Independence Day 2022: ऐसा था 1947 का भारत, आज कर रहा दुनिया की अगुवाई; जानिए 75 साल की गौरव गाथा
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Independence Day 2022: ऐसा था 1947 का भारत, आज कर रहा दुनिया की अगुवाई; जानिए 75 साल की गौरव गाथा

India after independence: देश को आजाद हुए 74 साल हो गए हैं. इतने सालों में देश में बहुत बड़ा बदलाव आया है. 1947 में वक्त आम आदमी की सालाना कमाई 274 रुपये थी लेकिन आज की तस्वीर अलग और शानदार है. कैसा रहा आजाद भारत की कामयाबी का ये सफर आइए जानते हैं.

सांकेतिक तस्वीर

Azadi ke 75 saal: देश को आजाद हुए 74 साल हो गए और भारत (India) अपनी आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) यानी अपने स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ बड़े धूमधाम से मना रहा है. इन 75 सालों में देश में बहुत बड़ा बदलाव आया है. आजादी के समय देश की आजादी महज 34 करोड़ थी पर अब करीब 140 करोड़ है. ऐसे में फूड सेक्टर यानी खेती किसानी से लेकर हेल्थ, एजुकेशन, समेत किन मामलों में भारत कितना बदला है और भारत के कामयाबी के इस लंबे सफर की गौरव गाथा (Success story India 1947-2022) जानते हैं इस रिपोर्ट में. 

आजादी से अब तक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर कितना बढ़ा?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की हाल ही में हुई एक बैठक में कोरोना महामारी का हवाला देते हुए जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) में बीते 20 सालों में आए बदलाव की जानकारी साझा की है. आजादी के बाद से अब तक बाल मृत्यु दर और औसत आयु में तो हालात सुधरे हैं. WHO ने कोरोना महामारी की चुनौतियों के बीच दुनिया के हर देश को अपना हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने की जरूरत पर जोर दिया है. ऐसे में भारत ने इस क्षेत्र में बड़ी कामयाबी हासिल की है. आजादी के समय यानी 1947 के भारत से आज 2022 की तुलना करें तो तब देश में 30 मेडिकल कॉलेज ही थे, लेकिन अब करीब 550 कॉलेज हैं. 1947 में 2,014 सरकारी अस्पताल थे और अब इनकी संख्या साढ़े 23 हजार से ज्यादा है. देश में डॉक्टरों की संख्या भी बढ़ी है. इस वक्त देश में 1,313 आबादी पर एक डॉक्टर है. जबकि WHO के मुताबिक, हर एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए. आजादी के 74 साल के सफर में भारतीय वैज्ञानिकों ने भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. कोरोना महामारी के दौर में भारत ने अपने दम पर दो-दो स्वदेशी कोरोना वैक्सीन (कोवैक्सीन और कोविशील्ड) बनाकर न सिर्फ अपने देश के करोड़ों लोगों की जिंदगी को बचाया वहीं दुनिया के कई देशों को फ्री वैक्सीन देकर आने वाले समय में हेल्थ सेक्टर में भी दुनिया की अगुवाई करने के संकेत दे दिए हैं. 

दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और इतनी बढ़ी GDP

किसी भी देश की आर्थिक हालत कैसी है? उसे जानने का पैमाना है उस देश की जीडीपी (GDP) यानी ग्रॉस डेमोस्टिक प्रोडक्ट. माना जाता है कि जब अंग्रेज भारत आए थे, तब दुनिया की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 22% से ज्यादा थी. लेकिन जब 1947 में देश आजाद हुआ तब ये हिस्सेदारी घटकर 3% रह गई. लेकिन 1947 में देश के आजाद होने के बाद से हमारी जीडीपी 50 गुना बढ़ी है. साल 1950-51 में GDP का आंकड़ा 2.93 लाख करोड़ रुपये था, जो 2020-21 में 134 लाख करोड़ से ज्यादा होने का अनुमान है. आज दुनिया की इकॉनमी भले ही महंगाई की मार से परेशान होकर उसके साइड इफेक्ट झेल रही हो लेकिन भारत, महंगाई के बावजूद चालू वित्त वर्ष (Current Financial Year) के दौरान दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश बनने वाला है. 

