एक सप्ताह का समय, क्या मुख्यमंत्री की कुर्सी बचा पाएंगी ममता बनर्जी ?
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एक सप्ताह का समय, क्या मुख्यमंत्री की कुर्सी बचा पाएंगी ममता बनर्जी ?

ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री की शपथ लेने के 6 महीने के भीतर किसी और सीट से विधायक बनना जरूरी था.

प्रतीकात्मक तस्वीर

Jaipur: बंगाल विधानसभा चुनावों (Bengal assembly elections) में ममता बनर्जी को हराने के लिए पीएम मोदी और अमित शाह ने पूरी ताकत लगाई. बीजेपी बंगाल में सरकार को नहीं बना पाई. लेकिन नंदीग्राम विधानसभा सीट से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को हराने में जरूर कामयाबी मिली. तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए सुवेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) ने ही ममता को हराया. टीएमसी की सरकार बनी. तो ममता बनर्जी ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी. लेकिन ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री की शपथ लेने के 6 महीने के भीतर किसी और सीट से विधायक बनना जरूरी था. ऐसे में भवानीपुर सीट (Bhawanipur seat) से हो रहे उपचुनाव में ममता बनर्जी यहां से चुनावी मैदान में उतरी है.

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बंगाल में टीएमसी (TMC) प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में है. ऐसे में होना तो ये चाहिए था कि ममता बनर्जी भवानीपुर से नामांकन करती और अपने सरकारी कामकाज में लग जाती. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हुए, प्रदेश में सत्ता में रहते हुए उन्हें कोई हरा नहीं सकता. लेकिन ममता बनर्जी ने भवानीपुर में पूरी ताकत लगा रखी है. टीएमसी के तमाम नेता भवानीपुर के गांव-गांव, गली-गली में घूम रहे है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या ममता बनर्जी को नंदीग्राम 
(Nandigram) के बाद अब भवानीपुर में भी हार का डर सता रहा है.

ममता बनर्जी का आत्मविश्वास हुआ कमजोर
ममता बनर्जी ने शायद ये सपने में भी नहीं सोचा होगा कि नंदीग्राम सीट से वो खुद चुनाव हार जाएगी. बीजेपी ने जिस तरह से नंदीग्राम में ममता घेरा था. भवानीपुर में भी बीजेपी उसी रणनीति पर काम कर रही है. प्रदेश स्तर के नेतृत्व में बदलाव किया है. कई केंद्रीय मंत्री भवानीपुर के गांव-गांव में प्रचार कर रहे हैं. बीजेपी और आरएसएस (BJP and RSS) का काडर जमीनी स्तर पर सक्रिय हो गया है. बीजेपी न तो सत्ता में है और न ही आने की कोई संभावना है लेकिन फिर भी ममता बनर्जी को हराने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है.

नंदीग्राम में ममता को हराने की वजह से बीजेपी का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है. तो वहीं ममता बनर्जी का आत्मविश्वास नंदीग्राम की हार से कमजोर हुआ है. यही वजह से है कि भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र के इकबालपुर में ममता ने एक ऐसा बयान दिया जिससे ऐसा लग रहा है कि वो जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है.

ममता बनर्जी ने कहा कि कोई भी ये सोचकर घर पर न बैठें कि मैं आसानी से चुनाव जीत जाउंगी. मेरे लिए एक एक वोट जरूरी है. बारिश हो या तूफान आ जाए, घर पर मत बैठे रहना, वोट डालने जरूर आना. अगर मैं चुनाव हार गई तो मुख्यमंत्री नहीं रह पाउंगी. बंगाल का मुख्यमंत्री कोई और बन जाएगा.

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भवानीपुर विधानसभा का इतिहास
भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र राजधानी कोलकाता (Kolkata News) का हिस्सा है. कोलकाता लोकसभा क्षेत्र में ही भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र आता है. यहां पहला चुनाव 1952 में कांग्रेस जीती थी. लेकिन बाद में हमेशा से ये वीआईपी सीट रही है. बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे (Siddharth Shankar Ray) भी 1957 और 1962 में भवानीपुर से चुनाव लड़ चुके है. जो बाद में 1972 में बंगाल के मुख्यमंत्री बने थे. 1972 से 2011 के बीच भवानीपुर विधानसभा अस्तित्व में नहीं रही थी. 2011 के चुनावों में भवानीपुर फिर अस्तित्व में आया. 2011 का आम चुनाव तो सुब्रता बक्शी जीते लेकिन जब प्रदेश में टीएमसी सरकार बनी और ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनी तो सुब्रता बक्शी ने ये सीट ममता बनर्जी के लिए खाली की. ममता बनर्जी ने उपचुनाव में बड़े अंतर से जीत हासिल की. 77.46 प्रतिशत वोट ममता बनर्जी को मिले थे. दूसरे नंबर के प्रत्याशी को सिर्फ 20.43 प्रतिशत मिले थे.

