 8 के अनुसार वर के साथ-साथ वधू के विवाह पंजीयन की आयु 21 वर्ष रखी गई थी जिसके फलस्वरूप 18 से 21 वर्ष की युवतियों को स्वयं आवेदन प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं था. विवाह के उपरान्त भी युवती की 21 वर्ष की आयु अर्जित करने तक माता-पिता द्वारा आवेदन करना पड़ता था. अब इस संशोधन के फलस्वरूप 18 से 21 वर्ष की महिलाओं को स्वयं आवेदन का अधिकार मिल गया है.

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ज्ञात्वय है कि माननीय उच्चतम न्यायालय के सीमा V/S अश्विनी कुमार की ट्रांसफर रिट (सिविल) 291 / 2005 दिनांक 14.02.2006 के निर्णय के अनुसार भारत के नागरिकों के मध्य सम्पन्न हुए प्रत्येक विवाह का पंजीयन (registration) किया जाना अनिवार्य है. विवाह (Marriage) का पंजीयन स्वयं वैध विवाह का प्रमाण नहीं हो सकता और न ही विवाह की वैधता के संबंध में निर्धारित कारक होगा. फिर भी विवाह पंजीयन से बच्चों की देखभाल एवं उनके विधिक अधिकारों का संरक्षण होता है. सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय में राष्ट्रीय महिला आयोग (National Women Commission) द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र का भी उल्लेख किया है जिसमें ये अवधारित किया गया है कि विवाहों का पंजीकरण महिलाओं एवं उनके बच्चों के विभिन्न कानूनी अधिकारों जैसे अवैध द्विविवाह / बहुविवाह की रोकथाम, भरण-पोषण, उत्तराधिकार इत्यादि के संरक्षण के लिए आवश्यक है. इसलिए राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 2009 माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार सभी आयु वर्ग की महिलाओं एवं उनके बच्चों के विधिक अधिकारों के संरक्षण एवं सामाजिक सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करता है.

राज्य सरकार (State Government) बाल विवाह की सामाजिक बुराई के उन्मूलन के लिए कटिबद्ध है एवं बाल विवाह (child marriage) की रोकथाम हेतु बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 (Child Marriage Prohibition Act 2006) को कड़ाई से लागू किया जा रहा है. उपखण्ड अधिकारी एवं तहसीलदार को उनके क्षेत्र के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त किया गया है. अबूझ सावो में बाल विवाहों के होने की संभावनाओं को देखते हुए जिला कलेक्टर कार्यालय / उपखण्ड अधिकारी कार्यालय पर नियंत्रण कक्ष स्थापित किए जाते है. इन अवसरों पर जिला कलेक्टर को जिले के बाल विवाहों को रोकने के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की शक्तियां प्रदान की गई है. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के अनुसार बाल विवाह का पक्षकार अपने विवाह को शून्यकरणीय घोषित करवा सकता है. यदि वह वयस्क हो गया हो तो स्वंय के द्वारा और यदि अवयस्क हो तो अपने संरक्षक या वाद मित्र के द्वारा विवाह को शून्यकरणीय करने हेतु याचिका दायर की जा सकती हैं.

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गौरतलब है कि बाल विवाह के पंजीकरण हो जाने से बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 में वर-वधू को प्रदत्त उपरोक्त अधिकारों का हनन नहीं होता है बल्कि विवाह पंजीयन से ऐसे वधूओं एवं उनके बच्चों के कानूनी अधिकारों का संरक्षण होता है क्योंकि विवाह पंजीकरण के अभाव में ऐसी महिलाओं एवं उनके बच्चों को सरकारी नौकरी, उत्तराधिकार अनुकम्पा नियुक्ति, पेंशन, पासपोर्ट, वीजा, मूल निवास प्रमाण पत्र आदि लाभ नहीं मिल सकते.

यदि वर-वधू के अवयस्क (Minor) होने पर विवाह पंजीयन हेतु वर-वधु के माता-पिता / संरक्षक द्वारा आवेदन प्रस्तुत किया जाता है तो जांच कर एवं विवाह पंजीयक की संतुष्टि पर विवाह पंजीयन किया जाता है। साथ ही विवाह पंजीयक ऐसे पक्षकारों के माता-पिता / संरक्षक अथवा ऐसे अन्य के विरुद्ध बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के प्रावधानों के तहत वांछित कार्रवाई करने हेतु जिला विवाह पंजीयन अधिकारी (जिला कलेक्टर) को सूचित करता है. ज्ञात्वय है कि वर्ष 2016 में 4, वर्ष 2017 में 10 तथा वर्ष 2018 में 17 बाल विवाहों का पंजीकरण इसी अधिनियम के तहत हुआ था.

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विवाह पंजीकरण (marriage registration) की सुविधा विकेन्द्रीकृत रूप से एवं सुगमता से उपलब्ध करवाने हेतु पूर्व में प्रावधित जिला विवाह रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के अतिरिक्त अब जिला एवं ब्लॉक स्तर पर अतिरिक्त जिला विवाह रजिस्ट्रीकरण अधिकारी का प्रावधान जोड़ा गया है. पूर्व में प्रचलित प्रावधानों में वर-वधू में से एक या दोनों की मृत्यु हो जाने पर विवाह पंजीयन किए जाने का प्रावधान नहीं था. संशोधित विधेयक में किसी एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाने की स्थिति में विवाह के पक्षकारों में वर या वधू के साथ-साथ उनके माता-पिता संरक्षक तथा वयस्क बच्चों के द्वारा भी पंजीयन हेतु आवेदन प्रस्तुत किए जाने का प्रावधान किया गया है.

इन संशोधनों के पश्चात आमजन को विवाह पंजीकरण में आ रही समस्याओं का आसानी से निस्तारण किया जा सकेगा. विवाह पंजीयन कार्य सरलता, सुगमता व त्वरित गति से किया जा सकेगा.

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