भारत 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कह चुकी हैं कि फिलहाल भारत की आर्थिक वृद्धि में नरमी का सवाल ही नहीं है. वहीं भारत को 2022 और 2023 फाइनेंसियल ईयर में तेज के साथ बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रूप देखा जा रहा है. आपको बता दे कि वैश्विक स्तर पर रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन और ताइवान के बीच बढ़ते तनाव के कारण आर्थिक वृद्धि दर बेहतर रहने की उम्मीद है. वित्त मंत्रालय ने हाल ही में एक बयान में कहा कि केंद्र सरकार का भारत को वैश्विक आर्थिक शक्ति बनाने पर जोर है और इस दिशा में कई कदम उठाए गये हैं. इन कोशिशों से देश की GDP (सकल घरेलू उत्पाद) में भी बढ़ोतरी देखी गई. इन उपायों से सरकारी खजाने के लिए राजस्व संग्रह बढ़ा है. इसके साथ भारत 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था (5 Trillion Dollars economy) बनने के रास्ते पर है.

2022 में 8.5% रहेगी विकास दर

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट (World Economic Outlook Report) के अनुसार, मोदी सरकार के रणनीतिक सुधारों और कोरोना टीकाकरण अभियान में तेजी के कारण दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) तेजी से आगे बढ़ रही है. भारत 2022 में 8.5 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा. 2022 में भारत को छोड़कर किसी भी अन्य देश में यह वृद्धि दर 6 प्रतिशत से ऊपर नहीं जाने का अनुमान जताया गया है. आर्थिक विकास दर के मामले में भारत ने चीन और अमेरिका को काफी पीछे छोड़ दिया है.

कभी पूरे देश ने रखा उपवास, आज दुनिया का पेट भर रहा भारत

1965 में देश में अनाज का संकट पैदा हो गया. अमेरिका ने उस वक्त का फायदा उठाते हुए कुछ शर्तों के साथ भारत को अनाज देने की पेशकश की. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जानते थे कि अमेरिका से अनाज लिया तो देश का स्वाभिमान चूर-चूर हो जाएगा. इसलिए उन्होंने अमेरिका के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया और अपनी पत्नी बच्चों के साथ उस दिन कुछ भी नहीं खाया, इससे उन्हें भरोसा हुआ कि अगर एक दिन भोजन न भी किया जाए तो इंसान भूख बर्दाश्त कर लेता है. परिवार के साथ इस प्रयोग के बाद उन्होंने देशवासियों से आह्वान किया कि वो एक दिन का उपवास करे. शास्त्री जी के इस आह्वान का देशवासियों पर गहरा असर पड़ा. लोगों ने बिना किसी हिचक के अपने प्रधानमंत्री के आह्वान पर भरोसा किया और सप्ताह में एक दिन एक वक्त का खाना छोड़ दिया. आज भारत अपनी पैदावार के दम पर दुनिया के लाखों लोगों का पेट भर रहा है. 

भारत में आई हरित क्रांति

1965 में एक वक्त था जब भारत में खाद्यान का आकाल पड़ा था. लोग एक वक्त का खाना खान के लिए मजबूर हो गए थे. उस पर पाकिस्तान से युद्ध और अमेरिका की गेहू ना देने की धमकी से भारतीयों के स्वाभिमान को गहरी चोट पहुंची थी. इसके दो साल के भीतर देश के किसानों ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया कि भारत में हरित क्रांति (Green Revolution) आ गई. 1968 में हमारे किसानों ने रिकॉर्ड 170 लाख टन गेहूं का उत्पादन किया. जो साल 1964 की अपेक्षा 50 लाख टन ज्यादा था.

देश की पहली राजधानी ट्रेन और आज की वंदे भारत

क्या आप जानते हैं कि आपके सफर को आसान बनाने वाली भारतीय रेल की जान कही जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस ने कब से पटरी पर अपना सफर शुरू किया था. 1 मार्च, 1969 को राजधानी एक्सप्रेस पटरी पर उतरी. ये गाड़ी 120 किमी प्रति घंटा की स्पीड से नई दिल्ली से कोलकाता के हावड़ा स्टेशन पर पहुंची. इसने पहले 24 घंटे में तय किये जाने वाले सफर को 17 घंटे में पूरा किया. आजादी के इन 74 सालों में भारतीय रेलवे (Indian Railways) ने भी बड़ा बदलाव किया है. राजधानी के बाद शताब्दी ट्रेनों का जमाना आया और आज वंदेभारत जैसी ट्रेनों की डिमांड लगातार बढ़ रही है. रिजर्वेशन प्रकिया पहले से कहीं आसान हुई है. देश के रेलवे नेटवर्क में आमूल-चूल बदलाव आया है.