मजबूत होती गई बीजेपी
2011 के आम चुनाव में बीजेपी को भवानीपुर में सिर्फ 5,078 वोट मिले थे. 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां 26,299 वोट मिले. और 2021 के आम चुनाव में ये आंकड़ा बढ़कर 44,786 वोटों तक पहुंच गया. 2021 के आम चुनावों में बीजेपी को यहां 35.16 वोट मिले थे. ऐसे में बीजेपी ने इस बार भवानीपुर में पूरी ताकत लगा रखी है.

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भवानीपुर में अगर ममता बनर्जी हारी तो क्या ?
किसी भी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनने के लिए विधायक होना जरूरी है. अगर ऐसा व्यक्ति मुख्यमंत्री बनता है जो विधायक नहीं है, तो उसे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के 6 महीने के भीतर किसी भी सीट से विधानलभा सदस्य बनना जरूरी होता है. ममता बनर्जी इस बार नंदीग्राम से चुनाव हार गई थी. लेकिन फिर भी टीएमसी की तरफ से वही मुख्यमंत्री (Chief Minister) बनी. लिहाजा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के 6 महीने के अंदर उन्हें विधायक बनना जरूरी था. सोवनदेव चटर्जी ने ममता बनर्जी के लिए भवानीपुर सीट खाली की. और भवानीपुर से उपचुनावों में ममता बनर्जी वहां से मैदान में उतरी. ममता बनर्जी ने 5 मई 2021 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. ऐसे में 5 नवंबर 2021 से पहले विधायक बनना जरूरी है. लेकिन अगर वो भवानीपुर से नहीं जीत पाती है. तो उसे मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ेगी.

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भवानीपुर विधानसभा का जातीय गणित
भवानीपुर में बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता है. मुस्लिम वोटर (Muslim Voter) की संख्या 45 हजार से ज्यादा है. जो कुल मतदाताओं के 20 प्रतिशत के लगभग है. ऐसे में बीजेपी को ध्रुवीकरण की स्थिति में फायदा मिलने की उम्मीद है. लेकिन ममता बनर्जी ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है जिससे बीजेपी को ध्रुवीकरण का मौका मिले. भवानीपुर में बड़ी तादात में गैर बंगाली वोटर (Bengali Voters) हैं. यहां 90 हजार बंगाली मतदाता और 50 हजार गैर बंगाली वोटर है. बड़ी संख्या में गुजराती और मारवाड़ी समुदाय के वोटर भी है. बीजेपी प्रत्याशी प्रियंका टिबरेवाल (Priyanka Tibrewal) भी मारवाड़ी समुदाय से है.

कौन है बीजेपी प्रत्याशी प्रियंका टिबरेवाल
भवानीपुर में इस बार बीजेपी ने प्रियंका टिबरेवाल को मैदान में उतारा है. प्रियंका टिबरेवाल ने 2014 में बीजेपी ज्वाइन की थी. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत भी करती है. अगस्त 2020 से वो भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष भी है. 2015 में बीजेपी के टिकट पर म्यूनिसिपल काउंसिल का चुनाव भी लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा. 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एंटल्ली से चुनावी मैदान में उतारा लेकिन यहां भी हार का सामना करना पड़ा. अब एक बार फिर पार्टी नेतृत्व ने उन पर भरोसा जताया है.

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भवानीपुर उपचुनाव के नतीजों पर पूरे देश की नजर है. 30 सितंबर को भवानीपुर में मतदान होगा. और 3 अक्टूबर को चुनाव परिणाम घोषित होंगे. वैसे यहां टीएमसी पूर्ण बहुमत से सत्ता में है. इसलिए पीएम मोदी (PM Modi), अमित शाह (Amit Shah) और जेपी नड्डा (JP Nadda) तो चुनाव प्रचार में नहीं उतरे हैं. लेकिन बाकी केंद्रीय नेता (Central leaders) और केंद्रीय पदाधिकारी यहां प्रचार में जुटे हुए है.

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