रेलवे में सैल्यूट परंपरा बंद

रेल मंत्री और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन और जीएम को अब सेल्यूट नहीं मिलेगा. आपको बता दें कि ये परंपरा तो अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही थी. रेल मंत्रालय में और देश भर के रेलवे GM दफ्तरों में सेल्यूट देने के लिए RPF का चुना हुआ जवान गेट पर तैनात रहता था. सामंती परम्परा मानते हुए इस प्रथा को रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने बंद करने का आदेश दिया है. दरअसल सेल्यूट प्रथा को बंद करने का एक मकसद ये भी है कि GM और रेलवे के अधिकारी अपने आप को खास न समझे. आज़ादी के अमृत वर्ष में इस प्रथा को बंद किया जा रहा है और अधिकारियों को ये मैसेज दिया जा रहा है कि मंत्रालय या रेलवे के दफ्तरों में सभी काम करने के लिए आते है यहां न कोई खास है सभी बराबर है.

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत

आजादी के समय भारत विदेशी हथियारों के मामले में पूरी तरह से सिर्फ रूस पर निर्भर था. इस बीच आज के नए दौर के नए भारत के रक्षा विभाग से जुड़े अधिकारी और कर्मचारी सब अपना काम मुस्तैदी से कर रहे हैं. आज 74 सालों में भारत की ताकत का मान और रुतबा बड़ा है. वहीं आज का भारत यूरोप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रह है. फ्रांस से  राफेल, अमेरिका से चिनूक और रूस से एस-400 जैसा मिसाइल डिफेंस सिस्टम भारत को मिलना किसी बड़ी कामयाबी से कम नहीं है. डीआरडीओ (DRDO) जैसे संगठन बुलेट प्रूफ जैकेट से लेकर लाइट फाइटर जेट तक बना रहे हैं. 

देश का पहला ट्रैफिक सिग्नल

1947 में आजादी के बाद 1953 में आजाद भारत के बढ़ते कदम आविष्कार के नए नए आयामों को छू रहे थे. इस बीच देश में आई पहली ट्रैफिक लाइट. जिसे साउथ इंडिया में लॉन्च किया गया. देश की पहली ट्रैफिक लाइट का इस्तेमाल 1953 में मद्रास के एग्मोर जंक्शन में किया गया. इसके ठीक 10 साल बाद यानि साल 1963 में बैंगलोर के कॉर्पोरेशन सर्कल में पहला ट्रैफिक सिग्नल लगाया गया. आज भारत के रोड ट्रांसपोर्ट सिस्टम की मिसालें कई देशों में दी जा रही हैं. भारत ने इन 74 सालों में अनगिनत हाईवे बनवाए और अब जमाना एक्सप्रेस वे का है. देश के प्रमुख शहरों के बीच की दूरी घटी है. सफर में पहले की तुलना में कम समय लग रहा है. देश के विकास में भारत के ट्रांसपोर्ट सिस्टम का भी  बड़ा योगदान है. ट्रांसपोर्ट विभाग की खामियों और कमियों को दूर किया गया है. और देश तरक्की के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहा है.

जब देश में आया मोबाइल फोन

तकनीकि के क्षेत्र में भारत को बड़ी उपलब्धि साल 1995 में मिली. जब पहली बार देश में मोबाइल फोन आया. भारत में सबसे पहली मोबाइल कॉल करीब ढाई दशक पहले 31 जुलाई 1995 को हुई थी. देश में पहली मोबाइल कॉल किसी और ने नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम ने की थी. इस फोन कॉल कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से दिल्ली के संचार भवन में कनेक्ट किया गया था. इस कॉल के साथ ही कोलकाता में मोबाइल फोन सेवा की शुरुआत की गई थी. आपको बता दें कि देश की पहली मोबाइल कॉल मोदी टेल्स ट्रामोबाइलनेट सर्विस के जरिए की गई थी.

देश में इंटरनेट सेवा की शुरूआत

देश में 1995 में मोबाइल फोन की सुविधा भारतीयों को मिली तो इसी साल एक और नया आयाम तकनीकि के क्षेत्र में भारत को हासिल हुआ. यह नई कामयाबी थी  'इंटरनेट' सेवा की. इंटरनेट ने आज लगभग हर परेशानी का हल निकाल दिया है. इंटरनेट सेवा की शुरूआत भारत में 1995 में स्वतंत्रता दिवस के दिन यानी 15 अगस्त के दिन ही की गई थी. आम लोगों के लिए इंटरनेट सुविधा विदेश संचार निगम लिमिटेड यानी VSNL के गेटवे सर्विस के साथ शुरू की गई. इसके बाद 1998 में सरकार ने निजी कंपनियों को इंटरनेट सेवा क्षेत्र में आने की इजाजत दी और आज भारत की इंटरनेट क्रांति का लोहा पूरी दुनिया मान रही है.

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